कच्चे तेल की कम कीमतों और सप्लाई में दिक्कत से बचने के लिए भारत ने बड़ा अहम फैसला किया है। देश के भीतर तीन सामरिक ऑयल रिजर्व हैं। पहली बार भारत ने विदेश में इमर्जेंसी ऑयल रिजर्व बनाने का फैसला किया है। भारत अपना तेज अमेरिका में जमा करेगा। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को यह ऐलान किया। दोनों देशों के बीच सामरिक पेट्रोलियम रिजर्व को लेकर एमओयू साइन हो गया है। इस ऑयल रिजर्व की क्षमता कितनी होगी, अभी यह नहीं बताया गया है लेकिन माना जा रहा है भारतीय रिजर्व से ज्यादा कैपेसिटी वाला रिजर्व ही बनाया जाएगा। यह कदम अमेरिका और भारत के सामरिक रिश्तों को डिफेंस से आगे ले जाने की दिशा में उठाया गया है।
ऑयल रिजर्व बाहर से दिखने में बड़े-बड़े धब्बों जैसे नजर आते हैं। जमीन के नीचे सुरंगों का जाल होता है और गुफाएं होती हैं जिनमें तेल भरा जाता है। इमर्जेंसी ऑयल सप्लाई के लिए अंडरग्राउंड ठिकानों को ही सबसे सेफ माना जाता है। ये जमीन से दो हजार से चार हजार फीट नीचे होते हैं। इतने प्रेशर में लीक होने की संभावना न के बराबर होती है। ऊपर से हर गुफा के टॉप और बॉटम का तापमान भी अलग -अलग होता है। इनमें से तेल निकालने के लिए नीचे से पानी भरा जाता है। तेल ऊपर आ जाता है।
अमेरिका में तेल स्टोर करने को लेकर भारत के पास दो विकल्प हैं। पहला कि जब तेल के दाम कम हों तब कच्चे तेल वाली गुफाओं को लीज पर लिया जाए। दूसरा ये कि लीज ले ली जाए और तेल कीमत कम होने पर अलग से खरीदा जाए ताकि बाद में मुनाफा हो।
अमेरिका में किसका या कितना तेल स्टोर किया जाएगा, अभी इसपर बात नहीं हुई है। सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल का अमेरिका के साथ टर्म कॉन्ट्रैक्ट है, वह तेल खरीद सकती है। नहीं तो सरकार भी तेल का पैसा दे सकती है जैसा उसने मार्च में तेल के दाम कम होने पर सामरिक रिजर्व्स को भरते समय किया था।
कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप शुरू होने से पहले भारत दिनभर में साढ़े चार मिलियन बैरल तेल की खपत कर रहा था। उसके पास 38 मिलियन बैरल का रिजर्व है जो कि अभी के हिसाब से 9-10 दिन आराम से चल जाएगा। दुनिया में सबसे बड़ा ऑयल रिजर्व अमेरिका का है। उसके पास 714 मिलियन बैरल स्टोर करने की क्षमता है।
भारत दुनिया में तेल का तीसरा सबसे बड़ा कंज्यूमर है इसलिए कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर यहां बहुत देखने को मिलता है। सामरिक पेट्रोलियम भंडार संकट के लिए होते हैं। प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या अन्य आपदाओं के दौरान सप्लाई डिस्टर्ब होने पर इनका यूज किया जाता है। भारत के भीतर तीन रिजर्व- विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), मंगलौर (कर्नाटक) और पाडुर (कर्नाटक) में स्थित हैं। इनके अलावा सरकार ने चंदीखोल (ओडिशा) और पादुर (कर्नाटक) में दो और फैसिलिटी बनाने का ऐलान किया है। उसके बनने के बाद भारत के पास 22 दिनों तक का ऑयल रिजर्व होगा।
1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान तेल संकट उत्पन्न हुआ था और तब हमारे पास केवल 3 दिन के लिए तेल था। इसी के बाद ऑयल रिजर्व बनाने का काम शुरू हुआ। भारत ने अपनी सामरिक 3 तेल गुफाओं के निर्माण पर 4,100 करोड़ रुपये खर्च किए थे। अब भारतीय रिफाइनरीज के पास भी 65 दिनों के लिए पर्याप्त तेल भंडारण की क्षमता है।