राजस्थान पत्रिका का मामला : एएलसी ने कहा अगली पेशी में फोर्ट फोलियो के प्राधिकृत अधिकारी को भेजे

दुर्ग/भिलाई (सीजीआजतक न्यूज) .कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन में राजस्थान पत्रिका प्रबंधन द्वारा नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों की सहायक श्रम आयुक्त दुर्ग के यहां दूसरी पेशी 2 नवंबर सोमवार को थी। पेशी में दुर्ग भिलाई के अलावा कवर्धा, राजनांदगांव के कर्मचारी भी उपस्थित थे। दूसरी पेशी में प्रबंधन की ओर से रायपुर पत्रिका कार्यालय के यूनिट हेड अभिषेक चौधरी उपस्थित थे। उन्होंने भी पहली पेशी की तरह एएलसी के सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। सबसे पहले एएलसी ने सुनवाई में जवाब देने के लिए प्रबंधन की ओर से अधिकृत पत्र दिखाने कहा। इस पर उन्होंने वाट्सऐप से पत्र दिखाने की कोशिश की, इस पर एएलसी ने जमकर फटकार लगाते हुए कहा कि मैं यहां मोबाइल से प्रिंट निकालने के लिए नहीं बैठा हूं? उन्होंने कहा कि अगली पेशी में पूरी तैयारी और सभी आवश्यक दस्तावेज के साथ उपस्थित होने निर्देशित किया।

फाल्स पोलियो कंपनी का अस्तित्व वर्ष 2017 से समाप्त हो चुका
यूनिट हेड ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान काम से निकाले गए कर्मचारियों के संबंध में कहा वे सभी प्लेसमेंट कंपनी के कर्मचारी है। हमने प्लेसमेंट कंपनी से मैन पावर कम करने कहा था तो उन्होंने काम से निकाल से निकाल दिया है। एएलसी ने कहा कि काम से निकालने में श्रम कानून का पालन नहीं किया गया है। इसी तरह उन्होंने कहा कि प्रिंसिपल नियोक्ता पत्रिका प्रबंधन है तो उसकी भी जिम्मेदारी बनती है कि श्रम कानूून फस्र्ट कम, लास्ट गो (प्राकृतिक न्याय) की अवधारण का पालन करे। वहीं फोर्ट फोलियो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के बारे में सवाल जवाब किए जाने पर अधिकृत व्यक्ति सकारात्मक जवाब नहीं दे पाया। सुनवाई के दौरान ही फोर्ट फोलियो कंपनी के बारे में नेट से जानकारी निकालने पर ज्ञात हुआ कि कंपनी का अस्तित्व 2017 से समाप्त हो चुका है। इसी तरह कंपनी गठन का उद्श्ेय, कार्यक्षेत्र, कौन-कौन पदाधिकारी है, कितनी मेंबर शुल्क, वार्षिक आय-व्यय, जीएसटी नंबर (ऑडिट रिपोर्ट) आदि के बारे में अभिषेक चौधरी कुछ भी जानकारी नहीं दे पाया। उन्होंने सुनवाई के दौरान दुर्ग संभाग में कंपनी का पता कसारीडीह दुर्ग जिला मुख्यालय बताया जिसका सत्यापन करने पर कोई भौतिक और भौगोलिक अस्तित्व नहीं मिला।

क्या है फोर्ट फोलियो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी
बता दें कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष नवंबर 2011 में मीडिया कर्मचारियों (पत्रकार और गैर पत्रकार) के लिए मजीठिया वेजबोर्ड वेतनमान की अनुशंसा की है। इसके तहत कर्मचारियों के लिए सम्मानजनक वेतनमान की व्यवस्था की है। (मजीठिया वेजबोर्ड वेतनमान न देना पड़े) इससे बचने के लिए देश के नामी मीडिया घरानों ने (राजस्थान पत्रिका प्रबंधन सहित अन्य) फर्जी कपंनी बनाकार वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों को उस संस्था में दोबारा नियुक्ति देकर कोरोना संक्रमण की आड में बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इससे वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों के समक्ष गंभीर आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है।

क्यों जरुरत पड़ी वेजबोर्ड गठन की
बता दें कि देश के मीडिया घराने सरकार से सभी सुख सुविधाए प्राप्त कर लेते थे और कर्मचारियों का कम वेतन और अन्य तमाम सुविधाएं न देकर उनका शोषण करते थे। जैसे सस्ती दर पर पॉश कालोनी की करोड़ों की जमीन को टोकन मनी में लेने सहित अन्य सरकारी सुविधाएं प्राप्त करते थे। पीएम सहित अन्य केंद्रीय मंत्रियों के साथ के विदेश यात्रा में मीडिया डेलीगेट्स में रूप में समाचार पत्र के मालिक और संपादक विदेशों का मुफ्त में सैर करते थे। वहीं फील्ड पर दिन-रात काम करने वाले पत्रकारों को इस तरह की सुविधाओं से वंचित रखे जाते थे। इसी तरह की सुविधाओं पर रोक लगाने एवं पत्रकारों को भी सम्मानजनक वेतनमान देने माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सभी कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड वेतनमान की व्यवस्था की है।

मजीठिया वेजबोर्ड की सुनवाई दीपावली के बाद होगी
पत्रिका से निकाले गए कर्मचारियों ने मजीठिया वेजबोर्ड वेतनमान की मांग को लेकर सहायक श्रम आयुक्त के यहां दूसरी पेशी में नया आवेदन दिया है। एएलसी ने आवेदन स्वीकार करते हुए इस मामले की दीपावली त्यौहार के बाद अलग से सुनवाई करने कहा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में आता है लिहाजा वे ही इस मामले की सुनवाई करेंगे।

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