पूर्व कप्तान को गर्व है कि वह उस पीढ़ी का हिस्सा रहे, जिसने भारतीय हॉकी में नई जान आते हुए देखी और उन्हें अपने शानदार करियर में एकमात्र मलाल यह है कि वह देश के लिए ओलिंपिक पदक नहीं जीत पाए। सरदार का हालांकि मानना है कि मनप्रीत सिंह की अगुआई वाली मौजूदा टीम के पास अगले साल तोक्यो में चार दशक के इंतजार को खत्म करने का अच्छा मौका है।
सरदार ने कहा, ‘हॉकी में मेरा सफर संतोषजनक रहा क्योंकि मैं ऐसे युग का हिस्सा था, जिसमें खेल में नई जान आई। 2012 में लंदन ओलिंपिक में अंतिम स्थान पर रहने के बाद 2018 में जब मैंने संन्यास लिया तो दुनिया की छठे नंबर की टीम तक का हमने लंबा सफर तय किया।’
उन्होंने कहा, ‘अब मौजूदा टीम की रैंकिंग चौथी है, जिससे निश्चिततौर पर तोक्यो ओलिंपिक अभियान से पहले इस टीम का मनोबल काफी बढ़ेगा।’ ओलिंपिक में भारतीय टीम का इतिहास शानदार रहा है और उसने 8 स्वर्ण पदक के अलावा एक रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं।
भारत ने हालांकि खेलों के महाकुंभ में पिछली सफलता 40 साल पहले 1980 में मॉस्को ओलिंपिक में हासिल की थी जब उसने अपना 8वां और अभी तक का अंतिम स्वर्ण पदक जीता था। सरदार ने हॉकी इंडिया की विज्ञप्ति में कहा, ‘314 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के बाद मुझे हमेशा खेद रहेगा कि मेरे घर में ओलिंपिक पदक नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन पिछले साल इस टीम को लगातार मजबूत होते हुए देखना और इस साल एफआईएच हॉकी प्रो लीग में वे जिस तरह खेले, मुझे उम्मीद है कि वे ओलिंपिक पदक जीत सकते हैं। तोक्यो में निश्चिततौर पर उनके पास वास्तविक मौका है।’
हरियाणा के सिरसा के इस 34 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, ‘मैं समझ सकता हूं कि भारत में सभी खिलाड़ियों के लिए यह मुश्किल समय है क्योंकि कोरोना वायरस महामारी ने ओलिंपिक तैयारी के लिए कई चुनौतियां पेश की है लेकिन भारतीय हॉकी के कोर संभावित पुरुष और महिला खिलाड़ियों को मेरी सलाह है कि वे अपने लक्ष्य को लेकर एकाग्र रहें।’
सरदार ने अपने 12 साल के करियर में सबसे यादगार लम्हा 2014 एशियाई खेलों में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीतकर रियो ओलिंपिक 2016 के लिए क्वॉलिफाई करने को बताया।