टिड्डों का आतंक सिर्फ भारत और पाकिस्तान में नहीं, पूर्वी अफ्रीका में भी भयानक तरीके से छाया हुआ है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने इनसे निजात पाना के कई तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया है। टिड्डे मारने के लिए वे कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, एक-दूसरे के खिलाफ ही टिड्डों का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहां तक कि टिड्डों के पकवान तक बनाए जा रहे हैं। इस बार टिड्डों का तीन पीढ़ियों से भी ज्यादा खतरनाक हमला देका जा रहा है जो बेमौसम नमी वाले हालात के चलते बढ़े हैं और चक्रवातों की वजह से फैलते जा रहे हैं।
8.5 अरब डॉलर के नुकसान की आशंका
वर्ल्ड बैंक ने अंदाजा लगाया है कि इस साल पूर्वी अफ्रीका और यमन को टिड्डों की वजह से 8.5 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। टिड्डों को आमतौर पर उड़ने से पहले ही कीटनाशकों से मार दिया जाता है लेकिन इनकी वजह से दूसरे कीड़ों और पर्यावरण को भी नुकसान होता है। इसलिए इंटरनैशनल सेंटर ऑफ इन्सेक्ट फिजियॉलजी ऐंड इकॉलजी (ICIPE) के वैज्ञानिकों ने बायोपेस्टिसाइड (जैव-कीटनाशकों) पर काम करना शुरू कर दिया है और टिड्डों को इंसानों और जानवरों के खाने के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
डीप-फ्राई, सॉस और कबाब
ICIPE ऐसे जाल और बैग्स भी तैयार कर रहा है जिनमें टिड्डों को पकड़ा जा सके। प्रोटीन से भरपूर इन टिड्डों को पकाया जाता है और खाने में इस्तेमाल किया जाता है या तेल निकालकर जानवरों का चारा बनाया जाता है। ICIPE कई इवेंट्स करता है जिनमें सिखाया जाता है कि कीड़ों को खाना सामान्य है। रिसर्चर क्रिसैन्तस टैंगा खुद भी कीड़े खाते हैं। ICIPE के कैफे में टिड्डों के सिर, पैर और पंख निकाल दिए जाते हैं। टैंगा का कहना है, ‘पहली बार खाने वाले के लिए इनका सुंदर दिखना बेहद जरूरी है।’ ICIPE के शेफ रंगीन प्लेटों में सॉस के साथ डीप-फ्राइड टिड्डे और यहां तक कि सब्जियों के साथ बने कबाब भी सर्व करते हैं।
फंगस से निकाला जहर
ICIPE के रिसर्चर्स ने दूसरे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक ऐसे फंगस मेथरीजियम ऐक्रीडियम (Metharizium acridium) से मिलने वाले एक ऐसे पदार्थ की खोज की है जिससे टिड्डों को खत्म किया जा सकता है और दूसरे जीवों को नुकसान भी नहीं होता है। इसे पूर्वी अफ्रीका में इस्तेमाल किया जा रहा है। अब रिसर्चर्स 500 दूसरे फंगस और जीवाणुओं को इस उम्मीद में स्टडी कर रहे हैं कि शायद उन्हें ऐसे दूसरे पदार्थ भी मिल जाएं।
महक का इस्तेमाल
ICIPE के साइंटिस्ट बॉल्डविन टॉर्टो की रिसर्च में टिड्डों की महक और फेरोमोन्स पर फोकस किया जा रहा है। दरअसल, टिड्डों में उड़ने की क्षमता से पहले एक अलग केमिस्ट्री होती है। एक अलग महक के कारण वे समूह में रहते हैं। ये महक उनकी उम्र बढ़ने के साथ बदल जाती है। किसी पुराने टिड्डे की महक को युवा टिड्डों के बीच छोड़ देने से समूह टूट जाता है और वे एक-दूसरे को ही खाने लगते हैं। इन्हें कीटनाशकों का शिकार भी आसानी से बनाया जा सकता है।