कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच भारत में मानसून भी दस्तक दे चुका है। आठ राज्यों में भारी बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन से 470 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल, असम और गुजरात जैसे राज्य प्रभावित हुए हैं। मार्च से यह भारत में दूसरी आपदा है। नैशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (NDRF) की कम से कम 70 से ज्यादा टीमें बचाव और राहत कार्य में लगी हुई हैं।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इस मानसून सीजन में पश्चिम बंगाल में बाढ़ के कारण सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। राज्य में यह आंकड़ा 142 तक पहुंच चुका है। इसके अलावा पांच लोग लापता भी हैं। असम में 111 और गुजरात में 81 लोग बाढ़ के चलते मारे जा चुके हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र में 46 और मध्य प्रदेश में 44 लोग बाढ़ के कारण मारे गए हैं।
केरल, जहां महाराष्ट्र के साथ पिछले साल बाढ़ के चलते सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, में अभी तक 13 जिलों में 23 लोगों की बाढ़ के कारण मौत हुई है। इन राज्यों में प्रभावित लोगों की मदद के लिए 800 से अधिक राहत कैंप खोले गए हैं।
कोरोना वायरस महामारी के बीच राहत कैंपों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना एक बड़ी चुनौती बन गया है। अकेले असम में राज्य सरकार द्वारा खोले गए 564 राहत कैंपों में करीब 1.45 लाख लोग पहुंच चुके हैं। पश्चिम बंगाल में फिलहाल 118 बाढ़ राहत कैंप हैं। उत्तर प्रदेश में 78 राहत कैंप चल रहे हैं। यूपी में अभी तक दो लोगों की मौत बाढ़ के चलते हुई है। बिहार में हालांकि बाढ़ के कारण कोई मौत नहीं हुई है लेकिन इसने 13 राहत कैंपों में 12000 प्रभावितों को रखा है।
पिछले साल का मानसून भी काफी तबाही मचाकर गया था। तब 30 सितंबर तक 14 राज्यों में 1685 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों लापता हुए थे। हालांकि बाढ़ के कारण हुए आर्थिक नुकसान का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया गया था।
साल 2019 का मानसून भारत के लिए काफी अलग था। इस दौरान 25 साल में सबसे ज्यादा बारिश का रेकॉर्ड टूटा था। 8700 राहत कैंपों में 22 लाख लोगों को अस्थायी आसरा दिया गया था।
संयुक्त राष्ट्र के डिजाजस्टर रिक्स रिडक्शन (UNDRR) का आंकड़ा कहता है कि दुनिया में हर साल 2.6 करोड़ से ज्यादा लोग पर्यावरण में आने वाले बदलावों के चलते गरीब हो जाते हैं।