आनंद कुमार ने बताया, ‘करीब 9 साल पहले जब मैं क्लास में बच्चों को पढ़ा रहा था, तभी मेरे पास एक कॉल आया। मुंबई से कोई संजीव दत्ता बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि वह स्क्रिप्ट राइटर हैं और मेरे जीवन पर एक फिल्म बनाना चाहते हैं। मुझे उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ। मैंने सोचा कि फोन पर कोई मजाक कर रहा है। फिर कई बार उनका फोन आया लेकिन मैंने उन्हें सीरियसली नहीं लिया।’
अनुराग बसु आए थे घर
आनंद ने आगे बताया ‘कुछ दिनों बाद उन्होंने अपना नाम संजीव सेन बताकर मेरे भाई को फोन किया। उन्होंने कहा कि वह टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर हैं और एजुकेशन पर मुझसे बात करना चाहते हैं। मेरे भाई ने हामी भर दी। फिर कुछ वक्त बाद संजीव दत्ता और अनुराग बसु पटना स्थित मेरे घर आए। मैं अनुराग से अपरिचित था लेकिन गूगल पर उनके बारे में सर्च किया तो पता चला कि वह तो मशहूर फिल्ममेकर हैं। जब उन्होंने बायॉपिक के लिए गंभीर चर्चा की तो मुझे यकीन हुआ और कहानी लिखी जाने लगी।’
बायॉपिक चली गई थी ठंडे बस्ते में
आनंद के मुताबिक, ‘शुरुआत में सबकुछ बड़े जोर-शोर से हुआ लेकिन फिर काम ढीला पड़ने लगा और अनुराग बसु बर्फी और जग्गा जासूस जैसी फिल्में बनाने में बिजी हो गए। मेरी बायॉपिक ठंडे बस्ते में चली गई। बात आई गई हो गई और मैं भी सब कुछ भूल गया लेकिन संजीव दत्ता स्क्रिप्ट पर काम करते रहे। तीन साल पहले संजीव ने फिर से मुझे कॉल किया और बताया कि अब तो कई लोग आपकी बायॉपिक बनाना चाहते हैं। मुझे मुंबई बुलवाया गया। कई बड़े डायरेक्टर्स और ऐक्टर्स से मुलाकात हुई। काफी सोच-विचार के बाद फिल्म को आगे बढ़ाने की बात बन गई। एक वह भी समय था जब संजीव न जाने कितने लोगों के पास स्क्रिप्ट लेकर भटकते रहे और फिर वह भी दिन आ गया जब एकसाथ कई बड़े कलाकार फिल्म में मेरी भूमिका निभाने के लिए इच्छुक थे।’
ऐक्टर चुनने में थी मुश्किल
आनंद ने आगे बताया, ‘अब मेरे लिए बड़ी मुश्किल यह थी कि मैं किसको हां कहूं। कई बड़े ऐक्टर्स और डायरेक्टर्स से बातचीत की। सब बता रहे थे कि कहानी बहुत अच्छी है और फिल्म एक साल में बनकर रिलीज हो जाएगी लेकिन जब रितिक रोशन से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि फिल्म काफी कठिन है और बहुत मेहनत की जरूरत है, काफी समय लगेगा। यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी और ऐसा लगा कि रितिक खूब मेहनत करने के मूड में हैं। बतौर शिक्षक, मैंने सोचा कि वही स्टूडेंट सफल होता है जो मेहनती होता है।’
और फिर रितिक को बोल दिया हां
कुमार बताते हैं, ‘मैंने रितिक को हां करने का मन बना लिया था लेकिन जिससे भी राय लेता, वह रितिक के लिए ना कह देता था। सबका यही कहना था कि कहां रितिक बतौर ग्रीक गॉड मशहूर हैं और कहां तुम्हारा लुक और बातचीत का तरीका ग्रामीण है। हालांकि, एक शिक्षक का मन यही कहता था कि अगर कोई मेहनत करने को तैयार है तो सबकुछ संभव है। रितिक ने कहा कि आनंद कुमार के रूप में स्वयं को ढालने के लिए उन्हें लगभग एक साल लगेगा। जैसे ही मैंने हां कहा, उन्होंने तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने मेरी चाल-ढाल, बोलचाल, पढ़ाने के अंदाज, खानपान के तरीके और मेरी दिनचर्या से जुड़ी सैकड़ों वीडियोज मंगवाए और बारीकियों को समझा। मेरी जैसी जुबान के लिए उन्होंने एक बिहारी ट्रेनर को रखा और लगभग 6 महीने प्रैक्टिस की। बीच-बीच में जब मुझसे कुछ समझना होता था, तब मुझे मुंबई बुलाते थे और घंटो बातचीत होती थी। एक बार तो बातचीत में वह इतना खो गए कि 2 घंटे की मीटिंग लगभग 5 घंटे तक चली। यही नहीं, एक दिन जब वह मुझे अपने अपार्टमेंट के नीचे गाड़ी तक छोड़ने आए तो पैरों में चप्पल तक पहनना भूल गए।’
लोगों ने लगाए झूठे इल्जाम
आनंद याद करते हुए कहते हैं, ‘फिल्म बनकर तैयार हो गई और उसका ट्रेलर आने वाला था, तब हम लोग पूरे परिवार के साथ कंप्यूटर के सामने बैठकर इंतजार कर रहे थे। जैसे ही ट्रेलर में रितिक की एंट्री हुई तो मेरी बेटी पापा, पापा कहते हुए स्क्रीन की तरफ दौड़ी। उस छोटी सी बच्ची के लिए रितिक रोशन और मुझमें फर्क कर पाना मुश्किल हो रहा था लेकिन कुछ लोगों ने इस फिल्म को रुकवाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। मेरे भाई प्रणव पर ट्रक चढ़वा दिया गया और उसका पैर बुरी तरह से घायल हो गया। तीन महीने वह बिस्तर पर पड़ा रहा लेकिन उसके हौसले कभी कम नहीं हुए। आज तक मैंने किसी से कोई चंदा नहीं लिया, मेरी मां बच्चों को खाना बनाकर खिलातीं हैं। जहां तक हो सका, मैंने हर किसी का भला ही किया है लेकिन फिर भी मुझे बदनाम करने के लिए मुझ पर झूठे केस किए गए। सोशल मीडिया और मीडिया में मुझे बदनाम करने का प्रयास किया गया। मेरे एक सहयोगी को जेल भेज दिया गया। हालांकि, बाद में पुलिस ने उसे पूरी तरह से निर्दोष बताया। उन दिनों मैं काफी मानसिक परेशानी झेल रहा था। एक तरफ बच्चों को पढ़ाकर उन्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी और दूसरी ओर इतना मानसिक कष्ट।’
फिर आई अपने पिताजी की याद
आनंद ने आगे बताया, ‘उस वक्त मुझे अपने पिताजी की बातें याद आती थीं। पिताजी अक्सर कहा करते थे कि बेटा तुम्हारी जिंदगी में जितने कष्ट आएंगे, जितनी मुश्किलें आएंगी, उतने तुम मजबूत होगे। बस बेटा कभी घबराना नहीं और फिर ऐसा ही हुआ। फिल्म की कोई खास पब्लिसिटी नहीं हुई। फिर भी माउथ पब्लिसिटी और अच्छी कहानी, अच्छे निर्देशन और रितिक की दमदार ऐक्टिंग के दम पर फिल्म ने अपार सफलता हासिल की। तमाम माता-पिता अपने बच्चों को फिल्म दिखाने ले गए। फिल्म को कईं राज्यों ने टैक्स फ्री कर दिया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि सुपर 30 एक दिन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनेगी और मेरे जीवन की कहानी रुपहले पर्दे दिखाई जाएगी। लगातार मेहनत के बाद जब सुपर 30 से पढ़कर सैकड़ों बच्चों ने देश-विदेश के बड़े संस्थानों में झंडा गाड़ दिया, तब मुझे लगा कि मेरे सपने पूरे हो रहे हैं।’