विकास दुबे का नाम आज हर किसी की जुबान पर है। 3 दशक पहले पिता के अपमान का बदला लेने के लिए लोगों की पिटाई करने से लेकर बुलेट गैंग बनाकर घूमने वाले लड़के के पीछे आज पूरे प्रदेश की पुलिस और एसटीएफ हाथ धोकर पीछे पड़ी है। लेकिन बिकरू गांव और आसपास के लोगों के लिए यह नया नाम नहीं है। उसका खौफ ऐसा था कि एक समय बिना विकास की इजाजत के कोई पानी भी नहीं पी सकता था। फैक्ट्रियां उसे चंदा पहुंचाती थीं और नाम लेने भर से बसों में किराया नहीं लिया जाता था। तस्वीरों में देखिए विकास के खौफ के किस्से-
विकास दुबे का खौफ ऐसा था कि आसपास की लगभग हर फैक्ट्री से उसको चढ़ावा भेजा जाता था। जीटी रोड के किनारे बस चौबेपुर इंडस्ट्रियल एरिया में करीब 400 फैक्ट्रियां हैं। नामी फैक्ट्रियों से उसे सालाना चंदा मिलता था। विकास की कमाई का दूसरा बड़ा जरिया विवादास्पद संपत्ति को खरीदना था। क्षेत्र में किसी भी संपत्ति की खरीद-बिक्री पर विकास को टैक्स देना जरूरी था।
स्थानीय लोगों के अनुसार कई साल पहले गांव में पानी के लिए नल नहीं लगे थे। पानी की समस्या होने पर लोग विकास के घर के पास बने कुएं से पानी भरने आते थे। इसके लिए उन्हें बाकायदा दुबे से इजाजत लेनी पड़ती थी। बिना इजाजत लिए पानी भरने पर वह बेरहमी से पिटाई करता। कई बार तो उसने ऐसा करने वालों को कुएं में गिराकर मार डालने तक की कोशिश की थी।
क्षेत्र में चलने वाली प्राइवेट बसों में विकास का नाम बताने पर कोई किराया नहीं लगता था। कई बस स्टैंड उसके गुर्गे चलाते हैं। एक ग्रामीण ने आरोप लगाया कि विकास गांव के भोले-भाले युवकों के नाम पर असलहों के लाइसेंस लिए थे। पुलिस ने कभी तफ्तीश नहीं की। उस पर पीएम आवास योजना में भी कई लोगों के नाम पर घर रजिस्टर्ड कराने का आरोप है।
माल लदे ट्रकों में लूट करवाने जैसे काम विकास के लिए बेहद आसान चीज हो गई थी। नेताओं के संरक्षण में लूट का माल मसलन आलू और तेल के टिन बिकरू गांव में बंटते थे। यही वजह थी कि आज तक बिकरू गांव का कोई भी व्यक्ति विकास का विरोधी नहीं हुआ। वे विकास के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार रहते थे।
विकास शुरू से ही क्रूर था। 1990 में विकास ने अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए पास के ही डिब्बा नवादा गांव में घुसकर लोगों की पिटाई की थी। इसके बाद वह जरायम की दुनिया में कदम बढ़ाता गया और अब 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद पूरे प्रदेश की पुलिस उसकी तलाश में लगी है।
90 के दशक के शुरुआती दिनों में स्थानीय नेताओं का संरक्षण पाकर विकास ने बुलेट गैंग बनाई। बुलेट बाइक पर खुलेआम असलहा लेकर चलने वाले नौजवानों ने छोटे-मोटे अपराध कर चौबेपुर, शिवली और बिल्हौर में पैर पसारे। प्रयोग कामयाब रहा और विकास सबका मुखिया बन गया।
ग्रामीण बताते हैं कि 1992 में गांव में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। विकास ने यहां खूब कहर बरपाया था। कई लोग अपनी याददाश्त खो बैठे। कई सदमे में चल बसे। कुछ ऐसे बुजुर्ग अब भी गांव में मौजूद हैं। राजनीतिक संरक्षण के चलते उसका बाल भी बांका नहीं हुआ।
लोग बताते हैं कि आसपास के 8-10 गांवों में विकास ही पुलिस और अदालत था। चौबेपुर थाने की पुलिस को वह जेब में रखकर घूमता था। किसी भी केस में पुलिस गांव नहीं आई। मामूली सी बात पर ही वह बच्चों से लेकर बुजुर्गों को बेरहमी से पीटता था। हाथ-पैर तोड़ना उसके लिए मामूली बात थी।
विकास को सुर्खियों में बने रहने का शौक था। उसके अपराधों का चिट्ठा जब अखबारों की सुर्खियां बनती थी तो उसे पढ़कर वह खुश होता था। अखबारों में छपी खबरों को खुद पढ़कर वह अपने साथियों को सुनाता था। उसके घर से फाइल मिली है, जिसमें अखबारों की अनेक कतरनें थी। जानकार बताते हैं कि वह भेष बदलने में भी माहिर है।