अमेरिका के एक खुफिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीन ने अपनी गलतियों को छिपाने के लिए गलवान घाटी में मारे गए अपने सैनिकों के शीर्ष बलिदान को स्वीकार करने से बच रहा है। यही नहीं चीन गलवान घाटी में मारे गए अपने सैनिकों के परिवार वालों पर भी दबाव डाल रहा है कि वे शवों को दफनाएं नहीं और कोई कार्यक्रम भी आयोजित नहीं करें।
गत 15 जून की रात को चीन और भारत के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। वहीं चीन के भी 43 जवानों के हताहत होने की खबर है। भारत में जहां शहीद जवानों के शव का हीरो की तरह से स्वागत किया गया, वहीं चीन ने अपने मारे गए सैनिकों की घोषणा तक नहीं की।
अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक गलवान घाटी में मारे गए चीनी सैनिकों के परिवार वालों के साथ भी चीन सरकार ने बुरा बर्ताव किया है। चीन अब इन सैनिकों के शव को दफनाने भी नहीं दे रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन इस वजह से अपने सैनिकों के मारे जाने को स्वीकार नहीं कर रहा है क्योंकि वह अपनी इस बड़ी गलती को छिपाना चाहता है।
दरअसल, चीन ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए लद्दाख में भारतीय इलाके में घुसपैठ की कोशिश की और वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने का प्रयास किया। भारत ने कहा कि अगर चीन के शीर्ष नेताओं स्तर पर एक समझौता हो गया तो इस झड़प से बचा जा सकता था। चीन ने अब तक केवल यह माना है कि उसके कुछ अधिकारी मारे गए हैं। अमेरिकी खुफिया सूत्रों का मानना है कि 35 चीनी सैनिक इस कार्रवाई में मारे गए थे।
अमेरिकी सूत्रों ने बताया कि चीन के सिविल अफेयर्स मंत्रालय ने मारे गए सैनिकों के परिवारों से कहा है कि उन्हें परंपरागत तरीके से इन सैनिकों को नहीं दफनाना होगा बल्कि उनका अंतिम संस्कार करना होगा। अंतिम संस्कार समारोह में कोई शामिल नहीं होगा और उसे दूर से किया जाए। चीन ने कोरोना वायरस का नाम देकर ऐसा करने के लिए कहा है। चीन की कोशिश की है कि गलवान संघर्ष के बारे में कम से कम लोगों को पता चले।
चीन सरकार के इस फैसले से मारे गए चीनी सैनिकों के परिवार वाले गुस्से में हैं। चीन सरकार अब इन परिवार को शांत कराने में जूझ रही है। ये लोग वीबो और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करके अपना दुख साझा कर रहे हैं। चीन को डर सता रहा है कि अगर मारे गए सैनिकों के कब्र की फोटो सोशल मीडिया अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आ गईं तो उसकी छवि को गहरा धक्का लगेगा। एक सूत्र ने कहा, ‘चीन शहीद सैनिक नहीं पैदा करना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने कार्यक्रम पर रोक लगाया है।’