राजस्थान में कांग्रेस के भीतर अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट () की लड़ाई में ऐक्शन, ड्रामा, इमोशंस, रोमांच और सस्पेंस का खेल जारी है। कांग्रेस ने बागी तेवर अपनाए डेप्युटी सीएम पायलट और उनके 2 समर्थक मंत्रियों को कैबिनेट से हटाने का ऐलान कर दिया है। अब सबकी निगाह पायलट के अगले कदम पर है। उपमुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छीने जाने का मतलब है कि पायलट के लिए पार्टी के दरवाजे बंद हो चुके हैं। अब वह अपने समर्थकों के साथ तीसरा मोर्चा बनाएंगे या फिर सिंधिया की राह पकड़ बीजेपी का दामन थामेंगे, निगाहें इसी पर टिकी हुई हैं।
बीजेपी पायलट को हसरत भरी निगाहों से देख रही है और इसकी वजह है उनका जनाधार। अब जब पायलट की कांग्रेस से विदाई की स्क्रिप्ट लगभग लिखी जा चुकी है तो अब तक वेट ऐंड वॉच मोड में रही बीजेपी सक्रिय हो सकती है। अगर पायलट बीजेपी के साथ आए तो उसे कम कम से कम 49 सीटों पर फायदा दिला सकते हैं।
पायलट भले ही खुद के बीजेपी के संपर्क में होने की अटकलों को (Rajasthan Political Crisis) खारिज कर चुके हैं। बीजेपी भी पूरे सियासी ड्रामे में खुद की किसी भी भूमिका से इनकार करती आ रही है। लेकिन सियासत अगर इतनी ही आसान होती तो कोई भी इसका धुरंधर बन जाता। पायलट के लिए अब कुछ खास विकल्प बचे भी नहीं हैं। अब तक वह खामोश हैं, मीडिया में सीधे-सीधे नहीं आ रहे और न ही कोई ट्वीट कर रहे थे लेकिन अब तो उन्हें सामने आना ही होगा। अब उन्हें तय करना होगा कि अलग मोर्चा बनाएंगे या बीजेपी का दामन थामेंगे।
2018 में पायलट ने वह कर दिखाया जो दूर की कौड़ी थी
सचिन पायलट का ही करिश्मा था कि हाल के सालों में राजस्थान की सियासत में दो विपरीत ध्रुव कहे जाने वाले गुर्जर और मीणा समुदाय की दूरियां बहुत हद तक पट गईं। अतीत में आरक्षण के मुद्दे पर हुईं आपसी हिंसक झड़पों में दोनों ही समुदाय के कई लोगों की जान जा चुकी है। इसके बाद इनमें कटुता इस कदर बढ़ी कि दोनों के साथ आने के बारे में कोई सोच तक नहीं सकता था। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पायलट ने इसे कर दिखाया।
गुर्जर और मीणा को एक साथ साधने में कामयाब हुए पायलट
2004 में पहली बार सांसद बनने के साथ ही पायलट ने गुर्जर-मीणा एकता की मुहिम चलाई थी, ताबड़तोड़ एकता रैलियां की थीं। उन्हीं की कोशिशों का नतीजा था कि एक दूसरे की कट्टर विरोधी माने जाने वाली दोनों जातियों ने 2018 में कांग्रेस की ऐसी झोली भरी कि बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। गहलोत के खिलाफ आर-पार की राजनीतिक लड़ाई में पायलट के साथ कम से कम 5 मीणा विधायक हैं जो इस समुदाय में उनकी स्वीकार्यता की गवाही देता है।
पूर्वी राजस्थान की 49 सीटों पर पायलट का सीधा प्रभाव
राजस्थान की सियासत में गुर्जर और मीणा की अहम भूमिका है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य की आबादी में 9 प्रतिशत के करीब गुर्जर तो 7 से 8 प्रतिशत के करीब मीणा हैं। अगर दोनों को साथ मिलाकर देखें तो पूर्वी राजस्थान की 49 विधानसभा सीटों पर उनका दबदबा है। दौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर, जयपुर ग्रामीण और करौली में दोनों ही जातियों की प्रभावशाली मौजूदगी है। दोनों को साथ लाने के लिए सचिन पायलट ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वह खुद गुर्जर हैं।
49 में से 42 सीटों पर कांग्रेस की जीत के शिल्पी रहे पायलट
आखिरकार पायलट सूबे की सियासत के परंपरागत जातिगत समीकरण को ध्वस्त कर नई इबारत लिखने में कामयाब हुए। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में गुर्जर और मीणा का गढ़ कहे जाने वाले पूर्वी राजस्थान में बीजेपी हवा हो गई। यहां की 49 में से 42 सीटों पर कांग्रेस के पंजे में आई। बीजेपी को यहां शिकस्त इतनी भारी पड़ी कि उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा। इसकी बड़ी वजह गुर्जर और मीणा दोनों ही वोटरों का कांग्रेस के साथ जाना था जो कुछ साल पहले तक नामुमकिन जैसा लगता था।
सत्ता की सीढ़ी बन सकते हैं पायलट, इसीलिए ताक में बैठी बीजेपी
वैसे पायलट की लोकप्रियता सिर्फ उनके समुदाय गुर्जर या फिर मीणा तक में ही सीमित नहीं है। सभी वर्ग और समुदायों में उनकी ठीक-ठाक पहुंच है। यही वजह है कि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर चल रही इस सियासी ड्रामे के बीच बीजेपी ताक में बैठी है। भले ही बीजेपी के नेता मौजूदा राजनीतिक उठापटक में पार्टी की किसी भी भूमिका से इनकार कर रहे हैं लेकिन उन्हें भी पायलट की अहमियत का बखूबी अंदाजा है। राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सीटें हैं। ऐसे में 49 सीटों पर राह आसान होना बहुत बड़ी बात होगी। ये 49 सीटें बीजेपी के लिए सत्ता की सीढ़ी बन सकती हैं।
…तो सिंधिया पायलट को भी लाएंगे साथ?
ऐसी रिपोर्ट्स भी आईं थीं कि पायलट को अपने खेमे में लाने के लिए बीजेपी उनके करीबी दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोर्चे पर लगाई है। सिंधिया 4 महीने पहले ही कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी के साथ आए हैं। ऐसी रिपोर्ट्स भी आईं कि दिल्ली में सिंधिया और पायलट की मुलाकात भी हुई है। हालांकि, बाद में पायलट कैंप ने इसे अफवाह करार दिया। सिंधिया ने जिस तरह ट्वीट कर अपनी पुरानी पार्टी के साथी पायलट के साथ अपनी सहानुभूति दिखाई इसके भी अपने सियासी मायने हैं।
सीधी लड़ाई में 2-4 प्रतिशत वोट भी कर देता है बड़ा खेल
पायलट अगर साथ आए तो बीजेपी को पूर्वी राजस्थान की 49 सीटों पर तो सीधा फायदा मिलेगा ही, पार्टी अन्य इलाकों में भी उनकी लोकप्रियता को भुना पाएगी। राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई रहती है और सीधी लड़ाई में 1-2 प्रतिशत वोटों का इधर से उधर होना भी बहुत बड़ा खेल कर देता है। यहां तो पायलट के जरिए पार्टी 17-18 प्रतिशत वोट बैंक को सीधे साध सकेगी। यही वजह है कि बीजेपी सचिन पायलट को अपने पाले में खींचने के किसी भी मौके को लपकने के लिए पूरी तरह तैयार है।