भिलाई/रायपुर(सीजी आजतक न्यूज)। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के सबसे हाट सीट पाटन विधानसभा चुनाव में कोई भी हारे या जीते सबसे बड़े गांव सेलूद के ग्रामीणों को कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पहले भी गांव का विकास नहीं हुआ और अब भी कम ही उम्मीद है। वहीं चुनाव परिणाम को लेकर किसी को अति उत्साहित और किसी को नाराज होने की जरूरत नहीं है। पूर्व में सेलूद गांव में राजनीति को लेकर हुए दंगे से सबक सीखा जा सकता है। दलों की राजनीति के चलते लोगों की आपस में व्यक्तिगत दुश्मनी हो गई और नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ा। जब पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुने हुए व्यक्ति के राज्य के पांच साल मुख्यमंत्री के रहते हुए विकास नहीं हुआ तो अब नए से क्या उम्मीद की जा सकती है? क्षेत्र के विधायक भूपेश बघेल के पूरे पांच साल के मुख्यमंत्रित्व काल में ग्रामीणों को गांव के विकास की जो आस बंधी थी वह अपेक्षाकृत पूरा नहीं हुआ।
सीएम के विधानसभा क्षेत्र के एकमात्र सबसे बड़ी आबादी वाले गांव सेलूद के विकास की बात करें तो पूरे पांच साल में सेलूद के हिस्से में न तो पुलिस चौकी आई और न ही नगर पंचायत बना। यहां तक कि उप तहसील और ब्लाक का दर्जा भी नहीं मिल पाया। गांव के सरकारी अस्पताल का भी उन्नयन नहीं हो पाया। विकास के नाम पर डीएम फंड से पंचायत के माध्यम से सीमेंटीकरण और नाली निर्माण जरूर हुआ है। इस काम में भी भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की चर्चा ग्रामीणों में रही है। इसके अलावा कोई बड़ा विकास काम नहीं हुआ जिसे सालों तक याद किया जाए। विकास के नाम पर स्वामी आत्मानंद के नाम से अंग्रेजी माध्यम का स्कूल खुला है। वह भी सरकारी भवन का रंग रोगन कर नया मुल्लमा चढ़ाकर अंग्रेजी माध्यम का दर्जा दिया गया है। स्वामी आत्मानंद के नाम पर न तो जमीन है और न ही खुद का भवन।
इसी तरह गांव में एक बड़ा प्रोजेक्ट छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड का लॉन्च हुआ जो धरातल पर नहीं उतरा। सीजी हाउसिंग बोर्ड का प्रोजेक्ट भी सेलूद के चारागाह की जमीन पर प्रस्तावित है। हाउसिंग बोर्ड ने कॉलोनी बनाने टोकन मनी में चारागाह की जमीन ले ली पर बदले में दूसरी जमीन नहीं दी। वैसे भी अब गांवों में चारागाह की जमीन कम पड़ गई है। यह प्रोजेक्ट सीएम के बहुप्रतीक्षित नरवा, गरवा, घुरूवा और बारी के विपरीत है क्योंकि गाय और गौठान के नाम पर प्रदेश सरकार का अरबों रुपए खर्च हो गया है। चारागाह की जमीन पर ग्राम पंचायत की आपत्ति और बिना एनओसी कॉलोनी प्रस्तावित है, जिसका ग्रामीणों ने विरोध जाताया है। मामला ठंडे बस्ते में चला गया है।
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सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की मनमानी
गांव के सरकारी विभाग के लगभग सभी अधिकारी-कर्मचारी मुख्यालय (हेड क्वार्टर) में नहीं रहते। नियमतः सभी सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को हेड क्वार्टर में रहना अनिवार्य है। सीएम के विधानसभा क्षेत्र के गांव का ऐसा हाल रहा कि सिचाई विभाग का ओवरसियर, हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य, कृषि विस्तार अधिकारी, पटवारी, डॉक्टर कोई भी मुख्यालय में नहीं रहा, जबकि कई विभाग के सरकारी आवास बने हुए हैं। सरकारी विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारी शहरों से आना-जाना करते रहे है। किसी जिम्मेदार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।
कई लोग नए करोड़पति बन गए
जैसे बीते दो दशक से गांव में जितने भी सरपंच हुए सबसे अपने पक्के मकान बन गए उसी तरह सीएम के पांच साल के कार्यकाल में उनके खास समर्थक हजारपति से करोड़पति हो गए। बड़ी बड़ी लक्जरी कारों में पूरे पांच साल तक गांवों में घूमते रहे। अब जिसकी भी सत्ता आएगी उनके कुछ नए समर्थक भी लखपति बनेंगे। गांव की गरीब जनता का कुछ भला नहीं होने वाला है। जनता निरीह थी और निरीह ही रहेगी। हार जीत के बाद पूरे विधानसभा क्षेत्र का विस्तार से विश्लेषण किया जाएगा। क्यों हारे और नए से क्या क्या उम्मीदें हैं।
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