दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश की गद्दी पर बैठे अमेरिका के लिए भारत का साथ हमेशा से जरूरी रहा है। खासकर, चीन से मिलने वाली चुनौती को देखते हुए अमेरिका के रणनीतिकारों का मानना रहा है कि भारत के साथ उसके सैन्य रिश्ते और मजबूत होने चाहिए। वहीं, भारत हमेशा चीन और अमेरिका के बीच संतुलन कायम रखता आया है। हालांकि, माना जा रहा है कि पिछले महीने लद्दाख में हिंसा के बाद अब शायद भारत को भी यह लगने लगा है कि अमेरिका के साथ संबंध मजबूत नहीं करने से उसे बड़ा नुकसान हो सकता है।
अमेरिका-भारत के रिश्ते मजबूत करने का मौका
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडो-पैसिफिक अफेयर्स के सहायक रक्षा सचिव रह चुके रैंडी श्राइवर का कहना है कि पेंटागन में उनके साथियों का यह मानना था कि लद्दाख में हुई घटना कोई नहीं चाहता था लेकिन यह अमेरिका और भारत के सहयोग को मजबूत करने का अच्छा मौका है। इससे देश की रक्षा रणनीति को बल मिला है। दोनों देशों के बीच अगर रिश्ते गहराते हैं तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक रणनीतिक जीत होगी। ट्रंप ने 2017 में राष्ट्रपति बनने के साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिशें शुरू कर दी थीं।
करेंगे युद्धाभ्यास
दोनों देशों के बीच पहले से कई समझौते
2018 में दोनों देशों ने रक्षा समझौते पर दस्तखत किए जिससे भारत को अडवांस्ड अमेरिकी हथियार खरीदने और संवेदनशील सैन्य टेक्नॉलजी शेयर करने का मौका मिला। 2019 में अमेरिका ने दोनों देशों के बीच 4 साल की सबसे बड़ी रक्षा डील अप्रूव की जिससे भारत को एक अरब डॉलर के नौसैनिक हथियार मुहैया कराए गए। पिछले साल दोनों देशों की जल, थल और वायुसेनाओं ने पहली बार संयुक्त युद्धाभ्यास किया। इसी साल फरवरी में दोनों नेताओं ने 3 अरब डॉलर की रक्षा डील की है जिसमें 2.6 अरब डॉलर के Lockheed Martin Corp के बनाए MH-60R Seahawk हेलिकॉप्टर भी शामिल हैं।
चीन से पहले से थी अमेरिका की नाराजगी
उधर, हॉन्ग-कॉन्ग में चीन के दखल, शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार, कोरोना वायरस के चीन से निकलकर दुनियाभर में फैलने और साउथ चाइना सी में चीन की बढ़ती ‘आक्रामकता’ को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव गहरा चुका था और इधर, पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत के साथ चीन की हिंसक झड़प हो गई। एक्सपर्ट्स इसे न सिर्फ भारत के लिहाज से बल्कि अमेरिका के लिए भी अहम मानते हैं कि चीन के खिलाफ दोनों देश आखिरकार एक हो सकते हैं।
अब चीन की नाराजगी का भारत को डर नहीं
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक भारत और अमेरिका के बीच और ज्यादा सैन्य अभ्यास और हथियारों को लेकर समझौते हो सकते हैं। भारत अब पश्चिमी ताकतों के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है और अब शायद इस बात को लेकर भी ज्यादा चिंता नहीं कर रहा कि ऐसा करने से चीन नाराज हो सकता है। इसकी बानगी इस साल होने वाले मालाबाल नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने से मिलती है। अभी तक इसमें Quad देशों में से भारत के अलावा सिर्फ जापान और अमेरिका ही आते थे लेकिन पहली बार ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया गया है।
अमेरिका को मिला दक्षिणपूर्व में मौका
वहीं, पेइचिंग भी इस बात को समझ रहा है कि भारत के साथ हुए टकराव से अमेरिका को दक्षिणएशिया की राजनीति में दखल देने का मौका मिल गया है। रेनमिन यूनिवर्सिटी के ओवरसीज सिक्यॉरिटी रिसर्च इंस्टिट्यूट में सीनियर रिसर्चर झू शियान्गमिंग का कहना है, ‘भारत ने हाल में कोशिश की है कि अमेरिका के साथ उसका सैन्य गठबंधन मजबूत हो। चीन के साथ सीमा पर हुई घटना से इसमें तेजी आ सकती है।’
दरअसल, राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से लेकर हवाई तक के क्षेत्र को ‘इंडो-पैसिफिक’ के तौर पर देखना चाहा है और ‘फ्री ऐंड ओपन इंडो-पैसिफिक’ के प्रति अपनी कटिबद्धिता जताई है। यहां तक कि एक साल बाद ही US पैसिफिक कमांड का नाम भी बदलकर ‘US इंडो-पैसिफिक कमांड’ रख दिया गया। अमेरिका का दावा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी क्षेत्र में सैन्य आधुनिकीकरण, ऑपरेशन्स और दूसरे देशों पर दबाव डालने के लिए आर्थिक रणनीति का इस्तेमाल कर रही है, US इंडो-पैसिफिक कमांड इसके खिलाफ तैयार है। श्राइवर का दावा है कि दोनों देशों के बीच चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से संबंधित सेना की खुफिया जानकारियां भी साझा की जाएंगी और हो सकता है कि नौसेना के बाद थलसेनाएं भी साथ में काम करें।
बीच में रूस जैसे कई पहाड़
इस सब के बावजूद कई ऐसे कारण भी हैं जिन्होंने अभी तक अमेरिका और भारत के बीच सैन्य सहयोग का रास्ता रोक रखा है। भारत के रूस के साथ काफी अच्छे संबंध हैं। भारत रशियन S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने जा रहा है। स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के मुताबिक रूस अभी भी भारत का सबसे बड़ा आर्म्स सप्लायर है जहां से 2015-19 के बीच 56% सप्लाई आई हैं।
भारत नहीं चुनेगा एक पक्ष?
वहीं, भारत को लेकर एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि नई दिल्ली पूरी तरह से किसी एक पक्ष की ओर नहीं जाएगा। मुंबई के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के रिसर्च फेलो कशिश परपियानी का कहना है कि भारत कई देशों से संबंध बनाएगा। इससे सबसे ज्यादा अमेरिका को होगा और साथ ही फ्रांस, इजरायल, रूस और जापान को भी फायदा होगा। जहां तक रही भारत की बात तो जब तक चीन की सेना भारत की ओर मार्च शुरू नहीं कर देती, भारत कोई पक्ष नहीं चुनेगा।