CM के विधान सभा क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण मामला : कितने पेड़ काटे और कितने रोपे, कोई रिकॉर्ड नहीं

भिलाई. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के गृह विधान सभा क्षेत्र पाटन के ग्राम सेलूद में सड़क चौड़ीकरण की जद में आने वाले हजारों पेड़ों की बलि ले ली गई हैं. इसके एवज में कितने पेड़ विभाग द्वारा कहां पर रोपे गए, इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है. संबंधित विभाग और निर्माणी कंपनी द्वारा इस संबंध में कहीं पर भी कोई सूचना बोर्ड नहीं लगाया गया है. इससे सरकारी विभाग की मनमानी का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

विभाग के पास कोई अधिकृत जानकारी नहीं

कोरोना संक्रमण काल में संक्रमितों के लिए सिलेंडर की मारामारी और ऑक्सीजन की कमी के अभाव में हजारों मरीजों की मौत के बाद लोगों को समझ में आ गया है कि मानव जीवन में पेड़ों की कितनी महत्ता है. पेड़ काटने वन विभाग से अनुमति ली गई या नहीं इसका जवाब भी आधिकारियों के पास नहीं है. नियमत: पेड़ काटने के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है. अनुमति मिलने के बाद विभाग को नई सरकारी जमीन पर निश्चित संख्या में पेड़ रोपने पड़ते हैं. इस सड़क चौड़ीकरण में कितने पेड़ कटे और कितने रोपे गए संबंधित विभाग के पास कोई अधिकृत जानकारी नहीं हैं. अब ग्रामीण भी जागरूक हो गए है कि हजारों पेड़ों की कटाई के बदले कितने पौधे कहां पर रोपे गए, ग्रामीण जनता जवाब चाहती है. वहीं इस मामले में विभाग और निर्माणी कंपनी की बड़ी लापरवाही व मनमानी सामने आई हैं.

छत्तीसगढ़ रोड़ एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड

बता दें कि छत्तीसगढ़ रोड़ एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड द्वारा ग्राम सेलूद से जामगांव-रानीतराई तक सड़क का चौड़ीकरण (उन्नयन) किया गया है. इस योजना के तहत काम सिर्फ ग्राम सेलूद बस्ती में मकानों को तोडऩे और मुआवजा प्रकरण के कारण लटका हुआ है. इस काम के लिए सड़क के दोनों किनारे लगे हजारों पेड़ों को सड़क चौड़ाई की जद में आने के कारण काट दिया गया है. इनमें छाया और फलदार पेड़ों के अलावा सैकड़ों साल तक जीवत रहने वाले बरगद व पीपल के पेड़ भी शामिल है.

READ MORE : पड़ताल : सीएम के गृह क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण व नाली निर्माण में विभागीय अधिकारियों और ठेकेदार की मनमानी

अचानक 4 साल बाद नाली निर्माण की जरुरत क्यों आन पड़ी
ग्रामीण जनता सवाल उठा रही कि ग्राम सेूलद बस्ती में अचानक 4 साल बाद नाली निर्माण की क्यों जरूरत पड़ गई? इस योजना के तहत तो पहले सड़क का चौड़ीकरण करना और मुआवजा प्राप्त मकानों को तोडऩा था. मुआवजा प्राप्त मकानों को तोड़े बिना काम शुरू करना लोगों की समझ से परे हैं. ग्रामीण जनता तो वैसे भी चार साल से बरसाती पानी निकासी की समस्या से परेशान है. बरसात के समय हर साल सड़क का काम चलाउ रिपेयरिंग करने से घरों के आंगन नीचे और सड़क की उंचाई अधिक हो गई है. इससे बरसाती पानी निकासी की समस्या से ग्रामीण जूझ रहे हैं.


बता दें कि शासन द्वारा सड़क चौड़ीकरण की जद में आने वाले 38 मकान मालिकों उनके स्वामित्व की भूमि अधिग्रहण कर (कुछ आदिवासी परिवारों को छोड़कर) मुआवजा राशि दे दी गई है. मुआवजा राशि देने के बाद भी मकानों को क्यों नहीं तोड़ा गया, यह सवाल गांव की पीडि़त जनता पूछ रही है.
क्रमश:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *