जम्मू-कश्मीर के लोगों को वहां सरकारी नौकरी में 100% रिजर्वेशन देने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देनेवाली याचिका पर ने सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि वो इस मामले में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए आरक्षण का फैसला किया था। केंद्र सरकार ने वहां के बाशिंदों को सरकारी नौकरी में 100 फीसदी रिजर्वेशन का फैसला किया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया था कि अनुच्छेद 16 (1) और 16 (2) के तहत समान अवसर प्रदान करने का मकसद इससे खत्म होगा।
अर्जी में कहा गया था कि डोमिसाइल के आधार पर रिजर्वेशन देने से संवैधानिक अनुच्छेदों का हनन होता है। केंद्र सरकार ने 31 मार्च को जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विसेज ऐक्ट में बदलाव किया था। इसके तहत राज्य के बाशिंदों को सरकारी नौकरी में 100 फीसदी रिजर्वेशन देने की व्यवस्था की गई है। याचिका में कहा गया है कि निवास और रहने के आधार पर देश के किसी भी नागरिक के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया।
एक साल से हिरासत, SC में उठा सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया है कि वह बताएं कि एक साल बीतने के बाद भी कश्मीर बार असोसिएशन के अध्यक्ष मिया अब्दुल कयूम को कस्टडी में क्यों रखा जा रहा है। अदालत ने कहा कि वह 23 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगा। कयूम की ओर से सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे पेश हुए और कहा कि 73 साल के कयूम को एक ऑर्डर के जरिएएक साल से डिटेन किया गया है। एक साल हो चुके हैं, बावजूद इससे उन्हें हिरासत में रखा गया है। सॉलिसिटर जनरल ने 10 दिन में जवाब देने के लिए वक्त मांगा। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 23 जुलाई की तारीख तय की है।