लखनऊ का लाडला चला गया। लखनऊ को करीब से जानने वाला दूर हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी का दुलारा और बहनजी का धर्मभाई रुख्सत कर गया। वह शख्स जिसने पुराने लखनऊ की तंग संकरी सड़कों को नई शक्ल दी अब यादों के पन्नों में सिमट गया है। हम बात कर रहे हैं एमपी के दिवंगत राज्यपाल लालजी टंडन की।
आइए जानते हैं उनकी कुछ अनकही दास्तां:
माया से यूं हुआ धर्मभाई का रिश्ता
लालजी टंडन जब 1997 में मायावती की गठबंधन सरकार में नगर विकास मंत्री थे, उस वक्त उनकी तूती बोलती थी। के बीच बहन-भाई के रिश्ते का जिक्र करते हुए लखनऊ वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘गेस्ट हाउस कांड के दौरान ब्रह्म दत्त द्विवेदी ने मायावती को रेस्क्यू करने में काफी मदद की थी। टंडन जी का भी उनको सुरक्षित करवाने में काफी हाथ था। बीएसपी-बीजेपी के गठबंधन के लिए उनको श्रेय दिया जाना चाहिए। दोनों पार्टियों की करीबी और मित्रता जैसे संबंध बनाने में टंडन जी का बड़ा हाथ था। मायावती और उनके बीच बहुत अच्छे रिश्ते थे। मायावती ने उन्हें धर्मभाई बनाया था। वे रक्षा बंधन पर राखी बंधवाने जरूर पहुंचते थे।’
‘मायावती के बाद टंडनजी की ही चलती थी’
लखनऊ की सियासत पर करीबी नजर रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि मायावती के बाद उस दौर में टंडन जी की ही चलती थी। एक किस्सा है। पूर्वांचल में बीजेपी के किसी नेता का काम था। राज्य के एक बड़े अधिकारी आनाकानी कर रहे थे। कई पत्रकार मौजूद थे। टंडन जी ने उस बड़े अधिकारी को फोन पर डांट लगाई और कहा कि हमारी बात न मानने का अंजाम तुम्हें मालूम है। इससे साफ पता चल रहा था कि टंडन जी की गठबंधन सरकार में कितनी हनक थी। जाहिर है उस अधिकारी को भी पता था कि मायावती उनको कितना मानती हैं।
‘बीजेपी-बीएसपी गठबंधन की मजबूत कड़ी थे’
गठबंधन सरकार के दौर में लालजी टंडन के कई कार्यक्रमों को कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘वह बीजेपी-बीएसपी गठबंधन की मजबूत कड़ी थे। कल्याण सिंह नहीं चाहते थे कि 6-6 महीने वाला फॉर्म्युला अमल में आए। इसकी एक वजह यह भी थी कि उस दौर में कल्याण सिंह और लालजी टंडन से बनती नहीं थी। बाद में वाजपेयी से भी कल्याण सिंह की अनबन हो गई थी। उनको हटाकर रामप्रकाश गुप्ता को सीएम बनाया गया था।’
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‘अटल जी के उत्तराधिकारी माने जाते थे’
वाजपेयी से करीबी संबंधों का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘लालजी टंडन वाजपेयी जी के उत्तराधिकारी माने जाते थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में जब अटल जी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया तो लालजी टंडन को लखनऊ लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया। उस वक्त चुनाव प्रचार के दौरान हमेशा वह कहते थे कि मैं तो अटलजी की चरण पादुका लेकर चुनाव लड़ रहा हूं।’
‘मायावती उनका बहुत सम्मान करती थीं’
वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय आगे कहते हैं, ‘टंडन जी ऐसे व्यक्ति थे जिनका मायावती बहुत सम्मान करती थीं। इस वजह से गठबंधन की समस्याएं आसानी से दूर हो जाती थीं। बीजेपी के मंत्रियों में सबसे ज्यादा टंडनजी की ही चलती थी। यह बात छिपी नहीं है कि मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में किसी मंत्री की चलती नहीं थी। बहन जी से उनका बहुत मधुर संबंध था। टंडन जी अपनी तरफ से हमेशा कोशिश करते थे कि सौहार्दपूर्ण संबंध बने रहें।’
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पुराने लखनऊ की बदली सूरत, चाट पार्टी के शौकीन
पार्टी लाइन से ऊपर लालजी टंडन का सभी दलों में सम्मान रहा है। वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘टंडन जी इस तरह के राजनीतिज्ञ रहे हैं कि हर पार्टी में उनके अच्छे संबंध रहे। वह लखनऊ पश्चिम से जीता करते थे। लोगों की बात सुनते थे और अपने क्षेत्र की जनता का काम करते थे। शहरी विकास मंत्री थे। पुराने लखनऊ की जो चौड़ी सड़कें देखते हैं उसका श्रेय टंडन जी को दिया जाना चाहिए। मीडिया फ्रेंडली थे और अपने घर पर चाट पार्टी अकसर किया करते थे। हर किसी के लिए आसानी से उपलब्ध थे। पुरानी पीढ़ी के नेता थे अपने कर्मक्षेत्र के लोगों से नजदीकी से जुड़े थे। लखनऊ के इतिहास से अच्छी तरह वाकिफ थे। पुराने समाजसेवी और नेताओं को वह व्यक्तिगत रूप से जानते थे। इसके साथ ही लखनऊ शहर से वह अच्छे से वाकिफ थे।’
लखनऊ के इतिहास पर लिखी किताब अनकहा लखनऊ
हम इश्क के बंदे हैं…मजहब से ना वाकिफ। दो साल पहले लालजी टंडन ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ का विमोचन नवाब वाजिद अली शाह के शेर से किया था। उस वक्त किताब को लेकर छिड़े विवाद पर उन्होंने कहा, ‘जो लिखा है, वह सत्य है। पहले लखनऊ का नाम लक्ष्मणपुर था और बाद में लखनऊ हो गया। इसमें कोई विवाद नहीं है। लेकिन, अगर कोई विवाद करता है, तो जो गलत नहीं है मैं उसकी जुबान पर ताला नहीं लगने दूंगा।’
तब कहा था लखनऊ अवध का हिस्सा है…
लालजी टंडन ने अपनी किताब में लक्ष्मण टीले का जिक्र करते हुए लिखा कि पिछली सरकार में सौंदर्यीकरण के नाम पर वहां टीले वाली मस्जिद का बोर्ड लगाया गया। इस पर कुछ लोगों ने उन पर हिन्दुत्व को हवा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अगर राजनीति के चलते विवाद पैदा किया गया तो मेरे पास पूरा इतिहास है और मैं उसे पेश करूंगा, जिसके जिम्मेदार विवाद पैदा करने वाले होंगे। तब लालजी टंडन ने कहा था कि लखनऊ अवध (अयोध्या) का हिस्सा है। राम ने अयोध्या में रामराज स्थापित करने के बाद अपने भाई लक्ष्मण के जरिए इसे बसाया था। लेकिन लखनऊ के इतिहासकारों ने यहां का इतिहास पिछले 100 साल तक सीमित कर दिया।