राजस्थान में कांग्रेस आज जिस संकट से गुजर रही है, उसकी नींव दो साल पहले ही रखी जा चुकी थी। सरकार बनने के बाद से ही, पायलट को यह महसूस कराया जाता रहा कि उनकी पूछ नहीं है। राजस्थान सीएम अशोक गहलोत ने अपने डेप्युटी पर भरोसा नहीं किया। अब पायलट करीब 30 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं और बागी रुख अपना लिए हैं। कांग्रेस के नेताओं से वह बात नहीं कर रहे, मीडिया से भी दूरी बना रखी है। हालात काबू से बाहर देख पार्टी आलाकमान ने दिल्ली से रणदीप सुरजेवाला और अजय माकन को जयपुर भेजा है। मगर पार्टी पिछले दो साल से रह-रहकर जो सिग्नल दिए जा रहे थे, उन्हें भांपकर कड़वाहट दूर करने की कोशिश करती तो ये संकट पैदा ही नहीं होता।
पिछले दो साल में पायलट के पर कतरने की कोशिशें कई बार हुईं। मगर कांग्रेस आलाकमान उन्हें नजरअंदाज करता रहा। आखिरकार जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो इस साल जनवरी में एक कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाई गई। मगर पार्टी यह संकट दूर करने को लेकर कितनी सीरियस थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाएं कि अबतक सिर्फ एक बार इस कमिटी की मीटिंग हुई है।
सचिन पायलट की नाराजगी इस बात से भी है कि उनके लोगों को पार्टी प्रमोट नहीं कर रही। कई पद खाली पड़े हैं और गहलोत वहां पर पायलट के करीबियों को बिठाने के मूड में नहीं हैं। पिछले महीने, पार्टी मुख्यालय में पायलट ने कहा था कि बतौर राजस्थान अध्यक्ष, उनकी कांग्रेस के जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं के प्रति जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें फल मिले।
कुछ महीने पहले हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान दोनों नेताओं के बीच की तल्खी सामने आई थी। गहलोत ने कांग्रेस सचिव नीरज डांगी को उतारा था। पायलट कोई बड़ा, जाना-पहचाना चेहरा चाहते थे मगर गहलोत नहीं माने। चुनाव से पहले, गहलोत ने आरोप लगाया कि कांग्रेस विधायकों को फुसलाया जा रहा है और पार्टी सीट हार सकती है। नतीजे हालांकि अलग रहे और कांग्रेस दोनों सीटों पर जीती। जीत का सेहरा पायलट के सिर बंधा और उन्होंने कहा था कि ‘पहले जो शक-सुबहा फैलाया गया वो निराधार था।’
इसी साल, पायलट ने राज्य की खराब कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे। इसे सीधे-सीधे गहलोत पर निशाने की तरह देखा गया क्योंकि गृह मंत्रालय उन्हीं के पास है।
पिछले साल, जब गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लोकसभा चुनाव हारे तो सीएम ने बिना देर किए पायलट पर ठीकरा फोड़ दिया। खुलेआम गहलोत ने कहा था, ‘पायलट को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।’ जबकि पार्टी के ही कई नेता गहलोत पर सवाल उठा रहे थे कि वो अपने बेटे को जितवा नहीं पाए।
पिछले कुछ महीनों से गहलोत का खेमा राजस्थान कांग्रेस में बदलाव की कोशिश में था। पायलट को राज्य इकाई के अध्यक्ष पद से हटाने की तैयारी थी। पंचायत चुनाव से पहले दिल्ली में कांग्रेसियों के बीच लॉबिइंग भी शुरू कर दी गई थी कि राजस्थान को नया चीफ चाहिए। पायलट इस पद पर पिछले 6 साल से हैं।
तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दोनों नेताओं से कई बार मुलाकात कर मसले सुलझाने की कोशिश की। लेकिन पुराने तुर्क और नए खून के बीच की लड़ाई शांत नहीं हुई।
राजस्थान पुलिस की तरफ से डेप्युटी सीएम सचिन पायलट को बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस भेजना उनकी नाराजगी का ट्रिगर पॉइंट बन गया। ऐसा ही नोटिस सीएम गहलोत को भी मिला है मगर गृह मंत्रालय गहलोत के पास होने की वजह से पायलट को लगा कि वह जांच उनके खिलाफ हो रही है।