Sushant Singh Rajput Case: एक हफ्ते तक हिंदुजा हॉस्पिटल में भर्ती थे सुशांत, पैरानोया और बाइपोलर डिसऑर्डर बीमारी से थे परेशान

बॉलिवुड अभिनेता करीब एक सप्ताह तक हिंदुजा अस्तपाल में भी भर्ती हुए थे। एक टॉप पुलिस अधिकारी ने एनबीटी को यह जानकारी दी है। बांद्रा पुलिस इस केस की करीब 4 सप्ताह से जांच कर रही है और करीब 3 दर्जन लोगों से पूछताछ भी की है। सुशांत ने 14 जून को मुंबई के बांद्रा स्थित घर पर खुदकुशी कर ली थी। उसके बाद से ही सुशांत के फैन्स उनके निधन में साजिश का ऐंगल देख रहे हैं।

डिप्रेशन की 2 खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे थे सुशांतइस अधिकारी के अनुसार, इस केस में अभी तक किसी के भी द्वारा, किसी भी तरह की भी पेशेवर साजिश के कोई सबूत नहीं मिले हैं। यह पूरा केस खुदकुशी का है। सुशांत ने खुदकुशी क्यों की, हम अब उस निष्कर्ष पर भी लगभग पहुंच गए हैं। इस अधिकारी का दावा है कि सुशांत डिप्रेशन की दो खतरनाक बीमारियों पैरानोया और बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित थे। लॉकडाउन के पहले वह इन बीमारियों के इलाज के लिए एक सप्ताह तक हिंदुजा अस्पताल में भी भर्ती थे।

सुशांत की मां को भी थी डिप्रेशन की परेशानी
जांच में यह बात भी सामने आई है कि उनकी मां भी डिप्रेशन से पीड़ित थीं और उनका भी लंबा इलाज चला था। जब सुशांत की उम्र 16 साल की थी, तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। सुशांत की चार बहनें हैं। लेकिन इस अधिकारी के अनुसार, चूंकि ज्यादातर की शादी हो गई और पिता भी बिहार में रहते हैं, इसलिए बॉलिवुड में तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सुशांत बहुत अकेलापन महसूस करते थे। यह बात कुछ गवाहों से पूछताछ में सामने आई। जांच में यह बात भी सामने आई है कि सुशांत को किसी भी तरह का आर्थिक संकट नहीं था।

‘शक करने लगता है आदमी’
इस अधिकारी के अनुसार, पैरानोया एक शक की बीमारी है। इसमें इंसान को कई बार वक्त लगता है कि हर कोई उससे घृणा कर रहा है। कई बार एकांत में उसे यह भी लगता है कि कोई उसका मर्डर भी करने वाला है। बाइपोलर डिसऑर्डर बीमारी में पीड़ित व्यक्ति की मनोदशा बारी-बारी से विपरीत अवस्थाओं में जाती रहती है। कभी वह अचानक से तनाव में आ जाता है, तो कभी उसका आत्मविश्वास एकदम बढ़ जाता है। इसके बाद फिर से वह एकदम शांत या गुम हो जाता है। इस बीमारी में कई बार व्यक्ति चाहकर भी अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाता।

मशहूर मनोचिकित्सक डॉक्टर हरीश शेट्टी कहते हैं, ‘जैसे दिल के कई मरीज आईसीयू में भर्ती होने के बावजूद ठीक नहीं होते और उनकी मृत्यु हो जाती है, ठीक उसी तरह मेंटल इलनेस के सभी मरीज बचते नहीं हैं। उनमें से कुछ आत्महत्या कर लेते हैं।’

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