जुलाई का आसमान एक ऐसी खगोलीय घटना से रोशन रहा है जो वास्तव में दुर्लभ है। NEOWISE धूमकेतु 3 जुलाई से देखा जा रहा है और अभी 22-23 जुलाई को इसकी आखिरी शानदार झलक का इंतजार है। इसके बाद यह 6,800 साल तक वापस नहीं आएगा। अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA के मुताबिक उत्तरी गोलार्ध में सूरज ढलने के ठीक बाद इसे देखा जा सकता है।
Comet NEOWISE या C/2020 F3 को सबसे पहले मार्च में इन्फ्रारेड NEOWISE स्पेसक्राफ्ट ने (Near-Earth Object Wide-field Infrared Space Explorer) खोजा था। उसके बाद से इसे धरती से लेकर इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन से कई बार देखा गया है। इससे निकलने वाली गैस और धूल पर सूरज की रोशनी पड़ने से यह चमकता है।
यह करीब 3 मील लंबा है और ज्यादातर धूमकेतु आधे पानी और आधे धूल से बने हुए होते हैं। अभी यह धरती से 7 करोड़ मील दूर है और एक अंडाकार ऑर्बिट में 40 मील प्रतिसेकंड की रफ्तार से घूम रहा है। इसके धरती के नजदीक आकर कोई खतरा पैदा करने के आसार नहीं है। बिना दूरबीन के देखा जा पाना इसे बेहद खास बनाता है।
आमतौर पर धूमकेतु को इतनी आसानी से देखा नहीं जा सकता। इससे पहले Comet Hale-Bope 1995-96 में आया था। जब इसे मार्च में देखा गया था यह काफी दूर था और इसी बर्फीली पूंछ साफ-साफ नहीं दिखाई दे रही थी। उस वक्त ऐस्ट्रोनॉमर्स को नहीं पता था कि यहा साफ-साफ दिखाई भी देगा या नहीं।
सूरज की ओर बढ़ने से इसके पिघलकर गायब हो जाने का डर था लेकिन वक्त के साथ इसकी चमक बढ़ चुकी है। कुछ दिन पहले ही सूरज उगने से कुछ देर पहले इसे लेबनान में देखा गया। यहां से आगे इसकी चमक और हल्की हो सकती है लेकिन फिर भी अभी यह आसमान में दिखाई देगा। यह सूरज के सबसे करीब 3 जुलाई को था जब ये सूरज से 4 करोड़ किमी दूर था।
5 जुलाई को इसे ऐरिजोना के पेसन में देखा गया और ऐस्ट्रोफटॉग्रफर क्रिस ने इसकी तस्वीर ली। इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन में NASA के ऐस्ट्रोनॉट्स ने स्पेस से भी Neowise की तस्वीर ली जिसे उन्होंने आतिशबाजी सरीखा बताया। अगर Comet की चमक इतनी ही रहती है तो यह जुलाई के अंत की ओर भी शाम के वक्त देखा जा सकेगा। उस वक्त यह आसमान में ऊंचाई पर होगा।
यह धरती के सबसे नजदीक 22-23 जुलाई को होगा। आपको बता दें कि धूमकेतु भी (Asteroids) की तरह सूरज का चक्कर काटते हैं लेकिन वे चट्टानी नहीं होते बल्कि धूल और बर्फ से बने होते हैं। जब ये धूमकेतु सूरज की तरफ बढ़ते हैं तो इनकी बर्फ और धूल वेपर यानी भाप में बदलते हैं जो हमें पूंछ की तरह दिखता है। खास बात ये है कि धरती से दिखाई देने वाला कॉमट दरअसल हमसे बेहद दूर होता है।