गुरुदत्त का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। कहते हैं बचपन में हुए एक ऐक्सिडेंट के बाद उन्होंने अपना नाम बदल लिया और गुरु दत्त रखा था। उनकी पर्सनल लाइफ में उन्होंने काफी उतार-चढ़ाव देखे थे और अंतत: उनका अंत भी बहुत दुखद रहा।
फैक्ट्री में टेलिकॉम ऑपरेटर का काम किया
उन्होंने अपना बचपन कोलकाता में बिताया और काफी आर्थिक तंगियों से गुजरे वह। पहले उन्होंने कोलकाता के एक फैक्ट्री में टेलिकॉम ऑपरेटर का काम किया था। आखिरकार वह 1944 में अपने माता-पिता के पास मुंबई आ गए।
3 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी मिली
मुंबई पहुंच कर उन्हें अपने चाचा की मदद मिली और 1944 में पुणे में प्रभात फिल्म कंपनी में 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी मिल गई। यहीं से शुरू हुआ फिल्मों से गुरुदत्त का कनेक्शन। दत्त को इसी साल फिल्म ‘चांद’ में श्रीकृष्ण का छोटा सा रोल मिला। उनका काम पसंद आया और फिर वह आगे बढ़ते गए। वह असिस्टेंट डायरेक्टर से लेकर कोरियॉग्राफी तक के काम में महारथ हो चुके थे।
‘प्यासा’ को इंटरनैशनल लेवल पर पसंद किया गया
गुरु दत्त की ‘प्यासा’ को इंटरनैशनल लेवल पर कितना पसंद किया गया इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि फेमस टाइम मैगजीन ने दुनिया की 100 चुनिंदा फिल्मों में रखा है। इंटरनैशनल लेवल पर फिल्म क्रिटिक आज भी ताज्जुब करते हैं कि आखिर वर्ल्ड सिनेमा की नजर गुरु दत्त पर तब क्यों नहीं पड़ी जब वह ‘प्यासा’ जैसी फिल्में बना रहे थे।
इसके लिए गुरु दत्त की पहली पसंद दिलीप कुमार थे
बताते हैं कि ‘प्यासा’ के लिए गुरु दत्त की पहली पसंद दिलीप कुमार थे। जब गुरु दत्त इस फिल्म को लेकर दिलीप कुमार के पास पहुंचे तो उन्होंने इस फिल्म को करने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि ‘प्यासा’ के विजय का किरदार लगभग ‘देवदास’ के देव जैसा है। हालांकि जैसा गुरु दत्त ने इस किरदार को जिया शायद उससे बेहतर दिलीप कुमार भी नहीं कर पाते।
फिल्म में वहीदा रहमान
फिल्म में वहीदा रहमान ने एक वेश्या गुलाब का किरदार निभाया था जो विजय से बेइंतेहा मोहब्बत करती है। गुरु दत्त ने यह रोल मधुबाला को ऑफर किया था लेकिन फाइनली इसमें वहीदा रहमान को कास्ट किया गया। यह वहीदा की दूसरी ही फिल्म थी लेकिन उनके किरदार को काफी पसंद किया गया।
फिल्म ऐक्ट्रेस गीता से बढ़ने लगी थीं नजदीकियां
फिल्म ‘बाजी’ के दौरान गीता और गुरुदत्त की मुलाकात हुई। गीता प्लेबैक सिंगिंग के लिए काफी मशहूर रहीं। पहली ही मुलाकात में दोनों ने एक-दूसरे को पसंद कर लिया था, लेकिन शादी तक पहुंचने का सफर धीरे-धीरे चलता रहा। कहा जाता है कि गीता उनके माटुंगा वाले घर पर अक्सर अया करती थीं और घर पर यह कहतीं कि वह उनकी बहन से मिलने जा रही हैं। कई बार उन्होंने उनके किचन का काम भी संभाला था। परिवार की इच्छा के विरुद्ध दोनों ने तीन साल बाद 1953 में शादी कर ली। इन्हें तीन बच्चे भी हुए, जिनका नाम तरुण, अरुण और नीना रखा था।
लाइफ में वाहिदा रहमान की एंट्री
गुरुदत्त की मैरिड लाइफ सही नहीं रही। कहा जाता है कि गीता और गुरुदत्त की शादी वहीदा रहमान की वजह से काफी दूरियां आ गईं। दोनों के बीच नजदीकियों की खबरें गीता तक भी पहुंचीं। उन्होंने गुरुदत्त को पकड़ने के लिए एक लेटर भेजा और जब वह वहां पहुंचे तो गीता पहले से वहां मौजूद थीं। इसके बाद उनके बीच का रिश्ता काफी बिगड़ा।
गुरुदत्त ने कर ली खुदकुशी
दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं। पत्नी गुरु दत्त को बेटी से भी मिलने नहीं दे रही थीं। परेशान गुरुदत्त शराब के नशे में डूबने लगे थे और खूब सिगरेट पिया करते। ज्यादा शराब पीने की वजह से उनका लिवर खराब हो गया था उनकी तबीयत बिगड़ती गई। केवल 39 साल की उम्र में 10 अक्टूब 1964 को उनका निधन हो गया। मौत के समय वह गीता से अलग हो चुके थे और अपनी जिंदगी अलग जी रहे थे। उनके भाई आत्माराम ने बताया था, ‘जहां तक बात काम की थी तो वह बहुत डिसिप्लीन में रहते, लेकिन पर्सनल लाइफ में वह अनुशासन जैसी चीजों से दूर थे।’