पूर्वी लद्दाख में भारतीय जमीन पर कब्जा करने की फिराक में लगा चीन अब भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान को मिसाइलों से लैसे ड्रोन विमान देने जा रहा है। चीन इस समय लद्दाख में अपने हमलावर ड्रोन विंग लोंग II (Wing Loong II) के जरिए भारतीय इलाकों की निगरानी कर रहा है। चीनी ड्रैगन अब ऐसे ही 4 ड्रोन विमान पाकिस्तान को देने जा रहा है। चीन की इस नापाक हरकत के जवाब में अमेरिका भारत को अपने बेहद घातक प्रिडियटर बी ड्रोन देने जा रहा है।
चीन का दावा है कि इससे चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर और बलूचिस्तान में बन रहे चीनी नौसेना के बेस की सुरक्षा की जा सकेगी। पाकिस्तान अब अपनी एयरफोर्स के लिए चीन के साथ मिलकर ऐसे 48 हमलावर ड्रोन विमान बनाना चाहता है। GJ-2 ड्रोन विंग लोंग II का सैन्य संस्करण है। माना जाता है कि इस चीनी ड्रोन विमान में 12 हवा से जमीन में मार करने वाली मिसाइलें लगी रहती हैं। इस ड्रोन विमान का लीबिया के गृहयुद्ध में इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन वहां इसे बहुत सीमित सफलता मिल रही है।
चीन और पाकिस्तान के इस संयुक्त खतरे को देखते हुए भारत ने अमेरिका से प्रीडेटर बी या ड्रोन खरीदने की इच्छा जताई है। भारत अमेरिका से 30 ऐसे हमलावर ड्रोन विमान खरीदना चाहता है। भारत इस समय लद्दाख में इजरायल निर्मित हेरोन ड्रोन विमानों का संचालन कर रहा है जिसमें कोई हथियार नहीं होता है। चीन के इस खतरे को देखते हुए भारत जल्द से जल्द अमेरिकी ड्रोन विमान खरीदना चाहता है। सूत्रों के मुताबिक ये 10-10 ड्रोन तीनों सेनाओं के लिए खरीदे जाएंगे।
इराक के बगदाद इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर अमेरिकी हमले में ईरान के टॉप कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी। माना जाता है कि इस हमले को अमेरिका ने अपने प्रीडेटर बी ड्रोन के जरिए अंजाम दिया था। यह बेहद उन्नत किस्म का टोही और लक्ष्यभेदी ड्रोन है। इस ड्रोन की खास बात यह है कि यह जासूसी में जितना माहिर है, उतना ही खतरनाक हवाई हमले करने में भी है। दरअसल, अमेरिका ने पहली बार ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी पर इस ड्रोन का इस्तेमाल नहीं किया है। इससे पहले भी दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल हो चुका है।
प्रीडेटर बी ड्रोन अटैक के साथ- साथ लक्ष्य की खुफिया जानकारी जुटाता है और फिर उसे खत्म करने के लिए हमले भी करने में सक्षम है। यानी, यह ड्रोन तलाश और विध्वंस का दोहरा काम करने में माहिर है। हथियारों से लैस, मध्यम ऊंचाई तक पहुंचाने वाला, एक साथ कई अभियानों को अंजाम देने और लंबी देर तक हवा में रहने में सक्षम ड्रोन है। अमेरिकी वायुसेना 2007 से इसका इस्तेमाल कर रही है। यह ड्रोन 230 मील (368 किलोमीटर) प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता है। MQ-9 रीपर अधिकतम 50 हजार फीट तक की ऊंचाई तक पहुंच सकता है।
अमेरिका ने MQ-9 रीपर ड्रोन को विदेशी सैन्य अभियानों की मदद के मकसद से विकसित किया। इसमें M अमेरिकी रक्षा विभाग के मल्टि-रोल डेजिग्नेशन का प्रतिनिधित्व करता है जबकि Q का मतलब दूर से संचालित एयरक्राफ्ट है। वहीं, 9 का मतलब है कि यह अपनी तरह के एयरक्राफ्ट का 9वीं सीरीज है। 2,222 किलो वजनी यह ड्रोन छोटी-छोटी गतिविधियों का भी पता लगा लेता है और बेहद कम समय में लक्ष्य को निशाना बना लेता है। इसमें एक बार में 2,200 लीटर फ्यूल भरा जा सकता है जिससे यह 1,150 मील यानी 1,851 किलो मीटर तक की दूरी तय कर सकता है। इसकी एक यूनिट की कीमत साल 2006 में 6.42 लाख डॉलर (करीब 3.65 करोड़ रुपये) आंकी गई थी।
इस ड्रोन में कई बेहद घातक हथियार लगे होते हैं। इनमें लेजर से निर्देशित होने वाले हवा से जमीन पर मार करने वाले चार AGM-114 हेलफायर मिसाइल भी शामिल हैं। ये मिसाइल बिल्कुल लक्ष्य पर निशाना साधते हैं जिससे कि आसपास कम-से-कम नुकसान हो। साथ ही, इसमें टारगेटिंग सिस्टम लगा है जिसमें विजुअल सेंसर्स लगे हैं। इसमें 1,701 किलो वजन तक का बम गिराने की क्षमता है। MQ-9 रीपर चूंकि मानवरहित छोटा विमान है, इसलिए इसके अंदर कोई पायलट या क्रू नहीं होता है। इसे दूर से ही संचालित किया जाता है। हर MQ-9 रीपर ड्रोन के लिए एक पायलट और एक सेंसर ऑपरेटर सुनिश्चित होते हैं।