जगदलपुर (सीजी आजतक न्यूज़). राजस्थान पत्रिका प्रबंधन पर मेहरबान बस्तर के श्रम विभाग ने पत्रिका प्रबंधन के अधिकारियों को अंतिम अवसर के बाद भी दो अतिरिक्त बोनस अवसर प्रदान करने का मामला सामने आया है। मामला कोरोना संक्रमण काल के चलते लॉकडाउन में राजस्थान पत्रिका से सेवा से पृथक किए गए कर्मचारी की श्रम विभाग में सुनवाई का है। मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देने से बचने के लिए पत्रिका प्रबंधन नए नए कारनामों को अंजाम दे रहा है। इसी कड़ी में पत्रिका जगदलपुर में कार्यरत कर्मचारी पूनमचंद बनपेला ने अकारण सेवा से बर्खास्तगी और मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन का लाभ नहीं दिए जाने की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय में की थी। इसके बाद पीएमओ के निर्देश पर सुनवाई जगदलपुर श्रम पदाधिकारी कार्यालय में शुरू हुई। मामले में अब तक कुल 7 बार विभिन्न तिथियों में सुनवाई हो चुकी है।
नियमत: 45 दिनों में मामले का निपटारा करने का प्रावधान
नियमत: 45 दिनों में मामले का निपटारा करने का प्रावधान है किंतु जगदलपुर श्रम विभाग ने 68 दिनों में (दो महीने) में मामले का निपटारा नहीं कर पाया। इतना ही नहीं 6 दिसंबर को अंतिम सुनवाई तिथि निर्धारित कर पत्रिका प्रबंधन को अनुपस्थित रहने पर एकपक्षीय कार्रवाई की बात कही थी। कुल 6 सुनवाई में 2 पेशी में अनावेदक पत्रिका प्रबंधन अनुपस्थित रहा। 6 जनवरी को अंतिम पेशी में श्रम अधिकारी ने आवेदक को यह कर कर अगला पेशी दिनांक दे दिया की वे स्वयं (श्रम अधिकारी) तीन पेशी में अनुपस्थित रहे। ऐसे में श्रम अधकारी के दायित्वों पर भी सवाल उठना लाजिमी है। अंतिम अवसर के बाद भी सुनवाई के लिए और मौका देना न सिर्फ श्रम कानून का उलंघन व मिलीभगत की ओर इशारा कर रहा है बल्कि आर्थिक लेन-देन कर मामले को लंबित करने का कारनामा किया जा रहा है।
हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा 5 मार्च 2018 को जारी आदेश के मुताबिक सेवा से बर्खास्त करने एवं मजीठिया से संबंधित सभी प्रकरणों को 45 दिवस के अंदर श्रम न्यायालय में ंरेफरेंस करने के आदेश का खुला उलंघन और अवमानना है।
निर्धारित समय पर उपस्थिति दर्ज न कराना भी अवमानना
6 जनवरी की पेशी में सुनवाई का समय सुबह 11 बजे नियत का गई थी। आवेदक निर्धारित समय के पहुंच गया था। अनावेदक 12 बजे के बाद पहुंचा फिर भी उसकी उपस्थिति दर्ज कर किस नियम/अधिनियम के तहत तिथि बढ़ाई गई है? यह अपने आपमें बड़ा सवाल है। इससे श्रम अधिकारी की कार्यशैली पर प्रश्न उठना लाजिमी है। श्रम अधिकारी पीडि़तों श्रमिकों को न्याय दिलाने के बजाए पत्रिका प्रबंधन के इशारों पर काम कर रहा है। इस मामले को लेकर श्रम अधिकारी के खिलाफ लेबर कमिश्नर के यहां लिखित शिकायत दर्ज कराने की तैयारी की जा रही है। 6 जनवरी तक कुल 7 पेशी में सुनवाई के बाद आईडी एक्ट में पंजीयन करने की बात कहना भी श्रम अधिकारी के नैतिक दायित्व और कानूनी जिम्मेदारी के निर्वहन पर प्रश्नचिन्ह लगाता है? क्या छह पेशी ऐसे ही बिना नियम कानून के तहत सुनवाई हुई है? क्या कानून को मजाक समझ लिया गया है या श्रम अधिकारी पत्रिका प्रबंधन का गुलाम होकर अपने आपको को कानून से ऊपर समझ रहा है?