आर्मीनिया-अजरबैजान में खूनी संघर्ष, पूरा व‍िवाद

येरेवान/बाकू
यूरोप और एशिया के मध्‍य में बसे दो देशों आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच तनाव अपने चरम पर है। पिछले दिनों हुए संघर्ष में अजरबैजान के जनरल समेत दोनों देशों के 16 सैनिकों की मौत हो गई थी। इससे दोनों देशों के बीच 4 दशकों से चला आ रहा व‍िवाद और ज्‍यादा गहरा गया है। उधर, तुर्की भी अजरबैजान के समर्थन में आ गया है। तुर्की के रक्षामंत्री ने धमकी दी है कि आर्मीनिया को इस हमले की कीमत चुकानी होगी।

अजरबैजान से आ रही खबरों के मुताबिक रविवार को आर्मीनिया की सेना ने देश की उत्‍तर पश्चिमी सीमा पर अजरबैजान की सैन्‍य चौकियों पर तोपों से भीषण हमला किया था। इसके जवाब में अजरबैजान की सेना ने भी जवाबी कार्रवाई। इसमें दोनों ही देशों के 16 सैनिकों की मौत हो गई है। दोनों पक्षों के बीच इस भीषण संघर्ष से पूरे इलाके में हालात बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं।

वर्ष 1990 के दशक तक दोनों ही देश सोवियत संघ के हिस्‍सा थे। दोनों ही देशों के बीच पहाड़ी इलाके में युद्ध भी हो चुका है लेकिन अभी तक इस विवाद का समाधान नहीं हुआ है। नगर्नो-कराबाख इलाका अंतरराष्‍ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्‍सा है लेकिन उस पर आर्मीनिया के जातीय गुटों का कब्‍जा है। हालांकि यह संघर्ष इस विवादित इलाके उत्‍तर में हुआ है। अजरबैजान के मुताबिक तोवुज जिले में भीषण संघर्ष हुआ है।

अमेरिका, रूस समेत दुनियाभर के देशों ने इस संघर्ष पर गहरी चिंता जताई है। बता दें कि दोनों ही पक्ष सीमा पर एक-दूसरे पर नागरिकों ठिकानों को निशाना बनाने के आरोप लगाते रहते हैं। अजरबैजान ने आरोप लगाया कि आर्मीनिया की गोलाबारी में कई नागरिक और सैनिक मारे गए हैं। उधर, आर्मीनिया ने भी आरोप लगाया है कि अजरबैजान उसके बेर्ड कस्‍बे पर गोले बरसा रहा है। यह संघर्ष ऐसे समय पर हुआ है जब अजरबैजान के राष्‍ट्रपति अलियेव ने कुछ दिनों पहले ही अंतरराष्‍ट्रीय मध्‍यस्‍थों की आलोचना की थी।

अजरबैजान इस बात से नाराज है कि 30 साल बाद भी मध्‍यस्‍थ विवाद का समाधान नहीं करा पा रहे हैं। दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे पर विवाद को भड़काने का आरोप लगाया है। अब सबकी नजरें रूस पर टिकी हुई हैं। रूस ने ही वर्ष 2016 में दोनों के बीच सीजफायर कराया था। वर्ष 2016 में हुए ‘अप्रैल वॉर’ में 200 सैनिक और आम नागरिक मारे गए थे। वर्ष 1990 के दशक में अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच भीषण युद्ध हुआ था।

इस दौरान आर्मीनिया ने नगर्नो-कराबाख में बहुमत वाले जातीय आर्मीनियाई गुटों का समर्थन किया था। इस युद्ध के बाद वर्ष 1994 में दोनों के बीच सीजफायर हुआ था। इस दौरान नगर्नो-कराबाख में एक जनमत संग्रह कराया गया था जिसमें ज्‍यादातर लोगों ने अजरबैजान का बॉयकाट किया था। स्‍थानीय लोगों ने दोनों देशों से जुड़ने के बजाय स्‍वतंत्र होने का समर्थन किया था। इसके बाद वर्ष 2016 में दोनों देशों के बीच तनाव फिर बढ़ गया और 4 दिनों तक भीषण संघर्ष हुआ था। द ऑर्गनाइजेशन फॉर सिक्‍यॉरिटी एंड कोऑरेशन इन यूरोप दोनों देशों के बीच मध्‍यस्‍थता का प्रयास कर रहा है।

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