समाज में शवों को उनकी अंतिम यात्रा तक पहुंचाने को भले ही सम्मान की नजर से देखा जाता है। लेकिन इनदिनों कोविड- 19 वायरस के खतरे को देखते हुए लोग मृतकों की अंतिम यात्रा से दूर ही रहते हैं। कई शवों के तो अंतिम संस्कार के लिए भी कोई नहीं है। अजमत ने ऐसे कई शवों को कब्रिस्तान ले जाकर उन्हें अपने दो साथियों के साथ दफनाया है। वह कहते हैं कि मृतकों को दफनाने अब कोई नहीं आता है। हम तीन लोग ही कई शवों को दफना चुके हैं। अजमत इस गंभीर वायरस से पूरी तरह सावधान हैं और वह अपनी सुरक्षा के सभी जरूरी उपाय इस्तेमाल में लाकर इस काम को अंजाम देते हैं। इसके अलावा उन्होंने खुद को परिजनों से दूर आइसोलेशन में रखा हुआ है।
43 वर्षीय अजमत ने कहते हैं, ‘मैंने कई बार प्रैक्टिस में और कॉम्पिटीशन में भी 300 किलो के करीब वजन उठाया है। लेकिन जब मैंने अपने दो साथियों के साथ एक बुजुर्ग व्यक्ति के शव को क्रिश्चिन कब्रिस्तान मैदान में जाकर दफनाया, मुझे जो दर्द महसूस हुआ उसे मैं शब्दों में भी बयां नहीं कर सकता।’ 5 फीट 8 इंच लंबे 108 किलो वजनी अजमत बताते हैं, ‘उस बुजुर्ग के शव को दफनाने के लिए हम तीन ही लोग कब्रिस्तान में थे, जो उनकी अंतिम प्रार्थना कर रहे थे।’
अजमत बेंगलुरु में एक आईटी फर्म से जुड़े हैं, जिन्होंने हाल ही में एक एनजीओ मर्सी एंजिल्स जॉइन किया है। यह एनजीओ इस शहर में कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों को शवों को उनकी अंतिम यात्रा तक पहुंचाने का काम कर रहा है।
कोविड- 19 से पहले अजमत अपने वेटलिफ्टिंग स्पोर्स्टस में पूरे मन से मेहनत कर रहे थे। बीते साल दिसंबर में वह वर्ल्ड पावरलिफ्टिंग कांग्रेस (WPC) में हिस्सा लेने मॉस्को गए थे, जहां उन्होंने क्लासिर रो कैटिगरी 110 किलो भारवर्ग में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।
इसके बाद मार्च में कोविड-19 का संक्रमण दुनिया भर में फैल गया और अजमत को भी अपने अगले कॉम्पीटीशन की तैयारियां छोड़नी पड़ीं। इसके बाद उन्होंने लॉकडाउन हटने के बाद अपने दो दोस्तों से शवों को कब्रिस्तान तक न पहुंच पाने की बात सुनी तो उन्होंने इस नेक काम के लिए यह एनजीओ जॉइन किया। अजमत अब तक 15 शवों को पूरे रीति-रिवाज के साथ दफनाने का काम कर चुके हैं।