जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज, मामला सीएम वर्सेस प्रीतपाल बेलचंदन का

भिलाई. जिस तरह कांग्रेस की राजनीति में दुर्ग जिला के पूर्व अध्यक्ष स्व. वासुदेव चंद्राकर को चाणक्य कहा जाता था, उसी तरह भाजपा नेता प्रीतपाल बेलचंदन को सहकारिता के क्षेत्र में चाणक्य कहा जाता है। उनसे सहकारिता की राजनीति में विपक्षी पार्टी कांग्रेस तो क्या भाजपा के किसी भी नेता में उनके दांवपेच को पार पाना संभव नहीं है। उनके अध्यक्ष कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आधा दर्जन गंभीर आरोप लगे। हर बार वे न्यायालय से पाक साफ होते गए। न्यायालय में उनके खिलाफ दोष ही साबित नहीं हुआ। आज भी जो एफआईआर दर्ज हुआ है वे भी राजनीतिक विद्वेष के चलते हुआ है ऐसा बताया जाता है।

सहकारिता के क्षेत्र में गहरी पैठ रखने वाले प्रीतपाल को चुनाव के मैदान में परास्त करना आसान नहीं

बताया जाता है कि राजनीति में उनकी सीधी लड़ाई (प्रतिद्वंद्वी पार्टी और एक ही समाज के होने के बाद भी) सीएम भूपेश बघेल के साथ है। इस लड़ाई की शुरुआत धुर विरोधी राजनीति पार्टी में रहते हुए लोकसभा चुनाव के दौरान (जब भूपेश बघेल कांग्रेस पार्टी से दुर्ग लोकसभा के प्रत्याशी थे) तब हुई थी। राजनीतिक पंडित एवं सहकारिता के जानकार लोग जुर्म दजे होने के मामले को सीएम वर्सेस प्रीतपाल की लड़ाई के रूप में न सिर्फ देख रहे बल्कि चर्चा भी कर रहे हैं। उनकी मानें तो उनके खिलाफ दर्ज जुर्म को प्रीतपाल को राजनीतिक रूप से निपटाने के लिए कोई चारा नहीं बचने पर और सत्ता के पावर में पुरानी राजनीतिक खुन्नस निकालने की कड़ी से जोड़ देख रहे हैं। बताया जाता है कि राज्य शासन के पास उन्हें निपटाने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा, तो उनके खिलाफ जुर्म दर्ज कर लिया गया। 20 साल की सहकारित की राजनीति में बेलचंदन डंके की चोट पर अपने विरोधियों को ललकारते रहे कि किसी में दम है तो चुनाव कराकर दिखाएं। उनके विरोधी जानते है कि सहकारिता के क्षेत्र में गहरी पैठ रखने वाले प्रीतपाल को चुनाव के मैदान में परास्त करना आसान नहीं है, इसलिए कानून का सहारा लेकर उन्हें निपटाने की साजिश रची गई है।

व्यक्तिगत लड़ाई अब पार्टी के साथ-साथ राजनीतिक लड़ाई बनते नजर आ रही
बता दें कि प्रीतपाल बेलचंदन वर्तमान में ग्राम तिरगा सहकारी समिति के अध्यक्ष है। वहां भी उनके खिलाफ आर्थिक भ्रष्टाचार का गंभीर लगाकर पद से हटाने की साजिश की गई, लेकिन वे न्यायालय से स्थगन आदेश ले आए। सहकारिता के जानकार लोग यह भी जानते है कि वे गबन के आरोपी है। आरोपी को सजा मिलनी भी चाहिए किंतु जब-तक न्यायालय में दोष साबित नहीं हो जाता तब-तक वे आरोपी है न कि दोषी? सीएम वर्सेस बेलचंदन की व्यक्तिगत लड़ाई अब पार्टी के साथ-साथ राजनीतिक लड़ाई बनते नजर आ रही है। इस लड़ाई में बेलचंदन के भाजपा छोड़ कांग्रेस प्रवेश की संभावनाओं पर न सिर्फ विराम लग गया बल्कि आने वाले दिनों में सीएम के गृह जिले की राजनीतिक परिदृश्य कुछ अलग ही नजर आएगी। जुर्म दर्ज होने के बाद उनके विरोधी पार्टी कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ता जो उनकी पार्टी में प्रवेश को लेकर एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे, उन्हें किंचित सफलता मिली और वे खुश भी है, वहीं भाजपा में भी उनके विरोधी खेमे में जो पार्टी छोडऩे की घोषणा से खुश थे उनमें मायूसी छा गई है।

यह है मामला
दुर्ग जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित के पूर्व अध्यक्ष प्रीतपाल बेलचंदन सहित संचालक मंडल पर धोखाधड़ी कर बैंक को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज हुआ है। दुर्ग कोतवाली में बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने मामला दर्ज कराया है। साल 2016 से 2020 के बीच बिना अनुमति अनुदान राशि और छूट देने का आरोप जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित में 14.89 करोड़ रुपए से ज्यादा के गबन का संचालक मंडल पर लगा है। इसे लेकर बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पंकज सोढी ने दुर्ग कोतवाली में जुर्म दर्ज कराई है। बैंक के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व भाजपा नेता प्रीतपाल बेलचंदन सहित संचालक मंडल पर बिना अनुमति अनुदान राशि और एकमुश्त समझौता योजना में छूट देने का आरोप है।

जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में प्रीतपाल बेलचंदन और निर्वाचित संचालक मंडल जून 2015 से जून 2020 तक कार्यरत थे। आरोप है कि अप्रैल 2014 से मई 2020 के बीच पंजीयक सहकारी संस्थाएं से बिना अनुमति लिए 234 मामलों में 1313.50 लाख की अनुदान राशि गोदाम निर्माण के लिए दी गई। ऐसे ही अगस्त 2016 से जून 2019 तक एकमुश्त समझौता योजना में नियमों विरुद्ध 186 मामलों में 175.61 लाख की छूट प्रदान की गई।

शिकायत के बाद जांच टीम ने आर्थिक नुकान की बात कही
कलेक्टर से की गई शिकायतों के आधार पर एसडीएम बीबी पंचभाई, उप पंजीयक सहकारी संस्थाएं विनोद कुमार बुनकर, ऑडिटर अजय कुमार और को-ऑपरेटिव इंस्पेक्टर एके सिंह की संयुक्त जांच टीम गठित की गई थी। टीम ने जांच कर 248 पन्नों की रिपोर्ट कलेक्टर को सौंपी और इसमें बैंक के आर्थिक नुकसान की बात कही गई।

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