क्या पृथ्वी के लिए विनाशकारी हैं सभी Asteroid?

अगले हफ्ते कौन से ऐस्टरॉइड्स पृथ्वी की ओर आ रहे हैं? वैज्ञानिकों की नजर में कौन से ऐस्टरॉइड्स बेहद खतरनाक हैं? डायनोसॉर जैसे प्राणी की पूरी प्रजाति को खत्म कर देने वाले ऐस्टरॉइ़ड्स से आज कितना खतरा? ऐस्टरॉइड्स का नाम सुनते ही इस तरह के सवाल बेहद आम हैं लेकिन क्या आपको पता है कि ऐस्टरॉइड्स आखिर होते क्या हैं? क्या सभी ऐस्टरॉइड्स विनाशकारी होते हैं? क्या ऐस्टरॉइड और उल्कापिंड एक ही चीज है? इन सभी सवालों के जवाब आज हम आपको देने जा रहे हैं।

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ऐस्टरॉइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।

करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे नहीं होते हैं। आपने कई बार सुना होगा कि एवरेस्ट जितना बड़ा ऐस्टरॉइड धरती के पास से गुजरने वाला है तो कभी फुटबॉल के साइज का ऐस्टरॉइड आने वाला है। ब्रह्मांड में कई ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनका डायमीटर सैकड़ों मील का होता है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं।

पृथ्वी पर विनाश के लिए सिर्फ इनका आकार अहम नहीं होता। अगर किसी तेज रफ्तार चट्टान के धरती से करीब 46 लाख मील से करीब आने की संभावना होती है तो उसे स्पेस ऑर्गनाइजेशन्स खतरनाक मानते हैं। NASA का Sentry सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है। इस सिस्टम के मुताबिक जिस ऐस्टरॉइड से धरती को वाकई खतरे की आशंका है वह है अभी 850 साल दूर है। साल 2880 में न्यूयॉर्क की empire state building जितना बड़ा ऐस्टरॉइड 29075 (1950 DA) के पृथ्वी की ओर की आने की आशंका है। हालांकि, वैज्ञानिकों को विश्वास है कि आने वाले वक्त में Planetary Defense System विकसित कर लिया जाएगा जिस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है।

ऐस्टरॉइड्स की बनावट भी अलग होती है जैसे कई चट्टानी होते हैं, तो कोई क्ले या Nickel और लोहे जैसे मेटल से बना होता हैं। हमारा सोलर सिस्टम और ग्रह कैसे बने, इस राज की तह तक जाने के लिए ऐस्टरॉइड्स की स्टडी बेहद अहम होती है। तो वैज्ञानिक इन विशाल, खतरनाक चट्टानों को स्टडी कैसे कर पाते होंगे? इसका जवाब है उल्कापिंड-

अब हम आपको बताते हैं कि ऐस्टरॉइड्स और उल्कापिंड में क्या अंतर होता है और ये आपसे कैसे जुड़े हुए हैं।

दरअसल, उल्कापिंड ऐस्टरॉइड का ही हिस्सा होते हैं। किसी वजह से ऐस्टरॉइड के टूटने पर उनका छोटा सा टुकड़ा उनसे अलग हो जाता है जिसे उल्कापिंड यानी meteroid कहते हैं। जब ये उल्कापिंड धरती के करीब पहुंचते हैं तो वायुमंडल के संपर्क में आने के साथ ये जल उठते हैं और हमें दिखाई देती एक रोशनी जो शूटिंग स्टार यानी टूटते तारे की तरह लगती है लेकिन ये वाकई में तारे नहीं होते। और ये Comet यानी धूमकेतु भी नहीं होते।

धूमकेतु भी ऐस्टरॉइड्स की तरह सूरज का टक्कर काटते हैं लेकिन वे चट्टानी नहीं होते बल्कि धूल और बर्फ से बने होते हैं। जब ये धूमकेतु सूरज की तरफ बढ़ते हैं तो इनकी बर्फ और धूल वेपर यानी भाप में बदलते हैं जो हमें पूंछ की तरह दिखता है। खास बात ये है कि धरती से दिखाई देने वाला कॉमट दरअसल हमसे बेहद दूर होता है जबकि अगर उल्कापिंड देख पा रहे हैं तो इसके मतलब वह धरती के वायुमंडल में दाखिल हो चुका है।

जरूरी नहीं है कि हर उल्कापिंड धरती पर आते ही जल उठे। कुछ बड़े आकार के उल्कापिंड बिना जले धरती पर लैंड भी करते हैं और तब उन्हें meteorite कहा जाता है। NASA का जॉन्सन स्पेस सेंटर दुनिया के अलग-अलग कोनों में पाए गए meteorites का कलेक्शन रखता है और इन्हीं की स्टडी करके ऐस्टरॉइ़ड्स, planets और हमारे सोलर सिस्टम की परतें खोली जा जाती हैं।

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