दो हफ्ते का वक्त
गतिरोध खत्म करने के लिए पहले फेज के डिसइंगेजमेंट में गलवान एरिया में पीपी-14 और पीपी-15 में भी पूरा डिसइंगेजमेंट हो गया था। दोनों देशों के सैनिकर करीब एक से डेढ़ किलोमीटर पीछे हुए और वहां पर बफर जोन बना दिया ताकि दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने ना रहें। हालांकि हॉट स्प्रिंग एरिया में डिसइंगेजमेंट पूरा नहीं हो पाया और यहां पर चीनी सैनिक तय बातचीत के हिसाब से पीछे नहीं गए। पैंगोंग एरिया में फिंगर- 4 से चीनी सैनिक 9 जुलाई को फिंगर-5 तक चले गए।
अभी एक हफ्ते तक का इंतजार
माना जा रहा था कि वह अगले दिन या कम से कम 14 जुलाई की कोर कमांडर मीटिंग से पहले फिंगर-4 की रिज लाइन यानी चोटी से भी पीछे चले जाएंगे, लेकिन चीनी सैनिक पीछे नहीं गए और अब भी वहीं डटे हैं। चौथी कोर कमांडर मीटिंग में चर्चा हुई कि सैनिक किस तरह पीछे जाएंगे लेकिन अभी तक उस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। आर्मी के एक अधिकारी ने कहा कि मीटिंग में इसके लिए दो हफ्तों का वक्त तय किया गया था। अभी एक हफ्ता हुआ है। पहले फेज के डिसइंगेजमेंट में भी चीनी सैनिक आखिरी के कुछ दिनों में पीछे गए थे तो हम अभी यह उम्मीद कर सकते हैं कि इस हफ्ते चीनी सैनिक गतिरोध खत्म करने की दिशा में कुछ कदम बढ़ाएंगे। हालांकि आर्मी हर हालत से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।
चीन पर भरोसा नहीं
बातचीत के बावजूद चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसका साफ संकेत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी पिछले दिनों अपने लेह दौरे के दौरान दिया। रक्षा मंत्री ने कहा कि अब तक जो भी बातचीत की प्रगति हुई है उससे मामला हल होना चाहिए। कहां तक हल होगा, इसकी गारंटी नहीं दे सकता। सूत्रों के मुताबिक, आर्मी यह भी मान कर चल रही है कि चीन शायद इस गतिरोध को सर्दी के मौसम तक खींच ले जाएं। भारतीय सेना भी इसके लिए तैयार है।
सर्दी के मौसम में तैनाती की तैयारी
एलएसी में करीब 30 हजार अतिरिक्त सैनिक तैनात हैं। एलएसी पर सामान्य तौर पर तैनात सैनिकों के लिए जाड़ों के लिए पूरी रसद और जरूरी उपकरण पहुंचाए जाते हैं क्योंकि उस मौसम में वहां करीब छह महीने रास्ता बंद हो जाता है। सेना इन दिनों अब अतिरिक्त सैनिकों के लिए भी पूरा इंतजाम करने में जुटी है ताकि अगर जाड़ों में भी अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती करने की जरूरत पड़ी तो कोई कठिनाई नहीं हो।
युद्ध की आशंका को लेकर भी तेज है तैयारी
इसके अलावा, भारतीय सेना युद्ध की आशंका के मद्देनजर भी पूरी तैयारी कर रही है। अगले हफ्ते फ्रांस से राफेल की पहली खेप आ रही है। वहीं, नौसेना के युद्धक विमानों को भी एलएसी पर निगरानी के लिए रखा गया है। नौ सेना ने अमेरिकी विमानवाहक पोत यूएसएस निमित्ज के साथ बंगाल की खाड़ी में युद्धाभ्यास किया। इसी प्रकार का युद्धाभ्यास जापान और फ्रांस की नौसेनाओं के साथ भी हो चुका है। वहीं, 300 करोड़ रुपये तक की पूंजीगत खरीद के लिए तीनों सेनाओं को फंडिंग का विशेष अधिकार दे दिया गया है। साथ ही, डीआरडीओ में निर्मित ‘भारत’ ड्रोन के जरिए चीनी हरकतों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।