राजस्थान पत्रिका रूपी जहाज छत्तीसगढ़ के समुद्र में डूबने की कगार पर…

भिलाई/रायपुर।(खबर CG AAJ TAK) राजस्थान का कथित बहु प्रचारित और प्रसारित हिंदी दैनिक समाचार पत्र रूपी जहाज छत्तीसगढ़ के समुद्र में डूबने की कगार पर पहुंच गया है। जिस जोर-शोर से राजस्थान पत्रिका समाचार पत्र छत्तीसगढ़ में स्थापित हुआ था उससे कई गुना रफ्तार में नेपथ्य में जा रहा है। कहा जा सकता है कि समाचार पत्र बंद होने की स्थिति में पहुंच गया है। आलम यह है कि पत्रिका रूपी जहाज डूबने के पहले लोग (कर्मचारी) नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। इस विषय पर मैनेजमेंट को चितंन मनन करने की जरूरत है। आखिर क्या कारण है कि प्रबंधन अपने कर्मचारियों को रोक कर नहीं रख पा रहा है। छत्तीसगढ़ में लाचिंग के पहले बड़े-बड़े दावे वादे किए थे। पत्रिका प्रबंधन द्वारा बताया गया था कि पत्रिका समाचार पत्र ज्वाइन करने के बाद सिर्फ कर्मचारी ही नहीं बल्कि परिवार का भी ध्यान रखा जाता है। कहा गया था कि पत्रिका ज्वाइन करने के बाद व्यक्ति नौकरी नहीं छोड़ता बल्कि रिटायर्ड होता है। ऐसा छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं हो रहा है? गलती किसकी है, उच्च प्रबंधन (जयपुर ) या स्थानीय (state editor) राज्य संपादक की जिम्मेदारी है। इस पर गहन चिंतन मनन की जरूरत है।

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छत्तीसगढ़ में नाव ऐसे डूब रही है
कोरोना संक्रमण काल में अकारण छंटनी के बाद संपादक स्तर के अलावा कई कर्मचारी नौकरी छोड़ चुके हैं। इनमें बिलासपुर संपादक वरुण सखा जी के अलावा भिलाई संस्करण के आरई (रेजिडेंट एडिटर) देवेंद्र गोस्वामी शामिल हैं। इनके अलावा रायपुर के डिजिटल हेड आशीष गुप्ता सहित डेस्क इंचार्ज अभिषेक राय और एक पेज डिजाइनर शामिल हैं। आखिर क्या कारण है इन लोगों को पत्रिका जैसे समाचार पत्र को छोड़ने के लिए मजबूर होना पडा़।
O- पहला कारण वेतन के नाम पर धोखा देना
O- दूसरा नौकरी की कोई ग्यारंटी नहीं
O- तीसरा सालों के एक ही पद पर काम करना (प्रमोशन नहीं होना)
O- चौथा कारण सालाना एक्रीमेंट नहीं देना।

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 इसके अलावा कम वेतन देना भी एक कारण है

पत्रिका से नौकरी छोड़ने का एक बड़ा कारण सम्मानजनक वेतन नहीं देना बताया जाता है। बीते दो साल से पत्रिका को रिपोर्टर/डेस्क इंचार्ज सहित डिजिटल स्टॉफ नहीं मिल रहे हैं। इसका प्रमुख कारण नाममात्र वेतन देना है। वर्तमान में प्रशिक्षु पत्रकारों को भी 15 से 20 हजार रुपए दिए जाते हैं। पत्रिका में सीनियर रिपोर्टर को भी न्यू ज्वाइनिंग पर 15 हजार से ज्यादा वेतन नहीं दिया जाता है। आलम यह है कि रिटायर्ड होने के बाद कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देकर काम चलाना पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भिलाई कार्यालय है। जहां एक कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद ससम्मान विदाई दे दी गई थी। उन्हें कुछ दिनों बाद वाउचर पेमेंट पर फिर से काम पर रख लिया गया है। इसी कड़ी में एक सीनियर रिपोर्टर ने पत्रिका को अलविदा कह भास्कर ज्वाइन कर लिया है। वहीं रायपुर से आने वाले स्टाफ की अमानवीय व्यवहार और दादागिरी के कारण कई लोग नौकरी छोड़ चुके हैं। इनमें मध्यप्रदेश से आए एक स्टाफ पंकज तिवारी के अलावा तीन कम्प्यूटर आपरेटर शामिल है। जिन्हें अकारण नौकरी से निकाल दिया गया है। इनमें एक कर्मचारी पंकज तिवारी (बीफोर लांचिंग) पत्रिका के शुरुआती दौर से जुड़ा हुआ था। ये सभी कर्मचारी भी कोर्ट में केस लगाने की तैयारी कर रहे हैं जिनकी जवाबदारी भिलाई के वर्तमान प्रभारी की है। भविष्य में उन्हें भी कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाना पड़ेगा, क्योंकि केस उन्हीं के नाम फाइल हो रही है। इस मामले में प्रबंधन को बाद में पक्ष बनाया जाने की जानकारी है।

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मजीठिया केस के बाद प्रमोशन

कोरोना संक्रमण काल में पत्रिका से निकाले गए दो दर्जन कर्मचारी मजीठिया वेजबोर्ड की मांग के लिए कोर्ट की शरण में गए हैं। कोर्ट में मामला लंबित होने और लगभग दो साल की सुनवाई में पत्रिका प्रबंधन को फटकार के बाद छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों को भी प्रमोशन दिया जा रहा है, लेकिन प्रमोशन के साथ वेतन की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। सिर्फ कोर्ट को बताने और दिखाने के लिए प्रमोशन दिया गया है। जैसे रायपुर के एक सीनियर रिपोर्टर को ब्यूरो प्रमुख बना दिया गया है। जबकि रायपुर में राज्य संपादक (स्टेट एडिटर) के अलावा कई आरई भी है। बड़े अखबार में जहां संपादक होते हैं वहां ब्यूरो प्रमुख का पद समाप्त हो गया है, लेकिन पत्रिका ने कोर्ट के भय से नया पद सृजन कर लिया है। इसी तरह एक रिपोर्टर को सिटी चीफ के पद पर पदोन्नत कर दिया है लेकिन वेतन एक रुपए भी नहीं बढ़ाया गया है।

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तारीख पे तारीख

राजस्थान पत्रिका प्रबंधन द्वारा कोर्ट में तारीख पे तारीख का खेल चल रहा है। कोर्ट में कई पेशी होने के बाद भी प्रबंधन द्वारा जवाब नहीं दिया जा रहा है। प्रबंधन के अधिकृत व्यक्ति (दिनेश कुमार जैन) रायपुर यूनिट हेड (दामाद बाबू) द्वारा सिर्फ तारीख पे तारीख लिए जा रहे है। यह सिलसिला दुर्ग एएलसी कार्यालय से लेकर लेबर कोर्ट तक में चल रहा है। लेबर कोर्ट दुर्ग में हर बार जवाब के लिए तारीख बढ़ाई जा रही है। इसी तरह रायपुर कमिश्नर कोर्ट में भी दो पेशी होने के बाद सिर्फ तारीख ही लिए जा रहे हैं। डेढ़ दर्जन कर्मचारियों के केस के खिलाफ प्रबंधन द्वारा सिर्फ दो लोगों (कर्मचारियों) का जवाब ही दिया गया है। इसके बाद शेष लोगों के जवाब के लिए तारीख बढ़ाई ली गई है। पीड़ित कर्मचारियों का कहना है कि इसी तरह केस चलता रहा तो न्याय के लिए सालों लग जाएंगे, जबकि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश हैं कि मामले (मजीठिया वेडबोर्ड) का निपटारा छह महीने के भीतर करना है।

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