राजस्थान में गुर्जर और मीणा समुदाय राजनीतिक रूप से काफी अहमियत (Rajasthan political crisis) रखता है। हालांकि, पिछले एक दो दशक का इतिहास दोनों समुदायों के बीच दुश्मनी और प्रतिद्वंद्विता का रहा है। आरक्षण के मुद्दे पर कई बार दोनों आमने-सामने हो चुके हैं। पिछले कुछ सालों में राजस्थान में गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच आपसी वैमनस्यता कम हुई है और इसका श्रेय सचिन पायलट (Sachin Pilot in Rajasthan Politics) को ही जाता है। उन्होंने दोनों ही समुदायों की कटुता खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था और दोनों को साधने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल की। पायलट ने राजस्थान में जातिगत समीकरणों को एक नया आयाम दिया है और यही बात उन्हें बीजेपी के लिए एक मुफीद सहयोगी बना सकता है।
पायलट के साथ कम से कम 5 मीणा विधायक
गुर्जर और मीणा दोनों ही समुदायों में सचिन पायलट की अच्छी-खासी पैठ है। सोमवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में पायलट समर्थक जिन विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया, उनमें कम से कम 5 एमएलए मीणा समुदाय के हैं। पायलट खुद गुर्जर समाज से आते हैं लेकिन उनकी लोकप्रियता सभी समुदायों में है।
…तो बीजेपी को मीणा समाज में नहीं झेलनी पड़ेगी नाराजगी
वैसे तो पायलट ने बीजेपी के साथ संपर्क में होने से इनकार किया है, लेकिन गुर्जर और मीणा दोनों ही समुदायों में उनकी पहुंच उन्हें भगवा पार्टी के लिए आकर्षक संभावित पसंद बनाता है। उस सूरत में कम से कम बीजेपी को मीणा समाज की तरफ से नकारात्मक प्रतिक्रिया यानी उनका कोपभाजन बनने का डर नहीं होगा। इसलिए बीजेपी बिना हिचक पायलट पर डोरे डाल सकती है।
मीणा विधायकों ने पायलट को स्वीकार कर लिया नेता?
कांग्रेस के जिन 5 मीणा विधायकों ने सोमवार को गहलोत की मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया, उनमें रमेश मीणा और हरीश मीणा भी शामिल हैं। रमेश मीणा तो दौसा से बीजेपी के टिकट पर सांसद भी रह चुके हैं और अभी देवली-उनियारा सीट से कांग्रेस के विधायक और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। इन मीणा विधायकों ने खुलेआम पार्टी आलाकमान के आदेशों को जिस तरह धता बताया है, यह इस बात का सीधा-सीधा संकेत है कि उन्होंने पालयट को अपने नेता के तौर पर स्वीकार कर लिया है। कुछ साल पहले तक इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था क्योंकि आरक्षण के मुद्दें पर गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच दुश्मनी की हद तक कटुता रही है।
गुर्जर और मीणा में एकता के लिए पायलट ने चलाई थी मुहिम
2004 में दौसा से सांसद बनने के बाद पायलट ने ‘गुर्जर-मीणा एकता’ के लिए अभियान चलाया। दोनों समुदायों के गढ़ पूर्वी राजस्थान में उन्होंने एकता रैलियां कीं। दौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर, जयपुर ग्रामीण और करौली में दोनों ही जातियों की प्रभावशाली मौजूदगी है।
गुर्जर, मीणा के गढ़ पूर्वी राजस्थान में बीजेपी को दिया जबरदस्त झटका
2018 में जब पायलट ने चुनाव अभियान का नेतृत्व किया तो पूर्वी राजस्थान की 49 विधानसभा सीटों में से 42 पर कांग्रेस ने अपनी जीत का पताका फहराया। राज्य में बीजेपी की सरकार की विदाई में इस फैक्टर का बड़ा हाथ था। चुनाव नतीजे इस बात के संकेत थे कि दोनों ही समुदायों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया जिससे वह सत्ता में आई। सचिन के दिवंगत पिता राजेश पायलट दौसा और भरतपुर से 2 बार सांसद रहे थे और उन्हें इन दोनों ही समुदायों का जबरदस्त समर्थन हासिल था।
आरक्षण के मुद्दे पर दोनों समुदायों में कई बार हो चुकी है हिंसक झड़प
राजस्थान में गुर्जर और मीणा समुदायों के बीच दुश्मनी तब बढ़ी जब पहले ने सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एसटी कोटा के तहत आरक्षण की दावेदारी की। इस श्रेणी का सबसे बड़ा लाभार्थी मीणा समाज है, इस वजह से उन्हें अपना शेयर कम होने की चिंता सताने लगी। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य में कई बार जगह-जगह दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें लोगों की जानें भी गईं। दोनों समुदायों के बीच शांति तब आई जब हाल ही में गुर्जर समुदाय ने एसटी स्टेटस को छोड़कर खुद के लिए ओबीसी श्रेणी में आरक्षण के लिए अभियान शुरू किया।