ब्रजेश चौबे, मौहाभाठा 9425565277
रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास पिछड़ा वर्ग का ट्रंप कार्ड सुरक्षित है जिसका वे अभी तक इस्तेमाल नहीं किए हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में यह बेहद अहम कार्ड है जिसे आलाकमान भी इग्नोर नहीं कर सकता। आठ महीने के सियासी दंगल में अभी तक खुलकर यह ट्रंप कार्ड राजनीतिक हल्के से बाहर नहीं आया है, लेकिन जैसे ही गुटबाजी का खेल शुरू किया गया, दबे पांव कतिपय मीडिया वाले जो इस तरह के खेल में अवसर का लाभ लेने जुगत में हैं, वे खेलने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि भूपेश बघेल ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, इसके पीछे वजह यह है कि कांग्रेस के सीनियर लीडर व विधानसभा अध्यक्ष डॉ.चरणदास महंत एवं गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार रह चुके और अभी हैं। यदि पिछड़ा वर्ग की बात आती है तो ये दोनों ही नेता दांव खेल सकते हैं। संभवत: इसी बात को भांप कर भूपेश ट्रंप कार्ड नहीं खेल पा रहे हैं। वे मौन हैं लेकिन कुछ लोग उनकी आड़ में यह कार्ड खलेना शुरू कर दिए हैं। दरअसल, इस तरह कार्ड खेलने वालों की कमी प्रदेश में नहीं है। जब भी यह कार्ड खेलने की बारी आएगी इसकी शुरुआत दुर्ग जिले से होगी। इसमें वे लोग शामिल होंगे जो अभी सत्ता की मलाई चाट रहे हैं। इनमें एक अगाड़ी वर्ग का नेता भी शामिल हैं जो राज्यसभा जाने की जुगत में पिछले ढाई साल से भूपेश बघेल के दरबार में मत्था टेक रहे हैं। इनमें भी वे नेता पहले आगे आएंगे जो एक क्लब के रूप में रोजाना दुर्ग में एक पिटे हुए नेता के घर में बैठते हैं। इनकी बैठक में सारे लोग घिसे-पिटे मोहरें है जिनका वजूद खत्म हो चुका है। ये भूपेश बघेेल के माध्यम से खुद की सांझ की राजनीति को उज्ज्वल बनाए रखना चाह रहे हैं। इनके अलावा मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी यही काम करेगा और माहौल ऐसा बनाएगा कि कांग्रेस पिछड़ा वर्ग की उपेक्षा करने जा रही है। ये यह भी लिखेंगे कि भूपेश बघेल को पद से हटाए जाने से राज्य का सबसे बड़ा पिछड़ा वर्ग कांगे्रेस से किनारा कर लेगा जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। उनकी सोच है इसके चलते आलाकमान हिल जाएगा और चाह कर भी सीएम बदलने का फैसला नहीं ले पाएगा। संभवत: ऐसा कुछ भी नहीं होने जा रहा है। यदि हालात इस तरह के निर्मित हुए भी तो पिछड़ा वर्ग का ट्रंप कार्ड निश्चित रूप से खेला ही जाएगा। इसमें प्रमुख चेहरा पर्दे के पीछे होगा और तमाम चाटुकार एवं सत्ता की मलाई चाटने वाले नेता फ्रंटलाइन में होंगे। ये खुद की सियासी रोटी सेंकने किसी भी हद तक गुजर जाएंगे। इस कार्ड के खेले जाने से कोई जरूरी नहीं कि सिंहदेव पराजित हो जाएंगे। ऐसा कुछ भी होने नहीं जा रहा है। बकौल सिंहदेव हाईकमान फैसला ले चुका है, जो कभी भी अमल में लाया जा सकता है।
सिंहदेव की लगातार उपेक्षा
सिंहदेव के ढाई-ढाई साल कार्यकाल की बात उठाए जाने के करीब एक साल पहले से उनकी उपेक्षा की जा रही है। यहां तक कि उनके विभागों के नीतिगत फैसले भी खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल करने लगे हैं। इन फैसलों से सिंहदेव को पूरी तरह से अंधेरे में रखा जाता है। ऐसे भी अवसर आए जब सिंहदेव ने अपने ही विभाग के फैसलों का विरोध किया। यह सरकार की सेहत के लिए भले ठीक हो सकता है लेकिन कांग्रेस के लिए कतई नहीं। सिंहदेव के रवैय्ये से लगता है जल्दबाजी में नहीं बल्कि अपनी बारी की प्रतीक्षा में हैं। कुशल राजनीतिज्ञ वहीं होते है जो वक्त की नजाकत को समझ कर अपनी चाल समय पर चलते हैं। सिंहदेव के एक समर्थक विधायक कहते हैं, अगर उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो राज्य में अगली बार कांग्रेस पार्टी का सत्ता में आना मुश्किल है, इस बात से आलाकमान बेहतर ढंग से भिज्ञ है। सच तो यह है कि उस विधायक की बात पर भरोसा कौन करेगा? अभी सत्ता का मद सर चढ़कर बोल रहा है। वे यह भी कहते हैं सिंहदेव को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो वो मंत्री पद छोड़ कर चुपचाप बैठ जाएंगे, यह बात भूपेश बघेल और उनकी टीम जानती है। यदि सिंहदेव ऐसा करते हैं तो भूपेश बघेल की जीत और पार्टी की हार होगी। दिल्ली में 24 अगस्त को हुई चर्चा पर नजर बनाए भूपेश के समर्थक एक विधायक के अपने तर्क हैं। उनका कहना अगर छत्तीसगढ़ में कोई बदलाव किया जाता है तो इसकी हवा राजस्थान भी पहुंचेगी और आलाकमान ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा। दूसरा ये कि भूपेश बघेल आज की तारीख में ओबीसी का बड़ा चेहरा बन चुके हैं और कम से कम उत्तर प्रदेश चुनाव तक तो उन्हें पद से हटा कर कांग्रेस पार्टी कोई खतरा मोल लेगी ऐसा नहीं लगता। राजनीति के जानकारों की मानें तो राहुल गांधी छत्तीसगढ़ के सीएम और मंत्री से संभागों के विकास कार्यों पर नहीं बल्कि सुलहनामे पर चर्चा की।
ऑल इज वेल नहीं
राहुल गांधी के साथ तीनों नेताओं की लगभग साढ़े तीन घंटे चर्चा हुई। इसे ऑल इज वेल मान लिया गया, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। इसका नजारा मीटिंग खत्म होने के एक घंटे बाद छत्तीसगढ़ में देखने को मिल गया। भूपेश बघेल के खास समर्थक विधायक बृहस्पत सिंह ने सोशल मीडिया पर जो कंटेंट वायरल किया इससे कहीं से नहीं लगता कि अॅाल इज वेल है। रायपुर एयरपोर्ट का 25 और 28 अगस्त का नजारा भी यही कहता है। सच तो यह है राहुल गांधी कितना भी सिर पटक ले छत्तीसगढ़ में नए सिरे से जीवित की गई गुटबाजी खत्म होने वाली नही है। यह सत्ता खोने के बाद ही जाने वाली है। बृहस्पत सिंह ने भूपेश के पक्ष में कंटेंट वायरल कर एक तरह से सिंहदेव को नीचा दिखाने की कोशिश की है। बृहस्पत सिंह की वह सियासी हैसियत नहीं है लेकिन बना दी गई है। राहुल गांधी से इन तीनों ही नेताओं की मीटिंग चर्चा न होकर वन टू वन मुलाकात थी। राहुल गांधी सबसे पहले सिंहदेव से मिले, मुलाकात लगभग 45 मिनट चली। फिर सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात की, लगभग 2 घंटे बातचीत हुई। अंत में राहुल सूबे के प्रभारी पीएल पुनिया से मिले। इस मुलाकात के बाद जब तीनों नेता बाहर निकले तो सभी के बयानों में विरोधाभाष था। मुख्यमंत्री ने केवल इतना कहा राहुल गांधी से मुलाकात में विकास पर चर्चा हुई। बाकि पीएल पुनिया बताएंगे कहकर आगे निकल गए। पुनिया ने कहा राहुल गांधी से छत्तीसगढ़ के पांच संभागों के विकास कार्यों पर चर्चा हुई। सिंहदेव ने कहा खंड वृष्टि व अकाल के मसले पर बातचीत हुई। राजनीति के जानकारों की मानें तो राहुल गांधी विकास कार्यों पर चर्चा करने सूबे का सियासी पारा अनावश्यक नहीं बढ़ाएंगे। हो सकता है ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर भी बात न हुई हो लेकिन गुटबाजी को लेकर जरूर चर्चा हुई। अतीत में कांगे्रस गुटबाजी की बड़ी कीमत छत्तीसगढ़ में चुका चुकी है। राजस्थान व पंजाब में यही हो रहा है इसलिए किसी भी तरह से गुटबाजी को खत्म करने की दिशा में प्रयास किया गया। गुटबाजी खत्म हो पाएगी इसमें संदेह है। आलाकमान को अच्छी तरह पता है कि गुटबाजी भूपेश बघेल की ओर से शुरू की गई है। यह 25 अगस्त को एयरपोर्ट में सामने आ भी गया। इसके बाद भूपेश बघेल को सोच समझ कर पत्ते खेलने होंगे। दरअसल गुटबाजी खत्म नहीं की गई तो उनके नेतृत्व में 5 साल सरकार चल पाएगी या नहीं, यह अहम सवाल भविष्य में इंतजार कर रहा है। सवाल यह भी उठेगा गुटबाजी व आलाकमान के रवैय्ये से सिंहदेव का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? सवाल यह भी उठेगा कि कांग्रेस का क्या होगा? इन सवालों का जवाब दरअसल उस चर्चा में निहित हैं जो राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं और प्रभारी से की। हालांकि इन सवालों का जवाब इतनी जल्दी नहीं मिलेंगे। राहुल गांधी कोई भी ठोस निर्णय लेने की स्थिति पहले नहीं थे, लेकिन छत्तीसगढ़ में जो गुटबाजी का खेल किया गया इससे वे फैसला कर चुके हैं। उचित वक्त में वे घोषणा कर सकते हैं। इसके लिए अगले सप्ताह छत्तीसगढ़ प्रवास मुफीद समय हो सकता है। फैसला चाहे जो हो, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस गुटबाजी की आग में समा चुकी है जिसमें झुलसना तय है।
बघेल की कुर्सी को खतरा
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के दो पॉवर सेंटर के बीच का विवाद अंतिम समाधान की स्थिति में दिल्ली दरबार की समझाइश के बाद पहुंच गया है। राहुल गांधी के साथ दो दौर की बैठक के बाद भी अब कुछ भी बाकी नहीं है। आलाकमान के रुख के अनुसार संकेत है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है। इसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं। विकराल बहुमत के बाद भी उन्हें गुटबाजी कराने की जरूरत नहीं थी लेकिन इस ममाले में वे विफल हो चुके हैं। जहां तक सिंहदेव की बात है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है। यदि ऐसा न भी होता है तो मंत्रिपरिषद में अधिक ताकतवर बनाए जा सकते हैं, लेकिन दो पॉॅवर सेंटर के बीच तलवारें खिंची रहेगी। यह राजधानी के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट में भूपेश बघेल के बयान से स्पष्ट हो गया है। उन्होंने मीडिया के ढाई-ढाई साल सवाल के जवाब में कहा ढाई-ढाई साल का राग अलापने वाले सरकार को अस्थिर करने की साजिश कर रहे हैं। उनका इशारा सिंहदेव की ओर ही था। उन्होंने कहा सोनिया गांधी और राहुल गांधी जब तक चाहते हैं पद पर बना रहूंगा। जिस दिन वे कहेंगे वे सीएम पद छोड़ दूंगा। मुख्यमंत्री बघेल बैठक के दूसरे दिन 25 अगस्त को रायपुर लौट गए। इस दौरान स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट में जमकर शक्ति प्रदर्शन किया गया। ऐसा प्रदर्शन ढाई साल बाद पहली बार देखने को मिला। इसके पहले जब भूपेश बघेल का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित किया गया और वे दिल्ली से रायपुर पहुंचे तब हुआ था। एयरपोर्ट के प्रदर्शन में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे व खाद्य मंत्री अमरजीत भगत सहित आठ विधायक व निगम/मंडल के अध्यक्ष व पदाधिकारी मौजूद थे। भूपेश बघेल जिंदाबाद के जमकर नारे लगाए गए। इसका साफ आशय है राहुल गांधी गुटबाजी खत्म करने चाहे जितना भी प्रयास कर लें खत्म होने का सवाल ही नहीं है। सिंहदेव अनुकूल फैसले के इंतजार में दिल्ली में डटे रहे। पुनिया सहित दोनों नेताओं को इस बैठक के एजेंडे से जुड़ी कोई भी बात सार्वजनिक न करने की सख्त हिदायत दी गई थी। इसका दिल्ली में तीनों ने पालन किया, लेकिन भूपेश बघेल रायपुर पहुंच कर हिदायत तोड़ दिए। राहुल गांधी से मुलाकात के बाद एक बात बहुत जोर से उठी कि छत्तीसगढ़ में सीएम का चेहरा बदलेगा। इसके पीछे वजह यह है कि सूबे में गुटबाजी की नए सिरे से शुरुआत सरगुजा से ही कराई गई। इसे आलाकमान पूरी तरह से कड़ा संदेश देकर खत्म करना चाह रहा है।
सुलहनामा एयरपोर्ट में तार-तार
दिल्ली में राहुल गांधी ने सुलहनामे की कोशिश की यह 24 घंटे से ज्यादा चल न सकी। दिल्ली में हिदायत मानने वाले सीएम भूपेश बघेल रायपुर पहुंचते ही फट पड़े और सीधे तौर पर कहा ढाई-ढाई साल की रट लगाने वाले सरकार को अस्थिर करने की साजिश कर रहे हैं। वे सफल होने वाले नहीं है। साजिश की जा रही या नहीं और वे सफल होंगे या नहीं यह बाद का विषय है। सर्वप्रथम बात यह है कि बघेल ने राहुल के सुलह के प्रयास को एक झटके में खत्म क्यों कर दिया। इस ममाले में ज्यादा धैर्य की जरूरत उन्हीं की ओर से थी जिसमें वे खरे नहीं उतरे। इसी के साथ गुटबाजी का खेल शीर्ष स्तर से ही किया जा रहा खुलकर सामने आ गया। इसमें सरगुजा के विधायक/मंत्री मात्र मोहरे थे। गुटबाजी के खेल में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे व आधा दर्जन विधायक भी शामिल हो गए जो कांग्रेस के विषम परिस्थिति में पार्टी के साथ खड़े होने के बजाय नेता के साथ खड़े नजर आए। इनके अलावा रायपुर महापौर/सभापति एवं निगम/मंडल के पदाधिकारी भी गुटबाजी के खेल में शामिल हैं। सभी ने पार्टी लाइन को दरकिनार कर सीधे भूपेश बघेल के लिए गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे हैं। जाहिर है इन पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। आज की स्थिति में भूपेश के पक्ष में प्रदेश प्रभारी पुनिया से लेकर संगठन व सरकार के साथ पूरी कांग्रेस है। इसलिए कुछ भी होने वाला नहीं है। सूबे की सियासी तस्वीर ठीक राजस्थान की तरह हो चुकी है, लेकिन कांग्रेस के नेता यह जान लें नाराज नेता सचिन पायलट कम विधायक संख्या के बाद भी वजूद के मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर कहीं भारी पड़ रहे हैं। यही स्थिति सिंहदेव के साथ हैं। भूपेश बघेल द्वारा गुटबाजी का खेल चलाए जाने वे कमजोर नहीं बल्कि और मजबूत होकर उभरे हैं।
वक्त-वक्त की बात है
छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक ऐसा भी चेहरा है जो शहद में विष घोलने का काम करते हैं। वे खुद को यह मान कर चलते हैं कि उनसे जानकार, उनके जैसा बयान देने वाला कोई नहीं है। वे ही कांग्रेस के खेवनहार हैं, सच ऐसा कुछ भी नहीं है। वे वक्त के बड़े खिलाड़ी हैं जो सत्ता अथवा विपक्ष के साथ चिपके रह कर मलाई खाने में मगन रहते हैं। जब दिल्ली में राहुल गांधी के साथ सीएम भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव व प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के साथ वन टू वन चर्चा चल रही थी तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का ट्वीट आया कांग्रेस पार्टी व छत्तीसगढ़ की सरकार में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, जो भी है उसे सूबे की जनता को बताया जाना चाहिए। उन्होंने अपनी पार्टी का स्टैंड क्लीयर करते हुए कहा, वे तो दर्शक दीर्घा में बैठे लोग हैं, भला सरकार व कांग्रेस के भीतर क्या चल रहा उसे क्या जानें। जान भी जाएं तो कर भी क्या सकते हैं। इस बयान के बाद उस तथाकथित खेवनहार मंत्री का बयान आया दो साल बाद वे दर्शक दीर्घा में भी नजर नहीं आएंगे, हो सकता हो ऐसा हो, राजनीति में इस तरह के वाकयात होते रहते हैं। उनके बयान को भाजपा नेताओं ने अन्यथा नहीं लिया। सच यह भी है उस बयानवीर का एक दौर ऐेसा भी था, जब डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे, उस समय विपक्ष में रहते हुए खूब मलाई काटी थी। तब उनकी गणना राज्य सरकार के तेरहवें मंत्री के रूप में होती थी। उन पर डॉ. रमन सिंह की बड़ी मेहरबानी रही लेकिन वक्त उनके खिलाफ क्या गया वह नेता उन्हीं की औकात नपाने में लग गए। खैर, वक्त-वक्त की बात है….।
साभार: छत्तीसगढ़ स्पेक्ट्रम