आंध्र प्रदेश की तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने 8 नवंबर, 2018 को सीबीआई को राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। आंध्र प्रदेश ने महज तीन महीने पहले 3 अगस्त, 2018 को ही एक आदेश पारित करके सीबीआई को राज्य में जांच करने की ‘आम सहमति (जनरल कंसेंट)’ दी थी। तब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नायडू सरकार के इस फैसले का स्वागत किया था। ध्यान रहे कि चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन मार्च 2018 में उन्होंने खुद को गठबंधन से अलग कर लिया था। अगले विधानसभा चुनाव में नायडू की सत्ता छिन गई और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी राज्य के नए मुख्यमंत्री बने।
सीबीआई को बैन करने के फैसले पर आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू का समर्थन करने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी यही काम किया। हफ्ते भर के अंदर उन्होंने प. बंगाल में सीबीआई को जांच करने की दी गई सहमति वापस ले ली। पश्चिम बंगाल ने 1989 में राज्य में सीबीआई जांच को ‘जनरल कंसेंट’ दिया था।
3 फरवरी, 2019 को शारदी चिटफंड घोटाले के संबंध में राज्य के तत्कालीन पुलिश कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए कोलकाता पहुंची सीबीआई की टीम के साथ जो हुआ, वह इतिहास में दर्ज हो गया। प. बंगाल पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों को ही हिरासत में ले लिया और उन्हें थाने ले गई। सीबीआई की 8 सदस्यीय टीम को जबरन वैन में भरकर शेक्सपियर सरनी पुलिस स्टेशन ले जाया गया। उधर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। बाद में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की और कोर्ट ने राजीव कुमार गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए उन्हें जांच में सहयोग करना का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को ममता ने लोकतंत्र और संविधान की जीत बताई थी।
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने 10 जनवरी, 2019 को आंध्र प्रदेश और प. बंगाल के नक्शे कदम पर चलते हुए सीबीआई को राज्य में जांच के लिए दिया गया जनरल कंसेंट वापस ले लिया। प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर इसकी जानकारी दी और कहा कि वो सीबीआई के बता दे कि राज्य सरकार की अनुमति लिए बिना वह यहां जांच करने के लिए नहीं आए। हालांकि, बघेल सरकार ने इस फैसले के पीछे का कोई कारण नहीं बताया।
राजस्थान सरकार ने सीबीआई से जनरल कंसेंट वापस लेने का ऐलान तब किया जब राज्य में पिछले कुछ दिनों से सियासी गहमागहमी का माहौल कायम है। गहलोत सरकार में उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे युवा नेता सचिन पायलट अपने समर्थकों के साथ बागी हो चुके हैं। उन्हें मनाने की तमाम कवायद फेल होने के बाद कांग्रेस ने उनसे दोनों पद छीन लिए और अब उनकी और उनके समर्थक विधायकों की विधानसभा सदस्यता छीनने की कवायद चल रही है। पायलट खेमे को विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से नोटिस मिला और पायलट इसके खिलाफ हाई कोर्ट चले गए। केंद्र में बीजेपी की सरकार है। ऐसे में राजस्थान की कांग्रेस सरकार को डर लग रहा होगा कि दबाव बनाने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल हो सकता है।
दरअसल, नैशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की तरह सीबीआई का संचालन अपने निजी कानून से नहीं होता है। एनआईए के लिए एनआईए ऐक्ट है जबकि सीबीआई का संचालन दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिसमेंट (DSPE) ऐक्ट के तहत होता है। इसका सेक्शन 6 सीबीआई को दिल्ली समेत किसी भी केंद्रशासित प्रदेश से बाहर संबंधित राज्य सरकार की अनुमति के बिना उस राज्य में जांच करने से रोकती है। इसे ऐसे भी समझें कि चूंकि सीबीआई के ज्यूरिस्डिक्शन में सिर्फ केंद्र सरकार के विभाग और कर्मचारी आते हैं, इसलिए उसे राज्य सरकार के विभागों और कर्मचारियों अथवा राज्यों में संगीन अपराधों की जांच के लिए अनुमति की जरूरत पड़ती है।
सीबीआई को राज्य से दो तरह की अनुमति मिलती है। एक- खास मामले की जांच को लेकर (केस स्पेसिफिक) और दूसरा- सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट)। जनरल कंसेंट के तहत राज्य सीबीआई को अपने यहां बिना किसी रोकटोक के जांच करने की अनुमति देते हैं। करीब-करीब सभी राज्यों ने सीबीआई को जनरल कंसेंट दिया हुआ है। इससे एजेंसी राज्य में कार्यरत केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में आसानी होती है और उसे हर बार राज्य से अनुमति नहीं लेनी पड़ती है। अब तक आंध्र प्रदेश, प. बंगाल, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने सीबीआई से जनरल कंसेंट वापस ले लिया है। इसका मतलब यह है कि अब सीबीआई इन राज्यों में पदस्थापित किसी केंद्रीय कर्मचारी या अन्य व्यक्ति के खिलाफ तब तक नया केस दर्ज और जांच नहीं कर सकती है जब तक उसे राज्य इसकी अनुमति नहीं दे दे।
सीबीआई ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट में डीएसपीई ऐक्ट के सेक्शन 6 को हटाने को लेकर दलील दी थी कि अब तक (2013 तक) सिर्फ 10 राज्यों ने ही जनरल कंसेंट दिया है। इससे अन्य राज्यों में जांच करने में उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर संबंधित राज्य का हाई कोर्ट अनुमति दे दे तो राज्य सरकार की अनुमति के बिना भी जांच की जा सकती है। मतलब साफ है कि सीबीआई अपनी मर्जी से और राज्य सरकार की अनुमति के बिना संबंधित राज्य में छापेमारी नहीं कर सकती है। उसे अगर किसी खास मामले में जांच की जरूरत जान पड़ती है और राज्य सरकार से इसकी अनुमति नहीं मिलती है तो उसे उस राज्य के हाई कोर्ट से अनुमति लेनी होगी।