दलबदल कानून: जानें, कब जाती है सदस्यता

नई दिल्ली
राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है और विधानसभा स्पीकर से उनकी सदस्यता रद्द करने की कार्यवाही का आग्रह किया है। अब स्पीकर ने इनको नोटिस भेजकर अयोग्य घोषित करने के मामले में जवाब मांगा है। किसी भी विधानसभा सदस्य के अयोग्य घोषित होने के मायने क्या है ये जानना जरूरी है। कानूनी जानकार बताते हैं कि किसी भी विधायक को अयोग्य घोषित किए जाने से वह कार्यकाल के दौरान मंत्री नहीं बन सकते। सुप्रीम कोर्ट के तमाम जजमेंट से साफ है कि बागियों के इस्तीफे और अयोग्यता के बारे में स्पीकर को फैसला लेने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई 2019 को एक अहम फैसले में स्पीकर (कर्नाटक मामले में) से कहा था कि वह वह 15 बागी विधायकों के इस्तीफे पर उचित समय सीमा में खुद फैसला लें। इस बारे में वह जो भी फैसला लें वह स्वतंत्र तरीके से लें।अदालत ने कहा था कि स्पीकर का इस्तीफे पर फैसले का जो अधिकार है उसमें कोर्ट के आदेश या टिप्पणी के तहत कोई रोक नहीं होनी चाहिए। वहीं स्पीकर के अयोग्यता का फैसला भी लेने का अधिकार स्पीकर को है।

दलबदल कानून का दायरा
किसी भी पार्टी के दो तिहाई सदस्य चाहें तो अलग हो सकते हैं और तब वह अयोग्य नहीं होंगे। अन्यथा पार्टी तोड़ने वाले अयोग्य हो जाएंगे। इसके अलावा स्पीकर भी किसी सदस्य को नियमों के तहत अयोग्य ठहरा सकते हैं। कानूनी जानकार और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने मध्यप्रदेश के फ्लोर टेस्ट मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि दलबदल कानून के तहत पार्टी से अलग होने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए लेकिन इससे बचने का तरीका निकाला गया है और लोगों को बाहर रखा जा रहा है ताकि सरकार गिर जाए। इन्हें नई सरकार में फायदा दिया जाएगा। सदन की संख्या छोटी हो जाएगी।

सिंघवी ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट स्पीकर के विशेषाधिकार में दखल नहीं दे सकता। स्पीकर को अयोग्यता तय करने का अधिकार है। स्पीकर ने अयोग्य ठहरा दिया तो फिर अयोग्य सदस्य मंत्री भी नहीं बन सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एमएलए को इस्तीफा देने का पूरा अधिकार है और स्पीकर को फैसला लेने का अधिकार है लेकिन संतुलन जरूरी है। वहीं 1996 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दलबदल कानून की व्याख्या के तहत कहा गया था कि किसी पॉलिटिकल पार्टी का उसके निर्वाचित सदस्य पर निष्कासन के बाद भी अधिकार होता है। जजमेंट के तहत किसी पॉलिटिकल पार्टी के नाम पर चुने गए मेंबर निष्कासन के बाद भी पार्टी के कंट्रोल में होता है।

पढ़ें:

इस्तीफे और अयोग्यता में फर्क
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर ऐडवोकेट एमएल लाहौटी का कहना है कि इस्तीफा देने का मामला हो या फिर अयोग्य ठहराए जाने का मामला हो, दोनों ही स्थिति में फैसला स्पीकर को लेना होता है। इसके लिए कोई टाइम लिमिट नहीं है। स्पीकर अगर किसी सदस्य का इस्तीफा स्वीकार करते हैं और कोई अयोग्य ठहराया जाता है उसमें फर्क ये है कि अगर स्पीकर किसी सदस्य को अयोग्य ठहरा देते हैं तो वह उसके बाद मंत्री नहीं बन सकता। दोबारा चुनाव के बाद ही वह सदस्यता लेगा और फिर मंत्रिमंडल में शामिल हो सकता है।

स्पीकर के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
21 जून 2020 को इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोग्यता तय करने के बारे में स्पीकर के अधिकार के बारे में संसद से दोबारा विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा था कि स्पीकर भी एक राजनीतिक दल के होते हैं ऐसे में उनके द्वारा अयोग्यता पर फैसला लेने के बारे में संसद को विचार करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद को दोबारा उस मुद्दे पर विचार करना चाहिए कि क्या स्पीकर को अयोग्यता मामले में फैसला लेना चाहिए या नहीं क्योंकि वह खुद एक राजनीतिक पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। संसद को गंभीरता से इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए कि मामले में संविधान में संशोधन हो और लोकसभा के स्पीकर और विधानसभा के स्पीकर के बदले कोई और मैकेनिज्म अयोग्यता पर फैसला ले। संसद को इस मामले में विचार करना चाहिए कि स्पीकर के बदले अयोग्यता मामले को कोई स्थायी ट्राइब्यूनल देख सकता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस या फिर हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस हो सकते हैं या फिर कोई स्वतंत्र मैकेनिज्म हो सकता है ताकि निष्पक्ष तरीके से विवाद का निपटारा हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *