महिला पुलिस अधिकारी एक बार फिर चर्चा में हैं। मणिपुर पुलिस इस्तीफा देने के बाद फिर से जॉइन करने वालीं बृंदा ने सीधे तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने ड्रग्स पकड़ने के लिए की गई छापेमारी के दौरान गिरफ्तार हुए लोगों को छोड़ने के लिए दबाव बनाया। बृंदा अभी नार्कोटिक्स ऐंड अफेयर ऑफ बॉर्डर ब्यूरो (एनएबी) मैं तैनात हैं। उन्होने एन बीरेन सिंह के अलावा भारतीय जनता पार्टी के एक नेता पर भी आरोप लगाए हैं। आइए जानते हैं कि आखिर थोउनाओजम बृंदा कौन हैं और वह इतनी चर्चा में क्यों रहती हैं।
बृंदा ने अपने शपथपत्र में कहा है कि एनएबी ने उनके अंडर में इंफाल में कई छापेमारी कीं। गैर कानूनी ड्रग्स के धंधे को लेकर की गिरफ्तारियां की गईं। कैश और ड्रग्स भी बरामद किए। इसी कड़ी में 19-20 जून 2018 की रात को उनकी टीम छापेमारी करने गए। इस छापेमारी में हीरोइन समेत जो ड्रग्स बरामद की गई उनकी इंटरनैशनल मार्केट में कीमत 28,36,68,000 थी। शपथपत्र में लिखा है कि इस छापेमारी में जो गिरफ्तारी की गई उससे राजनीति में हलचल मच गई। आरोपी चंदेल जिले के 5 वीं स्वायत्त जिला परिषद का चेयरमैन था। वह कांग्रेस की टिकट पर जून 2015 में चेयरमैन बना था। सितंबर 2015 में वह फिर से चेयरमैन बना और बाद में अप्रैल 2017 में उसने बीजेपी जॉइन कर ली। बृंदा का आरोप है कि इस गिरफ्तारी के बाद उनके और उनके विभाग पर इस केस को दबाने का बहुत दबाव डाला गया।
ससुर के नक्सली होने का भुगता खामियाजा
थोउनाओजम बृंदा का नाम विवादों में आने का सबसे बड़ा कारण उनके ससुर का नाम है। उनके पति आरके चिंगलेन प्रतिबंधित नक्सली ग्रुप यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन रहे राजकुमार मेघेन के बेटे हैं। यही रिश्ता बृंदा के लिए हमेशा मुश्किलों का कारण बना एक बार को तो उनकी नौकरी लगने में भी दिक्कत आई। बृंदा के मुताबिक, वह राजकुमार मेघेन से साल 2011 में पहली बार कोर्ट में मिली थीं, जहां उसे पेशी के लिए लाया गया था। मेघेन ने मणिपुर में कई आपराधिक कामों की अगुवाई की थी और अपनी पत्नी और दो बेटों को छोड़कर 1975 में ही भाग गया था। बृंदा के पति मेघेन के छोटे बेटे हैं और साल 2011 में ही वह अपने पिता से पहली बार मिले थे। ऐसा इसलिए हुआ कि जब बृंदा के पति सिर्फ कुछ ही दिनों के थे, तभी मेघेन भाग गया था।
33 साल की उम्र में बृंदा दो बच्चों की मां थीं। उसी वक्त उन्होंने मणिपुर पब्लिक सर्विस कमिशन की परीक्षा दी। 138 लोग पास हुए, जिसमें बृंदा की रैंक 34वीं थी। उन्हें कॉल लेटर भी आया लेकिन आखिरी लिस्ट में उनका नाम नहीं आया। मेघेन से उनके रिश्ते के कारण मणिपुर सरकार ने उनको नौकरी नहीं दी। कोर्ट में कई याचिकाओं के बाद उनको नौकरी मिल सकी।
पुलिस की नौकरी से दे दिया था इस्तीफा!
सिर्फ तीन साल नौकरी करने के लिए बाद डीएसपी रैंक पर पहुंचीं बृंदा ने इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में उन्होंने इसे निजी वजह बताया लेकिन बाद में उन्होंने कुछ इंटरव्यू में कहा कि उनका विभाग उनपर भरोसा नहीं करता था और उनका उत्पीड़न भी किया जाता था। उन्होंने कहा कि उनसे जिस तरह का बर्ताव हो रहा था, उस माहौल में काम करना मुश्किल था इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। हालांकि, उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ और कई सालों के ब्रेक के बाद वह फिर से सर्विस में लौट आईं।
ड्रग रैकेट्स के खिलाफ बृंदा के बेहतरीन काम के लिए फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री ने उन्हें 2018 में सम्मानित किया था। अपने काम की बदौलत ही बृंदा वीरता मेडल और मुख्यमंत्री प्रशस्ति पत्र भी पा चुकी हैं।
कोर्ट पर की थी टिप्पणी
पिछले महीने ही बृंदा ने ड्रग्स के केस में ही एक आरोपी लुखाउसी जू को गिरफ्तार किया। लुखाउसी जू को कोर्ट से जमानत मिल जाने पर उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंटर पर एक टिप्पणी की। मणिपुर हाई कोर्ट ने इस मामले में उनसे ऐफिडेविट दाखिल करने को कहा। टिप्पणी को आपत्तिजनक मानते हुए हाई कोर्ट ने उनको चेतावनी भी दी कि उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
बृंदा ने हाई कोर्ट में जो शपथपत्र दिया है, उसमें बताया गया है कि वह चंदेल जिले का एक स्थानीय बीजेपी नेता भी था। उसे छोड़ने के लिए सीएम ने उनपर दबाव बनाया। यही शपथपत्र लीक हो जाने के बाद मणिपुर की सियासत में हंगामा मच गया है। बृंदा ने साफतौर पर कहा कि बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने उनपर दबाव बनाया।