पाकिस्तान के इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर बनाने को लेकर खूब विरोध हुआ। कई संगठनों और नेताओं ने इसे इस्लाम विरोधी करार दिया और भयावह नतीजों की चेतावनी तक दे डाली। अब मुस्लिम संगठनों के एक समूह ने मंदिर के निर्माण का समर्थन किया है। संगठन ने इस मुद्दे को लेकर उठे विवाद की निंदा भी की है। संगठन का कहना है कि संविधान में हर किसी के अधिकारी साफ-साफ दिए गए हैं।
पाकिस्तान के अखबार ‘डॉन’ की एक खबर के अनुसार पाकिस्तान उलेमा काउंसिल (PUC) ने कहा है कि पाकिस्तान का संविधान देश में रह रहे मुसलमानों और गैर-मुस्लिमों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। कई इस्लामी धर्मगुरू और विभिन्न इस्लामी परंपराओं के कानूनविद इस समूह के सदस्य हैं।
PUC के अध्यक्ष हाफिज मोहम्मद ताहिर महमूद अशरफी ने शुक्रवार को कहा, ‘हम मंदिर निर्माण को लेकर उठे विवाद की निंदा करते हैं। रूढ़िवादी धर्मगुरूओं द्वारा ऐसा किया जाना (इसे विवाद बनाना) ठीक नहीं है। पीयूसी एक बैठक बुलाएगी और इस्लामी विचारधारा परिषद (CII) के सामने अपनी बात भी रखेगी।’
‘जनता के पैसे से निर्माण पर आपत्ति’
CII एक संवैधानिक निकाय है जिसका काम पाकिस्तान सरकार को इस्लामी मुद्दों पर कानूनी सलाह देना है। पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने कुछ मुस्लिम समूहों के विरोध के बीच राजधानी में मंदिर निर्माण के लिए सरकार द्वारा अनुदान दिये जाने पर सीआईआई को पत्र लिखकर उसकी राय मांगी है। धार्मिक मामलों के मंत्री नूरुल हक कादरी ने बुधवार को कहा था कि मंदिर के निर्माण को लेकर कोई समस्या नहीं है, लेकिन असली मुद्दा यह है कि क्या इसे जनता के पैसे से बनाया जा सकता है। सरकार ने कृष्ण मंदिर के निर्माण के लिये 10 करोड़ रुपये के अनुदान को मंजूरी दी है। इसका निर्माण राजधानी के एच-9 प्रशासनिक खंड में 20,000 वर्ग फुट के भूखंड पर किया जाना है।