भोपाल।
बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल अब नहीं रहे। लखनऊ के मेदांता अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। जीवन भर आरएसएस और बीजेपी से जुड़े रहे टंडन ने 2009 में लखनऊ लोकसभा सीट से जीत हासिल कर पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत की रक्षा की थी। हालांकि, इससे पहले ही टंडन पहली बार तब चर्चा में आए जब वे यूपी की पूर्व सीएम मायावती से राखी बंधाकर उनके मुंहबोले भाई बने थे।
बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल अब नहीं रहे। लखनऊ के मेदांता अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। जीवन भर आरएसएस और बीजेपी से जुड़े रहे टंडन ने 2009 में लखनऊ लोकसभा सीट से जीत हासिल कर पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत की रक्षा की थी। हालांकि, इससे पहले ही टंडन पहली बार तब चर्चा में आए जब वे यूपी की पूर्व सीएम मायावती से राखी बंधाकर उनके मुंहबोले भाई बने थे।
22 अगस्त, 2002 को लालजी टंडन और मायावती की एक साथ तस्वीरें अखबारों की सुर्खियां बनी थी। तस्वीर में मायावती उन्हें चांदी की राखी बांधते हुए नजर आई थीं। मायावती ने उन्हें अपना भाई भी बताया था। हालांकि, यह रिश्ता विशुद्ध राजनीतिक था और यह चांदी की राखी से ज्यादा आगे नहीं बढ़ा। बाद के वर्षों में दोनों की ऐसी तस्वीरें भी नहीं आईं।
बीएसपी के साथ गठबंधन के सूत्रधार
इससे पहले 1990 के दशक में पहली बार यूपी में बीजेपी और बीएसपी की गठबंधन सरकार बनी थी। इसमें सबसे अहम भूमिका टंडन ने ही निभाई थी।
वाजपेयी के करीबी
12 साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े टंडन शुरुआत में ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपर्क में आए और जीवन भर उनके साथ रहे। उन्हें वाजपेयी के सबसे ज्यादा करीबी राजनीतिज्ञों में गिना जाता था।