चाबहार रेल प्रॉजेक्ट: चीन को मिलेगी 'मात'?

नई दिल्ली
ईरान ने चाबहार पोर्ट को अफगानिस्तान से सटी अपनी सीमा के नजदीक जाहेदान को जोड़ने वाले बेहद अहम रेल लाइन प्रॉजेक्ट (Chabahar-Zahedan Rail Project) से भारत को अलग करने का ऐलान किया है। नई दिल्ली की तरफ से फंडिंग में देरी का हवाला देते हुए तेहरान ने इस प्रॉजेक्ट को अब अकेले पूरा करने का फैसला किया है। भारत के लिए यह तगड़ा झटका है लेकिन सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रेल लाइन चाबहार पोर्ट प्रॉजेक्ट का ही हिस्सा है और भारत फंडिंग और इसे पूरा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

इस मुद्दे पर दोनों देश लगातार संपर्क में हैं। भारत को पूरा भरोसा है कि मुद्दे को सुलझा लिया जाएगा और ईरान समझौते से पीछे नहीं हटेगा। आइए विस्तार से समझते हैं कि क्या है यह रेल प्रॉजेक्ट, कितना अहम है और इसमें क्यों और कैसी दिक्कतें आ रही हैं।

भारत को अभी भी उम्मीद
तेहरान स्थित भारतीय दूतावास के एक सीनियर अधिकारी ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि भारत चाबहार-जाहेदान रेल प्रॉजेक्ट को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होने बताया, ‘भारत चाबहार-जाहेदान रेलवे लाइन को बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस महत्वपूर्ण प्रॉजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए भारत ईरान के संबंधित विभागों और अधिकारियों के लगातार संपर्क में है।’ ईरान सरकार से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि ऐसी उम्मीद की गई थी कि भारत चाबहार पोर्ट में निवेश के अलावा पोर्ट से जाहेदान और फिर जाहेदान से तुर्कमेनिस्तान सीमा से सटे सरख्स तक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ट्रांजिट रूट के लिए फंडिंग करेगा।

क्या है प्रॉजेक्ट और भारत के लिए कितना है अहम
प्रॉजेक्ट के तहत चाबहार पोर्ट से ईरान-अफगानिस्तान बॉर्डर के नजदीक जाहेदान तक 628 किलोमीटर लंबे रेल लाइन का निर्माण होना है। भारत के लिए यह व्यापारिक दृष्टि से बहुत ही अहम है। भारत-अफगानिस्तान व्यापार के लिए पाकिस्तान रास्ता नहीं देता। यह रेल प्रॉजेक्ट अफगानिस्तान के साथ ट्रेड के लिए ईरान के जरिए एक विश्वसनीय गलियारे की भारत की जरूरत को पूरा करने वाला है। भारत ने 2019 की शुरुआत में चाबहार पोर्ट का नियंत्रण हासिल किया। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तेहरान दौरे के वक्त इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (IRCON) और ईरानी रेलवे ने इस रेल लाइन को बनाने के लिए एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) पर दस्तखत किए थे। इसे भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के मकसद से किया गया।

जाहेदान रेलवे प्रॉजेक्ट के तहत दो हिस्सों में काम
भारतीय अधिकारियों के मुताबिक जाहेदान रेलवे प्रॉजेक्ट में दो अहम चीजें हैं। जमीन को ट्रैक के लिए तैयार करने यानी ‘सब स्ट्रक्चर’ की जिम्मेदारी ईरान की है। जबकि सुपर स्ट्रक्चर यानी ट्रैक बिछाने और रैक्स की जिम्मेदारी भारत की है। अभी ईरान सरकार ने अपना काम पूरा नहीं किया है।

प्रॉजेक्ट की राह में बाधाएं और ईरान के हालिया कदम
रेल प्रॉजेक्ट का काम अभी नहीं शुरू हो पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से जरूरी निर्माण सामग्रियों की उपलब्धता में देरी है। प्रॉजेक्ट के लिए भारत को स्टील चाहिए लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से इसमें देरी हो रही है। चाबहार पोर्ट को तो भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट दिला दी है लेकिन रेल प्रॉजेक्ट में ऐसा नहीं हो पाया है। ईरान ने पिछले हफ्ते ट्रैक बिछाने के काम का उद्घाटन किया और प्रॉजेक्ट को मार्च 2022 तक पूरा करने की उसकी योजना है। अब उसने भारत से फंडिंग के बिना अकेले ही प्रॉजेक्ट पर आगे बढ़ने का फैसला किया है। उसने अपने नैशनल डिवेलपमेंट फंड से रेल प्रॉजेक्ट के लिए करीब 40 करोड़ डॉलर लगाने जा रहा है।

ईरान की अहमियत
चाबहार पोर्ट से भारत का बिजनस जोर पकड़ रहा है। 2017 में भारत ने इसी पोर्ट के लिए अफगानिस्तान को मदद के तौर पर गेहूं की खेप भेजी थी। पिछले साल अफगानिस्तान ने भी चाबहार के जरिए पहली बार सूखे फलों, कॉटन, कार्पेट आदि की 570 टन की खेप भारत भेजी थी। रेलवे लाइन बन जाने से माल की आवाजाही और ज्यादा आसान हो जाएगी और इसमें तेजी आएगी।

ईरान के फैसले के पीछे चीन?
ईरान के इस फैसले के पीछे चीन को माना जा रहा है। दरअसल, अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत ने ईरान के साथ अपने तेल आयात को तकरीबन शून्य कर दिया है। इसी तरह चीन ने भी किया है लेकिन पेइचिंग ने इस बीच तेहरान से एक अहम समझौता करने जा रहा है। 25 साल के लिए ईरानी तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए चीन 400 अरब डॉलर यानी करीब 30 लाख करोड़ रुपये का समझौता करने जा रहा है। इसके बदले में चीन ईरान में एयरपोर्टों, हाई-स्पीड रेलवेज, सबवेज, बैंकिंग और 5 G टेलिकम्यूनिकेशन को विकसित करने में मदद करेगा।

भारत के लिए सतर्क होने का वक्त
रेल प्रॉजेक्ट से भारत को अलग करने के ईरान के फैसले को चीन के साथ होने जा रहे इसके समझौते से जोड़कर देखा जा रहा है। ईरान पर चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के कान खड़े करने वाले हैं। पेइचिंग भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में सड़कें और गलियारा बना रहा है। पाकिस्तान के बाद अब नेपाल भी उसके इशारों पर काम करता दिख रहा है। अब ईरान में उसका भारी-भरकम निवेश क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने की उसकी विस्तारवादी नीति को ही आगे बढ़ा रही है।

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