दुनियाभर में अब तक कोरोना वायरस के घातक इन्फेक्शन का शिकार करीब डेढ़ करोड़ लोग बन चुके हैं जिनमें से 73 लाख से ज्यादा ठीक भी हो चुके हैं। हालांकि, अब तक 5.5 लाख से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है जिससे साइंटिस्ट्स और डॉक्टर्स जल्ज से जल्द इसका तोड़ और इलाज खोजने में दिन रात एक कर रहे हैं। इन्फेक्शन को फैलने से रोकने के लिए एक्सपर्ट्स कई तरह के इलाज ढूंढ रहे हैं जिनमें प्लाज्मा थेरपी, हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन (HCQ), रेमेडेसिविर (remdesivir) और दूसरे ऐंटी-वायरल मेडिकेशन भी शामिल हैं। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि जिस एक दवा से सबसे अच्छा और सबसे सस्ता इलाज हो सकता है, वह है Dexamethasone।
ब्रिटेन में आधारित एक रिसर्च में दावा किया गया है कि सूजन कम करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्टेरॉइड Dexamethasone COVID-19 के इलाज में कारगर है। ऐसे मरीज जिनकी हालत थोड़ी गंभीर है, उनके केस में यह जान बचाने वाली साबित हो रही है। यही नहीं, इस रिसर्च के डेटा में पाया गया कि इसके इस्तेमाल से वेंटिलेटर पर रखे गए मरीजों की मृत्युदर में 33.33% और कम गंभीर लक्षणों वाले मरीजों में 20% तक कम हो गया था।
कोरोना वायरस के इलाज के लिए सबसे पहले चर्चा में रही HCQ के विवादों में घिरने के बाद Remdesivir को सबसे बेहतर इलाज माना जा रहा था। Remdesivir जनेटिक कोड में बदलाव करते वायरल इन्फेक्शन को रोकती है। कुछ स्टडीज में दावा किया है कि उसके इस्तेमाल से मरीज जल्दी ठीक हो जाता है। हालांकि, हर मरीज पर उसका एक जैसा फायदा नहीं होता है। अभी तक सिर्फ ऐसे मरीजों को यह ठीक कर सकी है जिनमें हल्के लक्षण होते हैं। वहीं, Dexamethasone के कम साइड-इफेक्ट्स होते हैं और अभी तक गंभीर लक्षण वाले लोगों पर भी इसका सकारात्मक असर देखा गया है।
Dexamethasone को लेकर सबसे खास बात है कि यह आसानी से उपलब्ध है। मार्केट में कम पड़ रहीं दूसरी दवाओं से उलट, Dexamethasone काफी कम कीमत की दवा है। एक्सपर्ट्स Dexamethasone के ऐडमिनिस्ट्रेशन को लेकर डेटा को स्टडी कर रहे हैं। फिलहाल इसके ज्यादा साइड-इफेक्ट्स पता नहीं चल रहे हैं जिससे यह अभी तक की सबसे सुरक्षित दवा मानी जा रही है। भारत में भी यह आसानी से मिल सकती है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी असरदार और सुरक्षित दवा बताया है जबकि वैक्सीन की खोज अभी भी जारी है।
Dexamethasone को लेकर बेहद सकारात्मक नतीजे जरूर सामने आ रहे हैं और इससे मृत्युदर में भी कमी आ रही है लेकिन अभी इसे लेकर कोई भी निर्णायक स्टडी सामने नहीं आई है जिससे यह पता लगे कि इसका वाकई इतना ज्यादा असर हो रहा है। अभी भी और ज्यादा सबूतों का इंतजार किया जा रहा है और इसे अभी भी एक्सपेरिमेंटल दवा का दर्जा ही मिला है। जिन लोगों को इसे दिया जा रहा है, उन्हें भी कम डोज दिया जा रहा है। गलत तरीके से इस्तेमाल करने पर साइड-इफेक्ट्स भी हो सकते हैं। अगर बिना डॉक्टर की सलाह के इसका इस्तेमाल किया गया तो मुंहांसे, ज्यादा पसीने, रैश, हाइपरग्लीसिमिया, मांसपेशियों में कमजोरी जैसी परेशानियां हो सकती हं।