कोरोना वायरस इन्फेक्शन से लोगों को बचाने के लिए और इलाज करने के लिए वैक्सीन और दवा खोजने में वैज्ञानिक जुटे हैं। इसी बीच ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सदियों पुरानी दवा BCG से कोरोना के कारण मृत्युदर को कम करने की उम्मीद जगी है। एक स्टडी में पाया गया है कि अमेरिका जैसे विकसित देश के स्टेट्स के मुकाबले लैटिन अमेरिका और दूसरे विकासशील देशों में मृत्युदर कम होने के पीछे एक कारण टीबी की वैक्सीन हो सकती है।
ज्यादा घनी आबादी, फिर भी मृत्युदर कम
वर्जिनिया टेक के कॉलेज ऑफ नैचरल रिसोर्सेज ऐंड एन्वायरन्मेंट में असिस्टेंट प्रफेसर लुइस एस्कोबार ने इस बात पर रिसर्च की कि कुछ विकासशील देशों में अमेरिका के स्टेट्स के कम मृत्युदर कैसे हैं, जबकि वहां आबादी ज्यादा भी है और घनी भी। स्टडी में पाया गया कि जिन देशों में कोविड-19 की वजह से मृत्युदर कम है, वहां लोगों की उम्र, आय और हेल्थ केयर सुविधाओं को लेकर भारी विविधता थी। हालांकि, इन सब में एक चीज समान थी- टीबी का वैक्सिनेशन प्रोग्राम।
विकासशील देशों को फायदा
टीबी की दवा बेसिलस कैलमेट-ग्यूरिन (BCG) को आमतौर पर अमेरिका में इस्तेमाल नहीं किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह बीमारी विकासशील देशों में ही ज्यादा होती है। स्टडी में पाया गया कि BCG वैक्सीन प्रोग्राम और कोविड-19 के कारण मृत्युदर में आपस में गहरा संबंध है। रिसर्चर्स का कहना है कि BCG इंडेक्स में 10% बढ़ोतरी के साथ कोविड-19 की मृत्युदर 10.4% कम हो जाती है।
WHO ने उठाए थे सवाल
खास बात यह है कि अप्रैल में WHO ने साफ कहा था कि BCG वैक्सीन के कोविड-19 से लोगों को बचाने का कोई सबूत नहीं है क्योंकि इस पर ज्यादातर रिसर्च में लोग समाज में अंतर, टेस्टिंग, महामारी के स्तर जैसे कई मानकों का ध्यान नहीं रखते हैं। हालांकि, एस्कोबार का कहना है कि उनकी टीम ने सभी सामाजिक अंतरों को ध्यान में रखते हुए अनैलेसिस किया है।
क्या है BCG?बेसिलस कैलमेट-ग्यूरिन (BCG) वैक्सीन लगभग 100 साल पहले तैयार की गई थी। इससे ट्यूबरकुलोसिस या टीबी (तपेदिक) के बैक्टीरिया के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा होती है। इसके टीके से लोगों इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और खुद को कई संक्रमणों से बचाया जा सकता है। वैक्सिनेशन के 60 साल के बाद तक अधिकतर लोगों में टीबी का बैक्टीरिया नहीं प्रवेश कर सका। यह टीका कई अन्य संक्रामक रोगों के खिलाफ भी मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, जैसा कोरोना के केस में माना जा रहा है।