मिंटो ब्रिज: दिल्ली का पुल जो हमेशा डूब जाता है

विवेक शुक्‍ला, नई दिल्‍लीबुजुर्ग हो चुके ब्रिज का नाम भारत के सन् 1905-1910 के बीच वायसराय रहे लॉर्ड मिंटो के नाम पर रखा गया था। मिंटो ब्रिज के साथ एक त्रासदी ये रही ही कि इसकी दोनों तरफ की टूट रही सीढ़ियों को रेलवे ने ठीक-ठाक करवाने की कोशिश नहीं की। अब मिंटो ब्रिज रेलवे स्टेशन पर कुछ और लाइन बिछाई जा रही हैं, इसलिए उसका चौड़ीकरण हो रहा है। कागजों पर मिंटो ब्रिज का नाम शिवाजी ब्रिज हुए एक अरसा गुजर चुका है। मगर, अब भी यह मिंटो ब्रिज ही कहलाता है। ये निश्चित रूप से पुरानी दिल्ली को नई दिल्ली से जोड़ने वाला पहला पुल था। बारिश के पानी में डीटीसी बसों के फंसे होने की तस्वीरों को दिल्ली वाले दशकों से देख रहे हैं।

1982 में राजधानी में आयोजित एशियाई खेलों के दौरान रंजीत सिंह फ्लाइओवर के बनने के बाद मिंटो ब्रिज का पहले वाला महत्व तो नहीं रहा। लाल ईंटों से बना मिंटो ब्रिज लंबे समय तक बड़ी कंपनियों को अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिहाज से सबसे उपयुक्त स्थान नजर आता था। अब तो तिलक ब्रिज (पहले हार्डिंग ब्रिज) के सामने सब फेल हैं। ये भी मिंटो ब्रिज के साथ 1931 में ही ही बना था।

दिल्ली के रेलवे पुलों की बात करते हुए यमुना नदी पर बने लोहे के पुल की बात कैसी नहीं होगी। ये शुरू में सिंगल लाइन था। इसे 1934 में डबल लाइन किया गया था। 850 मीटर लंबे पुल को हेरिटेज पुल का दर्जा प्राप्त है। यह दिल्ली के सबसे शानदार लैंडमार्क में से एक माना जाएगा। यह सन् 1863 में बनना शुरू हुआ था और 1866 में बनकर तैयार हो गया। ये जब बनने लगा उससे पांच साल पहले ही मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को रंगून कैद में भेज दिया गया था। इस पुल की खास बात है कि यह दिल्ली के एक दूसरे लैंडमार्क लाल किला से सटा हुआ ही है।

हिंदी के दो वरिष्ठ कथाकारों की जिंदगी से मिंटो ब्रिज जुड़ा रहा। ‘तमस’ के लेखक भीष्म साहनी अपने अजमेरी गेट स्थित जाकिर हुसैन कॉलेज से पैदल ही कनॉट प्लेस के कॉफी हाउस में मिंटो ब्रिज को पार करते हुए आते-जाते थे। इस दौरान, उन्हें कई बार अवारा मसीहा के रचयिता विष्णु प्रभाकर का साथ भी मिल जाया करता था। वे अजमेरी गेट की गली कुंडेवालान के अपने घर से कॉफी हाउस जा रहे होते थे। कई बार दोनों मिंटो ब्रिज के नीचे भुट्टा लेकर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते। कभी-कभी दोनों मिंटो ब्रिज के नीचे ही किसी रचना पर बहस भी करने लगते।

77049433

लोथियन ब्रिज का कमोबेश मूल स्वरूप बरकरार है। यह 1867 में बना था। इसका नाम रखा गया था एक गोरे अंग्रेज कर्नल सर जॉन कॉर लोथियन के नाम पर। वह ब्रिटेन की इंजीनियरिंग सेवा में थे। लोथियन ब्रिज के ठीक पीछे लोथियन कब्रिस्तान है। इसके आगे ही कश्मीरी गेट का जनरल पोस्ट ऑफिस है। लोथियन ब्रिज से कुछ ही फासले पर कौड़िया पुल है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *