भगवान श्री कृष्ण की शिक्षास्थली सांदीपनिः 5266 वर्ष पूर्व मथुरा से पैदल चलकर आए थे कृष्ण, बलराम और सुदामा

भिलाई (सीजी आजतक न्यूज)। विश्व प्रसिद्ध उज्जैन सांदीपनि आश्रम में जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्म उत्सव बड़ी धूमधाम से रात 12 बजे मनाया गया। सांदीपनि आश्रम में मध्यरात्रि अभिषेक पूजन किया और महाआरती की गई । इस दौरान यहां सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित रूपम व्यास के सानिध्य में पूजा अर्चना संपन्न हुई।

सनातन धर्म परंपरा की प्राचीन गुरुकुल पद्धति में महाकाल की नगरी उज्जैन का विशिष्ट स्थान है। शास्त्रीय मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण यहां अध्ययन के लिए मथुरा से 5266 वर्ष पूर्व पैदल चलकर आए थे। अंकपात क्षेत्र में स्थित गुरु महर्षि सांदीपनि आश्रम में जगदगुरु योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और मित्र सुदामा के साथ तपोनिष्ठ महर्षि सान्दीपनि से धनुर्विद्या, अस्त्र मंत्रोपनिषद, गज एवं अश्वरोहण इत्यादि 64 विद्या और 16 कला का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने यह सम्पूर्ण शिक्षा 64 दिन में प्राप्त कर ली थी। गुरु सांदीपनि अवन्ति के कश्यप गोत्र में जन्मे ब्राह्मण थे। वे वेद, धनुर्वेद, शास्त्रों, कलाओं और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाण्ड विद्वान थे।

जानकार बताते है कि उस समय उन्हें शस्त्र, शास्त्र व धर्म सहित फर्नीचर से लेकर इत्र बनाने की विद्या गुरु श्रेष्ठ सांदीपनि ने दी थी। 5266 सालों के बाद भी यह आश्रम यहां प्राचीन गुरुकुल की याद दिलाता है।उज्जैन श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली होने से भक्तों में यहां विशेष उल्लास है। फिलहाल आश्रम का प्रबंधन गुरु सांदीपनि कुल के वंशजों के हाथ में है। आज भी यहां भगवान को दिए गए ज्ञान के चित्र दीवारों पर अंकित है। किसी चित्र में देवकीनंदन फर्नीचर बनाते तो किसी में गुरु सांदीपनि से शास्त्र का ज्ञान लेते नजर आते है। श्रीकृष्ण के भक्त यहां आकर अभिभूत हो जाते हैं। वैष्णव संप्रदाय के भक्तों के लिए यह जगह शीर्ष तीर्थों में शामिल हैं।

11 वर्ष की आयु में यज्ञोपवीत के बाद ही श्रीकृष्ण सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आये थे। भगवान कृष्ण और बलराम ने कम समय में ही विभिन्न कलाओं और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। भागवत, हरिवंश, ब्राह्म पुराण आदि ग्रंथों में सांदीपनि आश्रम में श्रीकृष्ण-बलराम और सुदामा द्वारा 64 विद्याएं और 16 कलाएं सीखने की अवधि मात्र 64 दिन बताई गई है।सांदीपनि आश्रम छोडऩे के पूर्व श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि के साथ श्री महाकालेश्वर का सहस्रनाम लेकर बिल्वपत्र द्वारा अभिषेक किया था। श्रीकृष्ण ने अपने अग्रज बलराम और सखा सुदामा के साथ महर्षि सांदीपनि से जो शिक्षा-संस्कार प्राप्त की थी, वे ही श्रीमद् भगवत गीता की ज्ञानगंगा के रूप में प्रस्फुटित हुई। सांदीपनि ऋषि का आश्रम आज भी इस बात के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करता है।

जानिए आश्रम में किन स्थलों के होते हैं दर्शन

गोमती कुंड : सांदीपनि आश्रम के पास गोमती कुंड स्थित है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने योगविद्या से पवित्र केंद्रों के सारे पानी की गोमती कुंड की ओर मोड़ दिया था, ताकि गुरु संदीपनि को आसानी से पवित्र जल मिलता रहे।आज भी यह कुंड यहां स्थित है। भगवान श्रीकष्ण जब पट्टी (स्लेट) पर जो अंक लिखते थे, उन्हें मिटाने के लिए वे जिस गोमती कुंड में जाते थे, वह कुंड यहां आज भी स्थापित है । अंकों का पतन अर्थात धोने के कारण ही इस आश्रम के सामने वाले मार्ग को आज अंकपात के नाम से जाना जाता है।

कृष्ण-बलराम और सुदामा की बाल लीलाएं-आश्रम में भगवान कृष्ण, बलदाऊ और उनके सखा सुदामा की बाल लीलाओं के चिह्न आज भी नजर आते है। तीनों की मूर्तियों की पूजा होती है। कई कथाएं भी तीनों के संबंधों को लेकर प्रचलित है। यहां सांदीपनि आश्रम में स्थित कलादीर्घा में भक्तों को होते है श्रीकृष्ण की 64 विद्या और 16 कलाओं के दर्शन।

भगवान के हाथ में दिखाई देती है स्लेट व कलम- यहां भगवान श्रीकृष्ण की बैठी हुई प्रतिमा के दर्शन होते है। जबकि बाकी कहीं भी अन्य मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते नजर आते है। भगवान श्रीकष्ण बाल रूप में है, उनके हाथों में स्लेट व कलम दिखाई देती है।

यहीं हुआ भगवान श्रीकृष्ण व भोलेनाथ का मिलन-भगवान श्रीकृष्ण जब सांदीपनि आश्रम में विद्याध्ययन करने गए, तो भगवान शिव उनसे मिले और उनकी बाल लीलाओं के दर्शन करने महिर्षि के आश्रम आए। यही वह दुर्लभ क्षण था, जिसे हरिहर मिलन का रूप दिया गया।

यहां है खड़े नंदी की प्रतिमा- महर्षि सांदीपनि आश्रम में ही भगवान शिव का एक मंदिर भी है, जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने के लिए यहां पधारे, तो गुरु और गोङ्क्षवद के सम्मान में नंदीजी खड़े हो गए। यही वजह है कि यहां नंदीजी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भक्तों को होते हैं। देश के अन्य मंदिरों में नंदी की बैठी हुई प्रतिमाएं नजर आती है।

तपोबल द्वारा बिल्वपत्र के माध्यम से शिवलिंग प्रकट

गुरु सांदीपनि ने अपने तपोबल द्वारा बिल्वपत्र के माध्यम से एक शिवलिंग प्रकट किया था, जिसे सर्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है । गोमती कुंड के समीप ही इस मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। यहां पढऩे वाले बच्चों को पाती लिखकर दी जाती है, ताकि उनका पढ़ाई में मन लगा रहे और बड़े होकर जब वे किसी साक्षात्कार के लिए जाएं तो यही पाती अपने साथ पॉकेट में रखें, तो अवश्य सफलता मिलती है।

महाकाल के दरबार में जन्माष्टमी पर्व पर बाबा का श्री कृष्ण स्वरूप में श्रृंगार किया गया। बाबा महाकाल के दरबार में आज जन्माष्टमी पर्व मनाया गया। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज जन्माष्टमी का पर्व भक्ति भाव और उमंग के साथ मनाया गया। तड़के 2.30 बजे मंदिर के पट खुलने के बाद बाबा महाकाल को जल से स्नान कराया गया तत्पश्चात पंचामृत अभिषेक किया गया और भस्म अर्पित की गई। इसके बाद बाबा का श्री कृष्ण स्वरूप में आकर्षक श्रंगार किया गया। जिसका हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन लाभ लिया।

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