भिलाई(सीजी आजतक न्यूज)। छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा का बुरा हाल है। बीते चार साल से बीएड की मान्यता रद्द होने के बाद भी कल्याण कॉलेज में कोर्स चल रहा है। इसकी शिकायत कुलाधिपति (राज्यपाल) से लेकर एनसीईटी और सचिव छत्तीसगढ़ शासन उच्च शिक्षा से की गई थी, इसके बाद भी किसी ने भी इस दिशा में न तो कोई पहल की और न ही कोई कार्रवाई की। इस साल भी कल्याण कॉलेज का नाम बीएड कॉलेज की सूची में न सिर्फ शामिल की गई बल्कि प्रवेश भी प्रारंभ हो गया है। अब तक लगभग 50 लोगों ने एडमिशन भी ले लिया है। जब उच्च शिक्षा विभाग का ये हाल तो अन्य सरकारी विभागों के बारे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
विश्वविद्यालय की भूमिका संदेहास्पद
मामले में हेमचंद यादव विश्वविद्यालय (पुराना नाम दुर्ग विश्वविद्यालय) की भूमिका भी संदेहास्पद है। कॉलेज को मान्यता और डिग्री हेमचंद यादव विश्वविद्यालय देता है। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन को पता नहीं है कि एनसीईटी दिल्ली ने कल्याण कॉलेज बीएड की मान्यता रद्द कर दी है। मामले में हेमचंद विश्वविद्यालय और एससीईटी की मिलीभगत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। बताया जाता है कि ऐसा लेन-देन की वजह से किया जा रहा है। इससे यह प्रमाणित होता है कि उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। निजी बीएड कॉलेजों को मान्यता देने की तरह अनुदान प्राप्त कॉलेजों में भी लेन-देन का खेल जारी है।
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शिकायत का कोई असर नहीं
कल्याण कॉलेज की मान्यता रद्द होने और प्राचार्य डॉ आरपी अग्रवाल के खिलाफ तीन जगहों से वेतन लेने की शिकायत दो महीने पहले राज्यपाल, उच्च शिक्षा सचिव छत्तीसगढ़ शासन और कुलपति से की गई थी। किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।
आरटीआई में दी गुमराह करने वाली जानकारी
मामले को लेकर राष्ट्रीय सेवा योजना दिल्ली और हेमचंद यादव विश्वविद्यालय में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (आरटीआई) के तहत डॉ आरपी अग्रवाल की प्रतिनियुक्ति और तीन जगह से वेतन लेने की जानकारी मांगी गई थी। कॉलेज द्वारा आवेदक को गुराह करने वाली जानकारी दी गई है। जानकारी देने में छत्तीसगढ़ कल्याण समिति की भूमिका भी संदिग्ध रही है। समिति द्वारा प्राचार्य पद पर नियुक्ति के बाद अन्य जगहों में कार्यरत होने और एनओसी देने कहा गया था। लेकिन प्राचार्य बनने के बाद डॉ आरपी अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ कल्याण समिति को सही जानकारी नहीं दी। उन्होंने खुद के द्वारा शासन से अनुमति मांगने का पत्र समिति को दिखाकर तीन जगहों पर काम कर मानदेय लेते रहे। इस संबंध में समिति ने कभी भी उनसे सवाल जवाब नहीं कर उनका मौन समर्थन किया है। आवेदक राज्य सूचना आयोग में अपील करने वाले हैं। ऐसे में समिति के पदाधिकारियों की भी मुश्किलें बढ़ने वाली है।
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