अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं का काम करना बेहद ही चुनौतीपूर्ण- प्रज्ञा प्रसाद

भिलाई/रायपुर (खबर CG AajTak)। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है. इस दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की कामयाबी, दृढ़ता, सशक्तिकरण और उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र में महिला दिवस मनाने की शुरुआत पहली बार 1975 में की गई थी. इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम भी हमारे समाज की उन महिलाओं की उपलब्धियों के बारे में बात करते हैं, जिन्होंने संघर्ष करते हुए और परेशानियों व असफलता से हार न मानते हुए अपनी पहचान बनाई. ऐसा ही एक नाम है प्रज्ञा प्रसाद का, जो छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश में लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रही हैं. उनका अनुभव करीब 15 सालों का है. वे पत्नी भी हैं और एक बेटी की मां भी. प्रज्ञा ने 2005 में भोपाल (मध्यप्रदेश) के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. उस वक्त वहां इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के 25 सीटों में उन्होंने प्रवेश परीक्षा के दौरान अपनी जगह बनाई. जब वे अपनी मास्टर्स डिग्री पूरी कर ही रही थीं कि दूरदर्शन मध्यप्रदेश में कैजुअल न्यूज रीडर के लिए उन्होंने परीक्षा दी, जिसमें उन्होंने क्वालिफाई कर लिया और दूरदर्शन मध्यप्रदेश में कैजुअल न्यूज रीडर बन गईं. इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वेबदुनिया इंदौर, ईटीवी हैदराबाद, स्वतंत्र वार्ता हैदराबाद, ZEE 24 घंटे छत्तीसगढ़, IBC 24, स्वराज एक्सप्रेस, लल्लूराम डॉट कॉम, ईटीवी भारत हैदराबाद और वर्तमान में NEWS 24 और लल्लूराम डॉट कॉम न्यूज पोर्टल रायपुर में कार्यरत हैं.

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अपने संघर्षों और चुनौतियों के बारे में बात करते हुए वे कहती हैं कि पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं का काम करना बेहद ही चुनौतीपूर्ण है वो भी शादी और बच्चे के हो जाने के बाद. वे कहती हैं कि न्यूज चैनल का काम बेहद दबाव भरा होता है. ऐसे में जब वे गर्भवती थीं, तो आठवें महीने में उन्हें ऑफिस में ही स्पॉटिंग हो गई. उनके बच्चे की जान को खतरा था. डॉक्टरों ने जैसे-तैसे उनकी और बच्चे की जान बचाई. इसके बाद बच्ची के जन्म के बाद भी कई समस्याओं का सामना किया. 102-3 डिग्री बुखार में भी बच्ची को ऑफिस लेकर गईं. नाइट शिफ्ट भी लिया, ताकि बच्ची को मां का पर्याप्त दूध मिल सके. उस वक्त वे दिन में घर का काम निपटाती थीं और रात को नौकरी करती थीं. सिर्फ 3 घंटे की नींद उन्हें मिल पाती थी. प्रज्ञा बताती हैं कि वे और उनके पति अलग-अलग शिफ्ट्स में काम करते थे और वीक ऑफ भी अलग-अलग लेते थे, ताकि बच्चे के लिए कोई न कोई हर वक्त घर में मौजूद रहे. वे बताती हैं कि करीब 5 सालों तक वे और उनके पति केवल एक-दूसरे को ऑफिस जाते या लौटते हुए ही देख पाते थे. क्योंकि जब वे ऑफिस में होती थीं, तो पति घर में और जब पति ऑफिस में होते थे, तो वे घर में..

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इतनी कठिनाईयों के बावजूद जॉब क्यों नहीं छोड़ा, तो इस पर प्रज्ञा ने कहा कि एक बार को ख्याल आया था, लेकिन फिर मैंने सोचा कि ये मैं क्या सोच रही हूं. फिर तो मैं अपनी आने वाली जेनरेशन को गलत शिक्षा दूंगी. अगर मैं जॉब छोड़ देती हूं तो मेरी बेटी को क्या मैसेज जाएगा कि पहले मेहनत करो, सपनों को पूरा करो, करियर बनाओ और फिर बच्चा पैदा होने के बाद जॉब छोड़ दो. खैर मेरी तो बेटी है, लेकिन अगर बेटा भी होता तब तो और बुरा मैसेज जाता कि अपनी पत्नी की जॉब बच्चे के बाद छुड़वा दो. पलायनवादी सोच अच्छी नहीं है और न तो बच्चा जीवन की बाधा है. वो तो ताकत है. बस जरूरत है परिवार और पति के थोड़े से सपोर्ट की, तो सब हो जाता है…

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पत्रकारिता के क्षेत्र में महिला-पुरुष के बीच होनेवाले भेदभाव के बारे में सवाल पूछने पर उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बहुत अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कुंवारे रहने पर तो उतनी दिक्कत नहीं आती, लेकिन शादीशुदा होने और बच्चे हो जाने के बाद मैनेजमेंट का भी नजरिया बदल जाता है. अक्सर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जाती है. ये सोचा जाता है कि निभा नहीं पाएगी, परिवार वाली है. लेकिन ऐसा सच में नहीं है. मेरा तो मानना है कि महिलाएं जितना 100 फीसदी काम पर ध्यान शादी और बच्चे के हो जाने के बाद देती है उतना पहले नहीं. शादी और बच्चे के बाद उसमें एक ठहराव और एक मैच्योरिटी आ जाती है. वो औरत ज्यादा जिम्मेदार होती है. परिवार पूरा हो चुका होता है, इसलिए ज्यादा फोकस्ड भी होती है और उम्र का अनुभव भी साथ होता है. कई बार मैनेजमेंट जानता है कि इसमें पोटेंशियल है, काम अच्छा है, फिर भी इनक्रीमेंट के वक्त भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. उन्हें लगता है कि काम करना इनकी मजबूरी है, क्योंकि फैमिली वाली महिला जल्दी-जल्दी जॉब स्विच नहीं करती है. या फिर दिमाग में ये होता है कि कहां जाएगी. परिवार यहां है, पति की भी नौकरी यहां है, तो यहां से छोड़कर कहां जाएगी. मां बनने के बाद जो फैसिलिटी सरकार द्वारा प्रदत्त है, उसे देकर भी मैनेजमेंट कहता है कि हम इतना फायदा दे तो रहे हैं. यानी हमारे हक को ही मैनेजमेंट अहसान कहकर हमारे ऊपर लाद देता है.

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मीडिया में कास्टिंग काउच को लेकर प्रज्ञा कहती हैं कि ये हर फील्ड में है. आपको तय करना है कि इससे निपटना कैसे है और आपको सफलता संघर्ष से पानी है या फिर शॉर्ट कर्ट से. उन्होंने कहा कि जब वे इस फील्ड में नई-नई आई थीं, तब उनसे भी कई लोगों ने डायरेक्टली या फिर इनडायरेक्टली ऐसा कहा, जिसे उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया और अपनी मेहनत से अपना मुकाम बनाया. उनका कहना है कि करियर की रफ्तार भले कछुए जैसी हो, लेकिन शॉर्टकर्ट से पाई गई सफलता की उम्र भी शॉर्ट ही होती है…

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