राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग () खत्म होने के साथ बीजेपी ने एक बार फिर को चारों खाने चित कर दिया। प्रदेश में अपनी बहुमत की सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस राज्यसभा चुनावों को बदला लेने के पहले अवसर के रूप में देख रही थी। इसीलिए, उसने प्रदेश की तीसरी सीट पर जीत का मंसूबा बांध रखा था। कांग्रेस की रणनीति गैर-बीजेपी विधायकों का समर्थन हासिल कर दूसरी सीट अपने नाम करने की थी, लेकिन सीएम शिवराज सिंह () की रणनीति और गृह मंत्री के दांव से उसके मंसूबे धरे के धरे रह गए।
प्रदेश विधानसभा में गैर कांग्रेस और बीजेपी दलों के 7 विधायक हैं। इनमें 2 बीएसपी, 1 एसपी और 4 निर्दलीय विधायक हैं। ये सभी विधायक हाल तक कमलनाथ की सरकार का विधानसभा में समर्थन कर रहे थे। हालांकि, कमलनाथ की सरकार गिरने के बाद वे बीजेपी को समर्थन का ऐलान कर चुके थे। फिर भी, कांग्रेस को उम्मीद थी कि राज्यसभा चुनावों के लिए वह उन्हें अपने पाले में लाने में कामयाब होगी, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका।
कांग्रेस के इरादों को चूर करने के लिए बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मोर्चा संभाला। शिवराज ने लाख दबावों के बावजूद वोटिंग से पहले अपनी कैबिनेट का विस्तार नहीं किया। उन्हें आशंका थी कि मंत्री नहीं बन पाने वाले विधायक असंतुष्ट होकर चुनाव में मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। इतना ही नहीं, बीजेपी के पुराने नेताओं और ज्योतिरादित्य सिंधिया-समर्थक गुट के बीच मतभेद की खबरों को देखते हुए वोटिंग से दो दिन पहले उन्होंने खुद ही पहल की।
इधर, पार्टी के संकटमोचक कहे जाने वाले मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पर्दे के पीछे रहकर सीएम की रणनीति को अंजाम तक पहुंचाया। वे असंतुष्ट नेताओं से खुद मिले। केवल अपनी पार्टी ही नहीं, उन्होंने एसपी, बीएसपी और निर्दलीय विधायकों से भी लगातार संपर्क बनाए रखा। इसी का नतीजा था कि वोटिंग से एक दिन पहले ही यह तय हो गया था कि कांग्रेस किसी हाल में दूसरी सीट नहीं जीत सकती।
कांग्रेस के लिए मुश्किलें अभी कम होती नहीं दिख रही हैं। जल्द ही प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। इनमें से 16 ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं जहां की पार्टी से विदाई के बाद कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।