के उइगुर मुसलमानों के नरसंहार, मानवाधिकार हनन और अत्याचार का मामला अब अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट पहुंच गया है। इस मामले में चीन के राष्ट्रपति समेत कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी सेना के कई बड़े अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है। इस केस को उइगुर समुदाय से जुड़ी दो संस्थाओं ने लंदन के वकीलों के माध्यम से दर्ज करवाया है।
पहली बार अंतरराष्ट्रीय अदालत पहुंचा उइगुरों का मामला
पहली बार ऐसा हुआ है जब उइगुर अत्याचारों को लेकर कोई केस अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में दाखिल किया गया है। ब्रिटिश वकीलों ने चीन में उइगुर समुदाय पर जारी अत्याचार और हजारों मुस्लिमों को कानून का उल्लंघन कर कंबोडिया और तजाकिस्तान प्रत्यर्पित किए जाने के संबंध में शिकायत दर्ज कराई है। वकीलों ने 80 पेज का जो दस्तावेज दाखिल किया है उसमें राष्ट्रपति जिनपिंग सहित 30 से ज्यादा चीनी अधिकारियों के नाम दर्ज हैं।
चीन अदालत का फैसला मानने को मजबूर नहीं
अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट के आदेश को मानने के लिए चीन मजबूर नहीं है। उसने पहले भी साउथ चाइना सी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की कोर्ट के आदेश को मानने से पहले भी इनकार कर दिया था। अब देखना होगा कि इस कोर्ट में यह केस कितने दिनों तक चल पाता है। उइगुरों को लेकर चीन पहले से ही सख्त रवैया अपनाता आया है।
चीन पर क्या हैं आरोप
चीन पर आरोप है कि उसने शिनजिंयाग प्रांत में रहने वाले लाखों उइगुर मुसलमानों को मानवाधिकार का हनन करते हुए उन्हें जबरन डिटेंशन कैंप में कैद कर रखा है। जबकि लाखों लोगों की विरोध के नाम पर गुपचुप तरीके से हत्या कर दी गई। इतना ही नहीं, ों की चीन जबरन नसबंदी भी करवा रहा है। जिससे इनकी आबादी न बढ़ सके। चीन के ऊपर यह भी आरोप है कि वह उइगुर मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता खत्म कर चुका है।
पाकिस्तान समेत मुस्लिम देशों का क्या रूख
उइगुर मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर अभी तक किसी भी मुस्लिम देश ने चीन का खुलकर विरोध नहीं किया है। दुनियाभर के मुसलमानों के मसीहा सऊदी अरब, तुर्की और पाकिस्तान के मुंह से उइगुरों को लेकर आज तक एक शब्द नहीं निकला है। ये सभी देश इस मामले में पड़कर चीन की दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते। जबकि, धरती के दूसरे किसी भी हिस्से में मुसलमानों को लेकर इनका रवैया एकदम सख्त रहता है।
कौन हैं उइगुर मुस्लिम
उइगुर मध्य एशिया में रहने वाले तुर्क समुदाय के लोग हैं जिनकी भाषा उइगुर भी तुर्क भाषा से काफी मिलती-जुलती है। उइगुर तारिम, जंगार और तरपान बेसिन के हिस्से में आबाद हैं। उइगुर खुद इन सभी इलाकों को उर्गिस्तान, पूर्वी तुर्किस्तान और कभी-कभी चीनी तुर्किस्तान के नाम से पुकारते हैं। इस इलाके की सीमा मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के साथ-साथ चीन के गांसू एवं चिंघाई प्रांत एवं तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से मिलती है। चीन में इसे शिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सयुएआर) के नाम से जाना जाता है और यह इलाका चीन के क्षेत्रफल का करीब छठा हिस्सा है।
उइगुर का इतिहास
करीब दो हजार साल तक आज के शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र पर एक के बाद एक खानाबदोश तुर्क साम्राज्य ने शासन किया। उनमें उइगुर खागानत प्रमुख है जिसने आठवीं और नौवीं सदी में शासन किया। उइगुरों ने अपने अलग साम्राज्य की स्थापना की। मध्यकालीन उइगुर पांडुलिपि में उइगुर अली का उल्लेख है जिसका मतलब होता है उइगुरों का देश।उइगुर का चीनी इतिहास 1884 में शुरू होता है। चिंग वंश के दौरान इस क्षेत्र पर चीन की मांचू सरकार ने हमला किया और इस इलाके पर अपना दावा किया। फिर इस क्षेत्र को शिंजियांग नाम दिया गया जिसका मैंड्रीन में ‘नई सीमा’ या ‘नया क्षेत्र’ मतलब होता है।1933 और 1944 में दो बार उइगुर अलगाववादियों ने स्वतंत्र पूर्वी तुर्किस्तान गणराज्य की घोषणा की।1949 में चीन ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया और 1955 में इसका नाम बदलकर शिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र कर दिया।
चीन में 90 लाख के आसपास है आबादी
चीन में हुई 2003 की जनगणना में उइगुरों की आबादी करीब 90 लाख बताई गई थी जबकि अनाधिकारिक अनुमान में उनकी आबादी उससे भी ज्यादा है। उइगुर चीन के 55 अल्पसंख्यक समुदायों में से पांचवां सबसे बड़ा समुदाय है। 1949 से पहले तक चीन के शिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र की कुल आबादी का 95 फीसदी उइगुर मुस्लिम थे लेकिन चीन में 60 सालों के कम्यूनिस्ट शासन के बाद अब वे सिर्फ 45 फीसदी रह गए हैं।