प्रशांत भूषण से इतना क्यों खफा SC, जानिए

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने चर्चित वकील शुरू की है। शीर्ष अदालत ने स्वतः संज्ञान लेकर यह कार्यवाही शुरू की है। इस मामले में बुधवार को सुनवाई है। आइए जानते हैं कि पूरा मामला क्या है, आखिर किसलिए भूषण को अवमानना केस का सामना करना पड़ रहा है।

क्या है मामला?
भूषण के खिलाफ अवमानना की यह कार्यवाही न्यायपालिका खासकर उच्च न्यायपालिका के खिलाफ उनके सार्वजनिक बयानों के लिए शुरू की गई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों के खिलाफ ट्वीट किए हैं।

किस ट्वीट को लेकर शुरू हुआ है अवमानना का केस?
मामला भूषण के ट्वीट से जुड़ा है। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भूषण के किस खास ट्वीट या किन ट्वीट्स को अवमानना के दायरे में रखा है।

कोर्ट ने कब लिया स्वतः संज्ञान?
सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना केस की कार्यवाही शुरू की। सर्वोच्च न्यायालय के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, मंगलवार शाम 3.48 बजे भूषण के खिलाफ स्वतः संज्ञान से SMC(Crl)1/2020 नंबर का केस दर्ज किया गया।

भूषण के अलावा क्या कोई और भी पार्टी है?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के अलावा ट्विटर इंडिया को भी पार्टी बनाया है यानी दोनों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई है।

किस बेंच में सुनवाई?
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच इस मामले की सुनवाई करने वाली है।

यह सिविल कंटेप्ट ऑफ कोर्ट केस है या क्रिमिनल कंटेंप्ट केस?
कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट ऐक्ट, 1971 के मुताबिक अदालत की अवमानना तो तरह की हो सकती है- सिविल कंटेंप्ट या क्रिमिनल कंटेंप्ट। प्रशांत भूषण के खिलाफ मौजूदा कार्यवाही आपराधिक अवमानना यानी क्रिमिनल कंटेंप्ट के तहत की जा रही है।

क्या होता है क्रिमिनल कंटेंप्ट केस?
अगर कोई शख्स अदालत अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देता है या उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश करता है या उसके मान सम्मान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है या अदालती कार्यवाही में दखल देता है या खलल डालता है तो यह क्रिमिनल कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का मामला होता है। इस तरह की हरकत चाहे लिखकर की जाए या बोलकर या फिर अपने हाव-भाव से ऐसा किया जाए ये तमाम हरकतें कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में होंगी। ऐसे मामलों में अदालत स्वतः संज्ञान ले सकती है या जब उसकी जानकारी में यह मामला आए तो ऐसा करने वालों को अदालत नोटिस जारी कर सकती है।

सिविल कंटेंप्ट केस क्या होता है?
जब किसी अदालती फैसले की अवहेलना होती है तब वह सिविल कंटेप्ट होता है। जब कोई अदालती आदेश हो या फिर कई जजमेंट हो या कोई डिक्री हो और उस आदेश का तय समय पर पालन न हो। साथ ही अदालत के आदेश की अवहेलना हो रही हो तो यह मामला सिविल कंटेप्ट का बनता है। सिविल कंटेप्ट के मामले में जो पीड़ित पक्ष है वह अदालत को इस बारे में सूचित करता है और फिर अदालत उस शख्स को नोटिस जारी करती है जिस पर अदालत के आदेश का पालन करने का दायित्व होता है।

कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के दोषी के लिए सजा क्या है?
अगर कोई शख्स कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम 6 महीने तक की कैद या 2 हजार रुपये तक जुर्माना या फिर दोनों ही सजा दी जा सकती है।

आगे क्या हो सकता है?
इस मामले में अब प्रशांत भूषण अदालत में अपना पक्ष रखेंगे। अगर वह अपनी बेगुनाही साबित कर देते हैं तो केस तभी खत्म हो जाएगा। दलीलों के बाद अगर अदालत ने उन्हें अवमानना का दोषी माना तब तो उन्हें सजा मिलेगी। ऐसे मामलों में अक्सर आरोपी अदालत से माफी मांग लेते हैं। ऐसी सूरत में अदालत पर निर्भर करता है कि वह माफी स्वीकार करे या नहीं। अगर कोर्ट ने माफी स्वीकार कर ली तो कोई सजा नहीं मिलती और दोषी को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर- गलत ढंग से सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर ‘चौकीदार चोर है’ वाले बयान को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ भी कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का केस चला था। उस मामले में कांग्रेस नेता ने सुप्रीम कोर्ट में माफी मांग ली थी, जिसके बाद केस को बंद कर दिया गया।

भूषण के खिलाफ पहले से चल रहे अवमानना केस की क्या है स्थिति?
प्रशांत भूषण के खिलाफ कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का एक अन्य केस पहले से चल रहा है। वह मामला 2009 का है और उसकी भी इसी हफ्ते 24 जुलाई को सुनवाई होनी है। तब भूषण ने पत्रिका तहलका को दिए इंटरव्यू में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और तत्कालीन सीजेआई एस. एच. कपाड़िया के खिलाफ बयान दिए थे। उस मामले में भूषण के अलावा तहलका के तत्कालीन संपादक तरुण तेजपाल भी पार्टी हैं।

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