भिलाई/रायपुर(cg aajtak news)। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को घोड़े और घोड़ी में फर्क नहीं पता है। दूल्हा घोड़ा नहीं घोड़ी पर चढ़ता है। राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 3 मई को संगठन सृजन अभियान कार्यक्रम में तीन घोड़े का उदाहरण दिया है। पहला बारात का घोड़ा, दूसरा रेस का घोड़ा और तीसरा लगंड़ा घोड़ा। वे कहना क्या चाहते और समझना क्या चाहते हैं लगता खुद भी नहीं समझते। कहा कि लगंड़ा घोड़ा को घऱ बैठ जाना चाहिए, बारात के घोड़े को बारात में जाना चाहिए और रेस के घोड़े को चुनाव लड़ना चाहिए। जो खुद की शादी में घोड़ी नहीं चढ़े उनके मुंह से इस तरह की बातें शोभा नहीं देती है। ये तो वहीं बात हो गई जिसने लगभग पचास साल तक सिंदूर का कद्र नहीं किया वही प्रधानसेवक जी ऑपरेशन सिंदूर के तहत देशभर में सिंदूर बांटने की बात कर रहे हैं।
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कांग्रेस नेता को जिस भी सलाहकार ने ये जो भाषण लिख कर दिया होगा। उन्हें यह नहीं पता कि पूरे भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में यह कहावत है कि रेस के घोड़े को बूढ़े होने पर गोली मार दी जाती है। उनका इशारा किससे तरफ हैं वे ही जानें, किंतु सवाल यह उठ रहा है कि मध्यप्रदेश में कौन लगंड़ा घोड़ा है। क्या उन्हें गोली मारेंगे यह सबसे बड़ा सवाल है? वैसे उनके भाषण के बाद चर्चा है कि एमपी में लगंड़ा घोड़ा तो संभवतः दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ही हो सकते है? इन दोनों से ज्यादा दमदार वरिष्ठ नेता प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में और कौन है…
