COVID-19 को हरा सकता है पुराना वायरस

कोरोना वायरस इन्फेक्शन से लोग कैसे लड़ सकते हैं, इसे लेकर दुनियाभर में रिसर्च जारी हैं। ऐसी ही एक रिसर्च में सिंगापुर के रिसर्चर्स ने पता लगाया है कि ऐसे लोग जिन्हें COVID-19 बीमारी पैदा करने वाला SARS-CoV-2 से इन्फेक्शन पहले कभी न हुआ, उनके अंदर भी इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता हो सकती है। इस रिसर्च की मदद से COVID-19 से बचने की तरीके खोजने में मदद मिल सकती है। आगे की स्लाइड्स में जानें, क्यों इस रिसर्च से कोरोना के इलाज को लेकर और उम्मीदें जगती हैं…

दरअसल, कोरोना वायरस (Coronavirus) एक समूह होता है और COVID-19 खास तरह के कोरोना वायरस SARS-C0V-2 की वजह हे होता है। साइंस जनर्ल ‘नेचर’ में छपी रिसर्च के मुताबिक जिन लोगों को पहले किसी और कोरोना वायरस का इन्फेक्शन हो चुका होगा, उनक अंदर SARS-CoV-2 से लड़ने की क्षमता भी हो सकती है। इससे पहले 2003 में दुनियाभर में कोरोना वायरस की वजह से SARS (Sever Acute Respiratory Syndrome) फैला था। इसका भारत में ज्यादा असर नहीं देखा गया था लेकिन बाकी दुनिया में इसने भयानक कहर मचाया था।

रिसर्च में कहा गया है कि कुछ लोगों के शरीर में T-cells (खास तरह के White Blood Cells या leukocyte) होते हैं। T-cells का काम सेल के अंदर इन्फेक्शन को ढूंढकर उसे मारना होता। वायरस में एक खास स्ट्रक्चरल प्रोटीन (nucleocapsid) होता है और जब वायरस शरीर के किसी सेल (कोशिका) को इन्फेक्ट करता है, तो नॉन-स्ट्रक्चरल वायरल प्रोटीन (NSP) पैदा होते हैं। T-cells इन दोनों को ही पहचान सकता है।

रिसर्चर्स को पता चला कि 2003 में हुए SARS के 17 साल बाद भी कुछ लोगों में T-cells थे जो SARS-Cov-2 इन्फेक्शन को भी पहचान रहे थे। यहां तक कि ऐसे मरीज जिन्हें SARS या COVID-19 न रहा हो या इनके मरीजों से कॉन्टैक्ट न रहा हो, उनमें भी ये पाए गए। ऐसे लोग जो COVID-19 से ठीक हो चुके हैं, उनमें ऐसे T-cells थे जो वायरस के स्ट्रक्चरल प्रोटीन को NSP के मुकाबले बेहतर तरीके से पहचान पा रहे थे।

खास बात यह है कि जिन लोगों को पहले इन दोनों में से कोई इन्फेक्शन नहीं हुआ हो, उनमें भी ऐसे T-cells थे जो SARS-CoV-2 को पहचान रहे थे। ये ऐसे NSPs सीक्वेंस को पहचान रहे थे जो जानवरों में मिलने वाले कोरोना वायरस में मिलते हैं। इसके आधार पर रिसर्चर्स का कहना है कि बड़ी संख्या में लोगों में दूसरे कोरोना वायरस की पैदा की हुई प्रतिरोधक क्षमता होता है। दरअसल, इंसानों के बीच कई कोरोना वायरस इन्फेक्शन पहले से होते आए हैं जो आमतौर पर SARS-CoV-2 की तरह जानलेवा नहीं होते हैं। इसलिए इनकी वजह से लोगों के शरीर में पहले से ही Coronavirus को पहचानने वाले T-cells मौजूद होते हैं।

पिछले दिनों ब्रिटेन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के इंसानों पर पहले ट्रायल के नतीजे सफल पाए गए। खास बात यह रही कि जिन लोगों पर ट्रायल किया गया था उनमें वायरल इन्फेक्शन के खिलाफ सिर्फ ऐंटीबॉडी पैदा नहीं हुई थीं, बल्कि T-cells भी पैदा हुए थे। आमतौर पर ऐंटीबॉडी पाए जाने पर ही वैक्सीन को सफल मान लिया जाता है। हालांकि, ऐंटीबॉडी से इतनी लंबी प्रतिरोधक क्षमता शरीर में पैदा नहीं होती है जितनी T-cells में। सिंगापुर की इस ताजा रिपोर्ट से भी इस बात को बल मिलता है जिसमें 17 साल बाद तक T-cells मौजूद पाए गए।

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