चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों को भगवान का दर्जा यूं ही नहीं दिया जाता है। उन पर ऐसे लोगों की भी जान बचाने की जिम्मेदारी होती है, जिन्होंने गलत किया होता है। इसका नायाब उदाहरण गुजरात के अहमदाबाद से सामने आया है, जहां डॉक्टर्स ने 2008 के बम धमाकों () के आरोपी को कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद 46 दिनों तक इलाज कर स्वस्थ कर दिया। इलाज उसी सिविल हॉस्पिटल में हुआ, जहां हुए ब्लास्ट में आरोपी शामिल रहा था।
मोहम्मद हबीब फलाही का इलाज सिटी हॉस्पिटल के Covid-19 फैसिलिटी में हुआ, जो कि ओल्ड ट्रॉमा सेंटर से महज कुछ ही दूरी पर है। यहां 12 साल पहले बम धमाका हुआ था। फलाही सिविल हॉस्पिटल में बम धमाके के 78 आरोपियों में शामिल है, जिन पर ट्रायल चल रहा है। 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। हॉस्पिटल कैंपस में हुआ धमाका यहां हुए पहले आतंकी हमलों में शामिल था। सीरियल ब्लास्ट में कई लोग मारे गए थे।
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रिकवरी के बाद डिस्चार्ज कर जेल भेजा गया
फलाही को डिस्चार्ज कर गुरुवार की शाम साबरमती जेल भेज दिया गया, जहां वह पिछले 12 सालों से कैद है। बुखार और खांसी के लक्षण दिखने के बाद उसे 1 जून को कोविड वॉर्ड में भर्ती कराया गया था। हॉस्पिटल प्राधिकरण ने उसे कोरोना संक्रमित बताया और हाई ब्लड प्रेशर की वजह से रिकवरी में समय लगा। सांस लेने में तकलीफ की वजह से उसे आईसीयू में भी शिफ्ट किया गया था।
हॉस्पिटल रिपोर्ट के लिए स्पेशल कोर्ट गया भाई
फलाही की बीमारी की खबर पाकर उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से आए उसके भाई अबू आमिर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘मुझे शुक्रवार को भाई की रिपोर्ट नहीं मिली। पूछने पर मुझे बताया गया कि उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है। कोविड वार्ड में भर्ती होने के बाद मैं ब्लास्ट केस की सुनवाई कर रही स्पेशल कोर्ट गया, जहां से हॉस्पिटल को फलाही की रिपोर्ट रिलीज करने का निर्देश मिला।’
आमिर वॉर्ड के बाहर बने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग फैसिलिटी के जरिए अपने भाई फलाही से बात करता था। लेकिन जून के अंतिम हफ्ते में हॉस्पिटल की तरफ से इस सुविधा से मना करने के बाद उसने फिर से कोर्ट का रुख किया। उसने बताया, ‘मेरे भाई की स्थिति खराब हो रही थी और फिर से ऑक्सिजन पर रखा गया। कोई जानकारी नहीं मिलने पर मुझे मजबूरन कोर्ट जाना पड़ा, जहां से हॉस्पिटल को निर्देश जारी हुआ।’
हॉस्पिटल आने से डरते हैं ब्लास्ट के आरोपी
सिविल हॉस्पिटल कैंपस में आतंकी हमले के आरोपी यहां पर इलाज कराने से आने से कतराते हैं। अगस्त 2019 में भी इस्माइल मंसूरी नामक आरोपी को भर्ती किया जाना था लेकिन डॉक्टरों की तरफ से भेदभाव किए जाने की आशंका के तहत कोर्ट में अपील की थी। इसके बाद स्पेशल कोर्ट ने आरोपी के इलाज की विडियोग्राफी के साथ ही उसे सीसीटीवी लगे कमरे में रखने का आदेश दिया था।