इंसानों पर ऑक्सफर्ड वैक्सीन का ट्रायल सफल

कोरोना वायरस वैक्सीन की रेस में चल रही ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के इंसानों पर किए पहले ट्रायल के नतीजे सोमवार को The Lancet पत्रिका में छापे गए। रिसर्च पेपर में बताया गया है कि वायरल वेक्टर से बनी कोरोना वायरस वैक्सीन ChAdOx1 nCoV-19 दिए जाने पर वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पाई गई। साथ ही इसे सुरक्षित भी बताया गया है। इसके साथ ही अब इसे अगले चरण के ट्रायल के लिए भी ओके कर दिया गया है। बता दें ऑक्सफर्ड की वैक्सीन को दूसरी वैक्सीन से पहले ही आगे माना जा रहा था क्योंकि यह वायरस से ‘दोहरी सुरक्षा’ देती है।

रिसर्च पेपर में बताया गया कि वैक्सीन में जो वायरल वेक्टर इस्तेमाल किया गया है, उसमें SARS-CoV-2 का स्पाइक प्रोटीन है। दूसरे फेज 1/2 में 5 जगहों पर 18-55 साल की उम्र के लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया गया। कुल 56 दिन तक चले ट्रायल में 23 अप्रैल से 21 मई के बीच जिन लोगों को वैक्सीन दी गई थी उनमें सिरदर्द, बुखार, बदन दर्द जैसी शिकायतें पैरासिटमॉल से ठीक हो गईं। ज्यादा गंभीर साइड इफेक्ट्स नहीं हुए।

पेपर में आगे बताया गया है कि 14 दिन बाद स्पाइक प्रोटीन को पहचानने वाले T-cell देखे गए। 28 दिन पर इन प्रोटीन से लड़ने के लिए ऐंटीबॉडी (IgG) भी देखी गई जो दूसरी डोज दिए जाने पर बढ़ गई। 90% लोगों में वायरस पर ऐक्शन करने वाली ऐंटीबॉडी पहली डोज के बाद पाई गईं। दूसरी डोज देने पर सभी वॉलंटिअर्स में न्यूट्रिलाइज करने वाली ऐंटीबॉडी की ऐक्टिविटी देखी गई। ये दोनों साथ मिलकर शरीर को सुरक्षा देते हैं। दरअसल, पहले की स्टडीज में यह बात सामने आई है कि ऐंटीबॉडी कुछ महीनों में खत्म भी हो सकती हैं लेकिन T-cells सालों तक शरीर में रहते हैं।

इसके साथ ही यह कहा गया है कि ChAdOx1 nCoV-19 के नतीजे सुरक्षा मानकों के अनुसार हैं और ऐंटीबॉडी रिस्पॉन्स भी पैदा कर रहे हैं। ये नतीजे ह्यूमरल और सेल्युलर रिस्पॉन्स के साथ मिलकर इस वैक्सीन को बड़े स्तर पर तीसरे फेज के ट्रायल के लिए कैंडिडेट होने का सपॉर्ट करते हैं। ऑक्सफर्ड की टीम इस वैक्सीन पर ब्रिटेन की फार्मासूटिकल कंपनी AstraZeneca के साथ मिलकर काम कर रही है। Astrazeneca वैक्सीन के लिए एक इंटरनैशनल सप्लाई चेन तैयार कर रही है।

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