रूस के लगातार आक्रामक रुख और चीन की रक्षा तैयारियों से नाटो देश में दहशत में आते दिख रहे हैं। नाटो देशों से अनुरोध किया गया है कि वे रूस के आक्रामक रुख के खिलाफ अपनी तैयारी को मजबूत करें। एक पॉलिसी पेपर में चेतावनी दी गई कि नाटो देशों को रूस के खतरे से निपटने के लिए स्मार्ट, तेजी, सामूहिक और जोरदार कार्रवाई की जरूरत है।
किंग्स कॉलेज लंदन के इस पॉलिसी पेपर में कहा गया है कि रूस से नाटो देशों को साइबर हमले, बायोलॉजिकल हथियारों और गलत सूचनाओं को फैलाने का बड़ा खतरा है। यह चेतावनी ऐसे समय पर दी गई है जब एमआई6 के डबल एजेंट सर्गेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी यूलिया की संदिग्ध रूसी एजेंटों ने जहर देकर हत्या कर दी थी। साथ ही चुनावों में रूस के हस्तक्षेप का खतरा बढ़ता जा रहा है।
पश्चिमी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है चीन
नाटो देशों से यह भी कहा गया है कि वे चीन के साथ संघर्ष से बचने और तनाव को कम करने पर काम करें। वह भी तब जब चीन ने हॉन्ग कॉन्ग पर बेहद कड़े कानून लागू किए हैं। चीन अब पश्चिमी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। पूर्व रक्षा सचिव लॉड राबर्ट्सन ने कहा कि बेहद आक्रामक चीन और रूस की वजह से नए खतरे पैदा हो रहे हैं। ऐसे में नाटो को इस और ज्यादा अनिश्चित दुनिया में अपने महत्व को दिखाना होगा।
पेपर में कहा गया है कि रूस हमेशा से ही नाटो का ‘शत्रु’ रहा है लेकिन चीन के उदय और उसकी बढ़ती सैन्य ताकत ने 21वीं सदी में नई चिंताओं को जन्म दिया है। चीन अपने रक्षा खर्च में 6.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने जा रहा है। चीन के राष्ट्रपति वर्ष 2035 तक चीन की सेना को आधुनिक बनाने में लगे हुए हैं। उनकी योजना है कि वर्ष 2049 तक चीन की सेना को विश्वस्तरीय बना दिया जाए। चीन का भारत और जापान के साथ विवाद इस बात को दर्शाता है कि ड्रैगन हिमालय से लेकर दक्षिण चीन सागर तक अपने क्षेत्रीय दावों के समर्थन में दबाव डालने के लिए किस हद तक तैयार है।