सरोज खान के पैसे से ही अंतिम संस्कार
सुकैना बताती हैं कि उनकी मां बहुत खुद्दार थी। उन्होंने कभी किसी का एक पैसा भी खुद पर बाकी नहीं रखा। यहां तक कि सरोज खान का अंतिम संस्कार भी उनके पैसों से हुआ। सुकैना बताती हैं, मां के अंतिम संस्कार के बाद कब्रिस्तान में पैसे देने का वक्त आया। जल्दबाजी में मैं और मेरे पति पैसे रखना भूल गए थे। गाड़ी और ड्राइवर भी पास में नहीं थे। तभी अचानक मैंने पर्स चेक किया तो उसमें 3 हजार रुपये निकले। इत्तेफाक से ये रुपये मां के ही थे। उन्होंने लॉकडाउन से पहले ये पैसे किसी काम से दिए थे। वह इतनी खुद्दार थीं कि कफन के पैसे भी खुद देकर गईं।
फाइटर थीं मेरी मां
सरोज खान की बेटी सुकैना बताती हैं, मेरी मां फाइटर थीं। उन्होंने दुनिया से लड़ना और मुश्किल समय में डटकर खड़े रहना सिखाया। सुकैना बताती हैं कि उनकी मां ही उनकी गुरु थीं। सुकैना ने बताया कि उनकी सबसे छोटी बेटी का जन्म उनकी मां सरोज खान के जन्मदिन पर हुआ था।
‘गरीब मुझे नहीं लूटेगा तो किसे लूटेगा?’
सुकैना ने बताया़, मां जब भी उनके घर आती थीं तो फ्रूट्स वगैरह लेकर आती थीं। एक बार वह खुद फ्रूट्स लेने गईं। फ्रूट्सवाला कीमत काफी ज्यादा लगा रहा था। मैंने ड्राइवर से पूछा कि मां यहीं से फल लेती थीं? इस पर उसने जवाब दिया, हां और कभी पैसे कम नहीं करवाती थीं। सुकैना ने जब सरोज खान से कहा कि फलवाला तो ज्यादा पैसे लेता है। इस पर उन्होंने जवाब दिया, वह गरीब है। गरीब आदमी से कभी पैसे कम नहीं करवाने चाहिए, उसे भी परिवार चलाना है। वह मुझे नहीं लूटेगा तो किसे लूटेगा।
कोरोना समझकर बना रही थीं दूरी
सुकैना सरोज खान की बीमारी के बारे में बताती हैं, मां को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी तो लगा कि कोविड हो गया है। वह हम सबसे दूरी बनाना चाहती थीं कि उनकी वजह से किसी को कोरोना न हो जाए। उनकी कोविड रिपोर्ट नेगेटिव आ गई। वह वेंटिलेटर पर नहीं थीं बस ऑक्सीजन दी जा रही थी। सांस लेने में दिक्कत के बाद उनका डायबीटीज तेजी से बढ़ गया। उस रात हम अस्पताल में नीचे अपनी गाड़ी में बैठे थे। डॉक्टर ने बताया कि दिल का दौरा पड़ा है। 1 बजकर 52 मिनट तक रिवाइव करने की कोशिश की गई पर वह नहीं बचीं। बता दें कि सरोज खान मलाड में रहती थीं। वहां कोरोना फ्री अस्पताल नहीं था, इसलिए उन्हें बांद्रा लाया गया था।