इंग्लैंड और वेस्टइंडीज ( Test) के बीच खेला जा रहा पहला टेस्ट मैच दिल्ली के डॉक्टर विकास कुमार के लिए भी खास लम्हा है। विकास पिछले साल ही अपनी मेडिकल ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड चले गए थे और इन दिनों वह एनएचएस हॉस्पिटल में कोविड- 19 (Covid- 19) के मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए सबसे आगे खड़े होकर कोरोना से जंग लड़ रहे हैं। साउथैम्प्टन में खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच से पहले () के एक सराहनीय कदम ने डॉ. विकास को भी भावुक कर दिया।
साउथैम्प्टन के एजिस बाउल मैदान पर मैच से पहले जब स्टोक्स टीम के प्रैक्टिस सेशन में हिस्सा ले रहे थे तो उनकी जर्सी पर डॉ. विकास कुमार का नाम लिखा हुआ था। उनके नाम के नीचे यह भी प्रिंट था कि वह डार्लिंग्टन मेमोरियल हॉस्पिटल में ऐनास्थेटिक और क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ हैं। बुधवार को इस जर्सी को पहनकर नेट प्रैक्टिस कर रहे स्टोक्स ने ऐसा डॉ. कुमार के निस्वार्थ सेवाभाव को सैल्यूट करने के मकसद से किया। स्टोक्स इस मैच में इंग्लैंड टीम की कप्तानी भी कर रहे हैं।
डॉ. विकास कुमार अपनी जिंदगी जोखिम में डालकर लोगों की जिंदगी बचाने में मदद कर रहे हैं। घर में कुमार का दो साल का बेटा विराज और पत्नी स्मिता रश्मि भी हैं। इसके बावजूद कुमार अपनी ड्यूटी पर लगातार बने हुए हैं और वह खुद को जोखिम में डालकर कोविड- 19 के रोगियों को मौत के मुंह से निकालने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
डॉ. विकास कुमार ने बताया, ‘यह मेरे लिए बहुत मुश्किल समय है। मेरे पैरेंट्स दिल्ली में हैं और हमें यहां हमारे सहकर्मियों और एक शौकिया क्रिकेट क्लब ‘गिल्ली बॉयज’ के अलावा ज्यादा सोशल सपॉर्ट नहीं है। कुमार ने बताया कि इस शौकिया क्रिकेट क्लब की शुरुआत तो भारतीयों ने ही की थी, जिसके वह भी सदस्य हैं।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन परिवार का सपॉर्ट अलग होता है। मैं क्रिटिकल केयर यूनिट (CCU) में काम कर रहा हूं, जहां नाजुक स्थिति में पहुंच चुके मरीज को ऑक्सीजन सप्लाई करनी होती है। यह मेरे काम का हिस्सा है कि मुझे मरीज के भीतर सांस लेने की पाइप लगानी होती है। ऐसे मरीजों से कोविड वायरल का खतर बहुत अधिक होता है। तो मेरे लिए वहां बहुत ज्यादा खतरा था। लेकिन मैंने कभी मरने के बारे में नहीं सोचा। मैंने वहां 60 से 70 साल के लोगों को भी दिन-रात काम करते देखा तो वह हमारे लिए रोल मॉडल थे। तो हम कैसे पैशेंट्स का इलाज करना बंद कर सकते थे।’
उन्होंने बताया, ‘मैं ड्यूटी के बाद रोजाना घर आता था और खुद को एक कमरे में बंद कर लेता था, ताकि घर में इस वायरस के संक्रमण का खतरा न हो। लेकिन मेरा बेटा अभी सोशल डिस्टेंसिंग और सेल्फ आइसोलेशन को नहीं समझता। यह उसके लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि वह कमरे के पास आता था तो दरवाजा खटखटाता था। उसने अभी पापा मम्मी कहना ही सीखा है। ऐसे में यह मेरे और उसके लिए एक मानसिक आघात जैसा था।’